भोपाल। हमारे पिछले लेखों में हमने आपको देवों के देव महादेव के दो ज्योतिर्लिंगों के बारे में जानकारी दी है। इस 12 दिन 12 ज्योतिर्लिंग(12 day 12 jyotirlinga) नामक लेखों की शृंखला में आज तीसरा दिन(Third day) है। 12 ज्योतिर्लिंगों में जो तीसरे स्थान पर आता है वह महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग(Mahakaleshwar Jyotirlinga) है। बाबा महाकाल सारे ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। अन्य ज्योतिर्लिंगों की भांति इनके प्राकट्य के बारे में भी कई अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन इन सभी कथाओं में जो अहम बात है वह है भक्तों के लिए भगवान का प्रकट्य। जी हां इन सभी कथाओं में इसी बात का जिक्र है कि बाबा महाकाल अपने भक्तों के लिए धरती पर आए हैं। हालांकि इन सभी कथाओं में बाबा महाकाल(mahakaal) के प्राकट्य से जुड़ी जिस कथा को सबसे अधिक माना जाता है, वह है राक्षस दूषण का वध। कहा जाता है कि बाबा महाकाल अपने भक्तों की जान बचाने के लिए धरती फाड़ कर प्रकट हुए थे और अपनी सिर्फ एक हुंकार द्वारा सभी भक्तों को उस दुष्ट के प्रकोप से मुक्त कराया था। तो चलिए आज इन्ही भक्तों को बचाने धरती पर प्रकट हुए बाबा महाकाल के बारे में विस्तार से जानते हैं। साथ ही इनकी महिमा और इस मंदिर के इतिहास के बारे में भी चर्चा करते हैं।
धरती चीर कर प्रकट हुए महाकाल
यूं तो किसी भी ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के बार में प्रमाण या कोई एक किस्सा नहीं है। लेकिन आदिकाल से कुछ कथाएं हर ज्योतिर्लिंग के बारे में प्रचलित होती हैं। कालों के काल महाकाल की स्थापना के बारे में भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें कुछ का कहना है कि किसी भक्त राजा को बचाने महाकाल प्रकट हुए, तो कुछ कथाओं में एक बालक की भक्ति से प्रसन्न होकर धरती पर आने की बात कही जाती है। वही कुछ लोग इन कथाओं को आपस में मिश्रित करके बताया करते हैं। कुछ कथाओं में एक राजा के पास अमूल्य चिंतामणि के होने की बात भी कही जाती है। इन सभी कथाओं में जिस कथा को सबसे अधिक माना जाता है वह एक राक्षस वध की कथा है। पुराणों और ग्रंथों में निहित है कि अवंती नाम का एक रमणीय नगर था, जो भगवान भोलेनाथ को बहुत प्रिय था। कारण था इस स्थान पर होने वाले घार्मिक कार्य और कई प्रकार के अनुष्ठान। इस सबका एक और बड़ा कारण था जो था देव प्रिय ब्राह्मण। कहा जाता है कि देवप्रिय हमेशा भगवान शिव का पर्थिव शिवलिंग बनाकर विधि-विधान से उनका अभिषेक किया करता था। भगवान शिव इस भक्त की भक्ति से भी काफी प्रसन्न रहा करते थे।
वहीं रत्नमाल पर्वत पर एक दूषण नामक राक्षस भी रहा करता था। इस राक्षस ने कड़ी तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया और वरदान प्राप्त कर लिया था। वरदान के मद में चूर ये राक्षस अब धर्म का नाश करना चाहता था। इसके लिए वह भगवान शिव की प्रिय नगरी अवंती में धार्मिक अनुष्ठानों को बंद कराने पहुंच गया। लेकिन सभी ने इस राक्षस की बात मानने से इनकार कर दिया। इससे राक्षस क्रोधित हो गया और विध्वंश करने का रास्ता चुना। जब या आताताई नगर में सभी भक्तों को मारने लगा तब देव प्रिय भगवान शिव से इस संहार को रोकने की गुहार लगाने लगा। अपने सभी भक्तों की परेशानियों को सुनकर भगवान भोलेनाथ धरती फाड़ कर कालों के काल महाकाल के रूप में प्रकट हुए। महाकाल ने एक हुंकार से ही उस दुष्ट राक्षस दूषण का वध कर दिया, सभी भक्तों को इस संकट से उबार दिया। इसके बाद सभी भक्तों के अनुरोध से वहीं ज्योति रूप में रुक गए।
इकलौता शिवलिंग जिसका मुख है दक्षिण
12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे खास माने जाने वाले महाकाल की एक खास विशेषता ये है कि महाकालेश्वर शिवलिंग का मुख दक्षिण दिशा में रखा गया है। इस अनुठी स्थापना के चलते इस शिवलंग को दक्षिणआमुखी शिवलिंग कहा जाता है। इसे तांत्रिक परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है। इस शिवलिंग के महाकाल नाम होने का एक कारण और भी बताया जाता है, कि ये काल यानि समय के अंत तक रहेंगे। इस कारण भी ये महाकाल के नाम से जाने जाते हैं। हर दिन बाबा महाकाल का विशेष सिंगार होता है, भस्म आरती होती है। कहा जाता है कि इस भस्मआतरी में शामिल होना एक अलग ही स्तर का आनंद प्रदान करता है। आदिकाल से यहां श्मशान से भस्म लाई जाती थी। लेकिन कुछ साल पहले से ही यहां कपिला गाय के गोबर से बने उपले, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलताश और बेर की लकड़ी से भस्म का निर्माण किया जाने लगा है। जिससे अब महाकाल की भस्म आरती की जाती है।
असल में भस्म को सृष्टि का सार माना जाता है, इस कारण यहां बाबा महाकाल की भस्मआरती की जाती है। मान्यता है कि बाबा महाकाल के दर्शन करने से सारे पाक और कष्ट दूर होते हैं, साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इस मंदिर के बारे में एक और मान्यता है कि महाकाल के दर्शन के बाद यदि काल भैरव के दर्शन नहीं किए तो आपके दर्शन अधूरे होंगे। उज्जैन में बाबा महाकाल की शाही सवारी भी अपने आप में एक उच्च कोटि की आस्था का प्रतीक है। सावन माह में बाबा महाकाल की शाही सवारी निकाली जाती है, जिसमें भक्त काफी बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
550 साल कुएं में रहे
यदि इस मंदिर का इतिहास देखा जाए तो ये मंदिर भी लूट से अनूठा नहीं रह पाया है। ये भी विध्वंस का शिकार हुआ है। कहा जाता है कि 1235 में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने इस मंदिर को पूरी सरह ध्वस्त कर दिया था। शिव भक्तो द्वारा गर्भगृह में स्थापित इस शिवलिंग को बचाने के लिए पास के ही एक कुएं में छुपा दिया। ये शिवलिंग करीब 550 वर्षों तक इसी कुएं में रहा, लेकिन भक्त फिर भी यहां इस जीर्ण-शीर्ण अवस्था में रहे मंदिर में महाकाल की पूजा करने आते रहे। बताया जाता है कि इस मंदिर के अवशेषों से औरंगजेब ने एक मस्जिद बनवा दी थी। कई साल बीत जाने के बाद मराठा शूरवीर राणोजी ने औरंगजेब द्वारा बनवाई गई मस्जिद को तोड़कर यहा फिर से महाकाल का मंदिर बनवाया। इनके द्वारा ही बाबा महाकाल को कोटितीर्थ कुंड से बाहर निकाल कर उनकी प्राण प्रतिष्ठा कराई गई। रणोजी ने ही इस मंदिर में फिर से सिंहस्थ भी शुरू कराया था।