रायपुर: पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने हाल ही में छत्तीसगढ़ में चल रहे कई महत्वपूर्ण विषयों पर अपनी राय साझा की है। उन्होंने शासकीय अस्पतालों में मीडिया पर प्रतिबंध पर कहा कि राज्य के शासकीय अस्पतालों में मीडिया के प्रवेश पर जो प्रतिबंध लगाए गए थे, वे व्यवहारिक नहीं हैं और इसका प्रभाव जनता की जानकारियों तक पहुंच को सीमित करता है। उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि ऐसे आदेश को तुरंत वापस लिया जाए ताकि पारदर्शिता बनी रहे और जनता को चिकित्सीय सेवाओं की स्थिति का सही जानकारी मिल सके।
कवासी लखमा को जेल में उपचार की सुविधा नहीं मिलने पर गंभीर चिंता
पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा कि जेल में बंद कवासी लखमा को आवश्यक उपचार सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। जब वे उनसे मिले थे, तब उन्हें यह जानकारी मिली थी कि स्वास्थ्य सुविधाएं ठीक नहीं हैं। सिंहदेव ने प्रशासन से मांग की है कि जेल में इलाज न होने की स्थिति में उचित अस्पताल भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए और गार्ड की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। उन्होंने जेल में उपचार को नागरिकों का मौलिक अधिकार बताया और कहा कि इसका उल्लंघन प्रजातांत्रिक अधिकारों का हनन है।
निर्वाचन आयोग के 45 दिन में चुनावी वीडियो-फोटो हटाने के आदेश पर सवाल
निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए गए आदेश पर टीएस सिंहदेव ने कहा कि चुनावी वीडियो और फोटो 45 दिन में हटाने का नियम प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में बाधा डाल रहा है। उन्होंने पूछा कि पहले 6 महीने या एक साल तक रिकॉर्ड रखने का प्रावधान क्यों था, अब इसे इतना कम क्यों कर दिया गया है। उनका मानना है कि पांच साल तक चुनावी रिकॉर्ड को संरक्षित रखा जाना चाहिए ताकि पारदर्शिता बनी रहे और किसी भी प्रकार की गड़बड़ी की जांच हो सके।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के छत्तीसगढ़ दौरे पर उठाए आदिवासी संरक्षण के सवाल
टीएस सिंहदेव ने बस्तर क्षेत्र में आदिवासी सभ्यता के संरक्षण को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि टाइगर रिजर्व के 10 किलोमीटर के अंदर माइनिंग की अनुमति नहीं है, लेकिन नक्शे में 12 किलोमीटर दिखाकर नियमों में छेड़छाड़ हो रही है। गृहमंत्री अमित शाह के दौरे को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं कि क्या वे उसी इलाके में जा रहे हैं जहां बड़ी माइनिंग परियोजना शुरू हो रही है। सिंहदेव ने बताया कि स्थानीय लोग डर रहे हैं कि बैलाडीला का पहाड़ पूरी तरह समतल हो जाएगा। उन्होंने कहा कि उद्योगों की यह ‘बैकडोर एंट्री’ आदिवासी समाज के लिए खतरा है और यह बात जनता के बीच धीरे-धीरे फैल रही है।