छत्तीसगढ़ लोक और शास्त्रीय परंपराओं की भूमि है जहाँ अनुष्ठानों, उत्सवों और उपवासों की भरमार है।यहाँ की लोक आस्था के अथाह सागर में तीजा नामक त्यौहार का अति महत्वपूर्ण स्थान है।देश के अनेक भागों में हरितालिका तीज, गौरी हब्बा आदि नामों से मनाए जाने वाले इस उपवास प्रधान उत्सव में महिलाएं माता पार्वती को समर्पित उपवास रखती हैं।छत्तीसगढ़ में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाए जाने वाले तीजा नामक इस उत्सव में महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं और पूरे दिन चौबीस घण्टे निराहार, निर्जला व्रत रखने के पश्चात दूसरे दिन , जो वस्तुतः गणेश चतुर्थी का दिन होता है भोजन ग्रहण करती हैं।
छत्तीसगढ़ में इस त्यौहार के लिए विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने मायके आती हैं।अनेक मामलों में तो बाकायदा उन्हें लिवाने के लिए उनके ससुराल जाने का रिवाज है पर वर्तमान दौर में आधुनिक संचार माध्यमों से ही निमंत्रण भेज दिया जाता है।पर कुछ भी हो , छत्तीसगढ़ी माताओं, बहनों, पुत्रियों को तीजा अपने मायके में जाकर मनाने की उत्कट उत्कण्ठा रहती है।
भारतीय पौराणिक इतिहास हमे बताते हैं कि भगवान श्रीराम की माता कौशल्या का मायका छत्तीसगढ़ था। छत्तीसगढ़ को तब कौशल देश कहा जाता था तथा माता कौशल्या वहां के राजा भानुमंत की पुत्री थीं। रायपुर के समीप के एक स्थान चंदखुरी को माता कौशल्या का जन्मस्थान माना गया है।छत्तीसगढ़ की स्थानीय प्रचलित परंपराओं के परिप्रेक्ष्य में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ की पुत्री , अयोध्या के यशस्वी शासक राजा दशरथ की पटरानी माता कौशल्या भी तीजा मनाने अपने मायके आती रही होंगी।इसी अनुमान जिसे लोक परम्परा के आधार पर विश्वास भी माना जा सकता है,इस साल छत्तीसगढ़ी कलाकार बिरादरी ,, तीजा पर्व ,,को अनूठे ढंग से मानना चाह रही है।इस क्रम में चित्त्रोत्पला लोककला परिषद द्वारा जय मां कौशल्या पंडवानी पार्टी एवं महिला मानस मंडली चंदखुरी के सहयोग से इस साल के तीजा के अवसर पर एक विशिष्ट और अभिनव कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है जिसका नाम है,,तीजा के रंग कौशल्या बहिनी के संग.
चित्रोत्पाल लोककला परिषद के संस्थापक/ निदेशक वरिष्ठ लोक कलाकार राकेश तिवारी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि यह कार्यक्रम चंदखुरी निवासी प्रसिद्ध पंडवानी गायिका श्रीमती प्रभा यादव के निवास में आयोजित किया जाएगा । इस संबंध में आज एक बैठक आयोजित हुई जिसमे लोक कलाकार राकेश तिवारी के अतिरिक्त संस्कृति विद अशोक तिवारी,पंडवानी गाईका प्रभा यादव,कलाकार घंसिया राम वर्मा ,हेमलाल पटेल,पुरुषोत्तम चंद्राकर , नरेद्र यादव, सविता तिवारी एवम पुष्पा तिवारी उपस्थित थे बैठक में प्रस्तावित कार्यक्रम की रूपरेखा इस प्रकार बनाई गई जो आगे वर्णित है।
सितंबर के प्रथम सप्ताह में कलाकारों का एक दल अयोध्या के लिए रवाना होगी जो वहां से मिट्टी लेकर आएगा।अयोध्या में छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के पांडातराई के मूलनिवासी आचार्य महंत श्री जालेश्वर महाराज जी जो वर्तमान में राम हर्षणकुंज नयाघाट अयोध्या में विराजते हैं, उनके सहयोग से अयोध्या नगरी से पवित्र मिट्टी प्राप्त की जाएगी।यह मिट्टी महंत जी के सौजन्य से राजा दशरथ के महल के स्थल से लिया जाएगा जिस मिट्टी से छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मूर्तिकार पीलू साहू द्वारा कौशल्या बहिनी की मूर्ति का निर्माण किया जाएगा। मूर्ति की स्थापना पंडवानी गायिका श्रीमती प्रभा यादव के निवास ग्राम चंदखुरी फार्म में की जावेगी। मूर्ति स्थापना दिनांक 15 सितंबर को की जाएगी जिसकी चार दिनों तक प्रतिदिन सुबह-संध्या पूजा आरती आदि पूर्ण रीति रिवाज करने के पश्चात 19 सितंबर को प्रतिमा विसर्जन होगा।
कौशल्या बहिनी के पूजा अर्चना में विशेष तौर पर उस अवसर पर बनाये जाने वाले पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजन ठठेरी, खुर्मी, पपची, बिरिया, चौंसेला, बिनसा आदि का भोग लगाया जाएगा जिसे प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं के मध्य वितरित किया जाएगा। इसके लिए समस्त श्रद्धालुओं से भी निवेदन किया जाएगा कि अगर प्रसाद चढ़ाना है तो ठेठरी खुरमी आदि का ही चढ़ायें।
पूरे कार्यक्रम के लिए कौशल्या माता और चंदखुरी से संबंधित गौरव गीत की छत्तीसगढी भाषा में रचना की जा रही है जिन्हें रिकार्ड कर कार्यक्रम स्थल पर लगातार बजाए जाने की योजना है।साथ ही माता कौशल्या की आरती भी छत्तीसगढ़ी भाषा में बनाई जा रही है जिसे गाकर दोनो समय आरती की जाएगी।
भगवान राम हमारी धार्मिक-सांस्कृतिक अस्मिता के प्रतीक हैं और छत्तीसगढ़ का उनके ननिहाल हो जाने से उनसे हम छत्तीसगढ़ वासी उनके ममागांव के होने के कारण और भी अधिक निकटता से जुड़ जाते हैं।प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास का लंबा समय दंडकवन में व्यतीत किया था जिसे दंडकारण्य और महाकांतार के नाम सभी पूर्व में जाना जाता था।पर अब यह आज के छत्तीसगढ़ के रूप में जाना जाता है।वर्तमान में उस रास्ते को रामवनगमन पथ के रूप में विकसित किया जा रहा है जिससे वनवास काल मे प्रभु श्रीराम, सीतामाता और लक्ष्मण जी के साथ गुजरे थे।दो साल पहले चंदखुरी में माता कौशल्या का एक भव्य परिसर में मंदिर भी निर्मित किया गया है।
यह आयोजन हमारी माता कौशल्या जो हमारी बहिनी भी मानी जा सकती हैं, फूफू भी मानी जा सकती हैं, और दाई भी मानी जा सकती हैं, उन्ही संबंधों से अद्भुत अस्मिता के अनुष्ठानकरण, पूजन, स्मरण और उत्सवन का प्रतीक है।