रिपोर्टर - जगन्नाथ साहू
बालोद। सैकड़ो साल पुराने गोंदली जलाशय में डूबा माँ शितला माता का मंदिर और कुँए को पानी कम होने के बाद आस पास के ग्रामीण दर्शन करने पहुँच रहे है वहीं वर्षो पुरानी मंदिर धरोहर को पूजने के साथ ही पौराणिक स्थल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
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1956 में किया गया था जलाशय का निर्माण :
जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर मीटर दूर डौंडीलोहारा विकास खण्ड में स्थित गोंदली जलाशय का पानी छोड़ा गया है ताकि जलाशय के कुछ हिस्सो की मरम्मत किया जा सके वहीं गोंदली जलाशय का निर्माण 1956 में किया गया था। ऐसा बताया जाता है कि गोंदली जलाशय का निर्माण होने से पहले यहाँ पर ग्रामीण रहा करते थे और लगभग 20 से 22 गांव के लोग इस जलाशय के क्षेत्र में रहा करते थे निर्माण के बाद यहाँ के ग्रामीणों को मुआवजा मिलने के बाद वे वहाँ से दूसरे गांव रहने के लिए चले गए जब ग्रामीण गांव छोड़ के गए तो गोंदली गांव के और आस पास के गांव के लोगो का प्राचीन शितला मंदिर भी जलाशय में डूब गया जिसका निर्माण सैकड़ो साल पहले का होना बताया जाता है।
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मंदिर के समीप बावली भी दिखी :
अब जल संसाधन विभाग द्वारा पानी छोड़ा गया है तो लोगो को माता शीतला की प्राचीन मंदिर 60 से 65 साल बाद दिखाई देने लगा जिसको देखने जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर का सफर कर लोग आ रहे है और अपनी अपनी आस्था के अनुसार पूजा अर्चना कर नारियल पैसे चढ़ा रहे है।जलाशय में डूबे कुँए बावलिया भी दिखाई दे रही है जिसकी गहराई 15 से 20 फिट आँकी जा रही है।माता शीतला मंदिर के समीप में दो कुएँ नजर आ रहें है जो वर्षो पुराने नजर आ रहें है जिसमें से एक कुआँ पत्थर से बना हुआ है और दूसरा कुँआ बावली नुमा है जो ईंट से बना हुआ है जहाँ पर्यटकों की भीड़ डूबान क्षेत्र से होकर जाने को मजबूर नजर आ रहें है।
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ग्रामीणों में उमड़ी आस्था :
inh - हरिभूमि की टीम इस मंदिर की जानकारी लेने जलाशय के डुबान वाले क्षेत्र में 30 किलोमीटर का सफर तय करके पहुँचे तो नजदीक के ग्राम बइहाकुँवा के ग्रामीण दिनदयाल भंडारी ने बताया कि इस जलाशय परसूटोला ,बोइरडीही ,कोलियारी ,बड़े कोलियारी,अलनियाभावर,जटादहा ,सहगांव आदि 20 से अधिक गांव डूबे थे जिसमें से जटादहा ,सहगांव ऊपर वाले ऐरिया में चले गए और भी गांव के लोग आस पास विस्थापित हो गए आज जब पानी छोड़ा गया था हमने सिर्फ यहाँ सुना था ऊपर हिस्सा ही दिखाई देता था आज पूरा मंदिर दिखाई दे रहा है कुछ दिवाले भले टूट गई है लेकिन आज भी मंदिर का कुछ हिस्सा बरकरार हैं और मंदिर के मिट्टी के बने बैल लोहे की संकल आदि भी दिखाई दे रहे है जिसकी लोग पूजा अर्चना कर रहे है।
ग्रामीण जीतू राम तारम ने बताया कि बांध के ऊपर हिस्से से ही मंदिर को देखते थे माता पिता और हमारे बड़े बुजुर्गों के मुंह से सिर्फ मंदिर के बारे में सुनते थे लेकिन आज हम इस मंदिर के पास पहुंचे हैं, दर्शन किया है। माता जी का बार दिन सोमवार और गुरुवार को बांध के उपरी हिस्से से दीपक जलता दिखाई पड़ता है हालांकि यह चमत्कार है या कुछ और है पता नही।