भोपाल। ग्वालियर रीजनल इन्वेस्टर्स कॉन्क्लेव में ग्वालियर-चंबल के अछूते अप्रतिम पर्यटन स्थलों के विकास के लिए निवेश की संभावनाओं पर विशेष सत्र में चर्चा होगी। संभावित निवेशकों से पर्यटन विकास की योजनाओं में निजी निवेश की भागीदारी के संबंध में कार्य योजनाएं बनाई जाएंगी। ग्वालियर और चंबल रीजन प्राकृतिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक सभी प्रकार के पर्यटन से समृद्ध है। ग्वालियर के इटालियन गार्डन का अपना महत्व है। इटालियन गार्डन इतालवी वास्तुशिल्प प्रभाव और भारतीय प्राकृतिक सौंदर्यशास्त्र का सामंजस्य है।
झांसी की रानी की समाधि है खास
सिंधिया राजवंश के शासकों की स्मृति और सम्मान में निर्मित छतरियां स्थापत्य कला के साथ सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। झांसी की वीरांगना, रानी लक्ष्मी बाई के सम्मान में निर्मित, उनकी समाधि एक प्रसिद्ध आकर्षण है। रानी के सम्मान में हर साल जून में यहां मेला लगता है। इतिहास प्रेमियों के लिए एक आदर्श स्थल है। मुरार में रेजीडेंसी के पास नवनिर्मित सूर्य मंदिर ओड़िशा के प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर से प्रेरित है।
गौस मोहम्मद का मकबरा का सम्मोहन कर देने वाला सौंदर्य है। ग्वालियर का ऐतिहासिक किला वीरता और जौहर का साक्षी है। किले की शानदार बाहरी दीवारें भव्यता का अहसास कराती हैं। दो मील की लंबाई और 35 फीट ऊंची भारत के सबसे अजेय किलों में से एक है। किले के भीतर की मध्यकालीन वास्तुकला किसी चमत्कार से कम नहीं हैं। 15वीं शताब्दी का गुजरी महल, राजा मानसिंह तोमर का अपनी रानी मृगनयनी के प्रति अगाथ प्रेम का एक भव्य स्मारक है।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के बसने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्व बढ़ा
कूनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल 344.686 वर्ग किमी है। चीतों के यहां बसने से अब इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व बढ़ गया है। चम्बल की सहायक नदी कूनो के नाम पर इसका नाम रखा गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दो वर्ष पहले चीता प्रोजेक्ट का शुभारंभ किया था। श्योपुर का राष्ट्रीय उद्यान अब आकर्षण का प्रमुख केन्द है। श्योपुर किले में अत्यंत पिछड़ी सहरिया जनजाति की संस्कृति के संरक्षण के लिए सहरिया विकास प्राधिकरण एवं पुरातत्व एवं संस्कृति संरक्षण समिति ने मिलकर सहरिया संग्रहालय की स्थापना की है।
श्री शनिचरा मंदिर परिक्षेत्र धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है। श्रृद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए सुविधाओं का विस्तार किया गया है। प्रति शनिवार को मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, बिहार, गुजरात तथा विदेशों में नेपाल, श्रीलंका, न्यूजीलैंड से आते हैं। शनिचरी अमावस्या पर यहां विशेष मेला लगता है।
सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है चौसठ योगिनी मंदिर
चौसठ योगिनी मंदिर मुरैना के पडावली के पास, मितावली गांव में है। यह ऐतिहासिक स्मारक है। चौसठ योगिनी मंदिर सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर का नाम इसके हर कक्ष में शिवलिंग की उपस्थिति के कारण पड़ा है। भारत में गोलाकार मंदिरों की संख्या बहुत कम है, यह उन मंदिरों में से एक है। यह चौंसठ योगिनियों को समर्पित है। यह बाहरी रूप से 170 फीट की त्रिज्या के साथ आकार में गोलाकार है और इसके आंतरिक भाग के भीतर 64 छोटे कक्ष हैं। मुख्य केंद्रीय मंदिर में स्लैब के आवरण हैं, जो एक बड़े भूमिगत भंडारण के लिए वर्षा जल को संचित करने के लिए उनमें छिद्र हैं।
सिहोनिया में सबसे महत्वपूर्ण मंदिर शिव को समर्पित है और आज ककनमठ के रूप में जाना जाता है। भिंड में अटेर का किला भदौरिया राजा बदन सिंह, महासिंह और बखत सिंह ने बनाया था। इसलिए इस क्षेत्र को “भदावर” के नाम से जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित, वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। शिवपुरी की छत्रियां मुगल मंडप के साथ हिंदू और इस्लामी वास्तुकला शैलियों का शानदार मिश्रण है। माधव नेशनल पार्क के अंदर जॉर्ज कैसल है।