भोपाल। गांधी मेडिकल कॉलेज भोपाल के कुछ छात्रों ने इच्छा मृत्यु मांगी है। इसके लिए उन्होंने संस्था डीन के नाम खुला पत्र लिखा है। छात्रों का यह पत्र जीएमसी के व्हाटसएप ग्रुप में वायरल हो रहा है। लेटर में छात्रों ने 31 मई तक की डेडलाइन दी है, जिसमें कमियों को दूर करने का आग्रह किया गया है।ऐसा नहीं होने पर सामूहिक इच्छा मृत्यु की बात कही है। पत्र के वायरल होने के बाद जीएमसी प्रबंधन हरकत में आ गया है। सोमवार शाम पांच बजे डीन ने सभी एचओडी के साथ एक आपातकाल बैठक बुलाई, जिसमें छात्रों की समस्या पर मंथन किया गया।
यह लिखा है छात्रों के पत्र में
जो इंसान न खुद पूरी नींद ले सकता है, न आराम कर सकता है, न खाना खा सकता है, वह दूसरों की जान बचा रहा है, लेकिन खुद की जान पर खेलकर। उसके स्वास्थ्य का क्या, उसकी जान का क्या। हमें लगा था कि डॉ. आकांक्षा माहेश्वरी और डॉ. बाला सरस्वती के सुसाइड के बाद माहौल में कुछ सुधार आएगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। इस माहौल में दो आत्महत्याएं हुईं, लेकिन इस स्थिति को हम केवल दो मृत्यु से नहीं देख सकते। यह यातनाएं तो कई सैंकड़ों रेसीडेंट डॉक्टर के साथ हो रही हैं। लेकिन केवल दो लोग की आत्महत्या की हिम्मत जुटा पाए, करना तो और भी चाहते हैं, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पा रहे।
ये गंभीर आरोप
जूनियर डॉक्टर्स ने वरिष्ठ चिकित्सक और फैकल्टी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। छात्रों ने लिखा है कि 24 से 36 घंटे तक काम करने से कई बार तनाव इतना बढ़ जाता है कि हमारा व्यवहार ही बदल जाता है। जब हम अपने टीचर्स या एचओडी को बताते हैं तो वह हमारी मदद करने के बजाए हमें ही डांटते हैं।परीक्षा में पास नहीं करेंगे, डिग्री मिलती नहीं दी जाती है।
सिर्फ 15 मिनट का मिलता है ब्रेक
पत्र लिखने वाले छात्रों का आरोप है कि निरंतर कई घंटे काम करने के बाद सिर्फ 15 मिनट का ब्रेक मिलता है। जिसमें हमें खाना खाने, नहाने और फ्रेश होने की छूट रहती है।
हो चुकी हैं आत्महत्याएं
जीएमसी में जूडा पर अत्यधिक काम का बोझ है। यह बात खुद प्रबंधन भी मानता है। यही कारण है कि 31 जुलाई 2023 को डॉ. बाला सरस्वती और जनवरी 2023 को डॉ. आकांक्षा महेश्वरी ने सुसाइड किया था। दोनों छात्राओं ने सुसाइड नोट छोड़ा था, जिसमें टॉक्सि कल्चर को अपनी मौत का कारण बताया था।
इच्छा मृत्यु के लिए गिनाए यह कारण
निरंतर 24 से 36 घंटे तक काम करना।
रविवार और शासकीय अवकाश के साथ साथ कभी अन्य छुट्टी भी न मिलना।
सीनियर एवं फैकल्टी द्वारा बार बार दुर्व्यवहार करना।
कभी मानसिक तनाव या समस्या होने पर किसी से शिकायत न कर पाना।
अत्यधिक काम के कारण पूरा माहौल टॉक्सिक हो जाना।
आराम या निजी कामों के लिए सिर्फ 15 से 20 मिनट का समय मिलना।