भोपाल। रीवा लोकसभा सीट अब तक किसी दल का गढ़ नहीं बन सकी। पिछले 8 लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 3 बार बसपा, 4 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है, इसीलिए विश्लेषक इस सीट काे लेकर किसी तरफ की भविष्यवाणी करने से बचते हैं। वजह बसपा की मजबूत उपस्थिति है। 2019 में बसपा को मिले 91 हजार से ज्यादा वोटों को छोड़ दें तो पार्टी को हर चुनाव में डेढ़ से दो लाख तक वोट मिले हैं। बसपा को मिलने वाले वाले ये वोट किसी के भी हार-जीत का खेल बिगाड़ सकते हैं। बसपा की ओर से अभिषेक पटेल मैदान में हैं। वे 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं।
भाजपा प्रत्याशी जनार्दन मिश्रा को इस मायने में फक्कड़ माना जाता है कि वे दो कुर्ता-पैजामा बनवाकर राजनीति करते हैं। उनकी गिनती निहायत ईमानदार नेता के तौर पर होती है। कोराना काल में दो साल उन्होंने लोगों के लिए मास्क बनाने का काम किया। संभवत: इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें पसंद करते हैं। हालांकि तीसरी बार उनके खिलाफ कुछ एंटी इंकम्बेंसी भी दिखाई पड़ रही है। कांग्रेस प्रत्याशी नीलम मिश्रा सेमरिया विधानसभा सीट से भाजपा विधायक रही हैं। उनके पति अभय मिश्रा सेमरिया से कांग्रेस के विधायक हैं। वे जल्दी-जल्दी भाजपा-कांग्रेस में आने-जाने के कारण चर्चित रहे हैं।
अभय पेशे से ठेकेदार हैं, पैसे की उनके पास कमी नहीं है। क्षेत्र में उनका संपर्क भी अच्छा है। उनकी गिनीत दबंग नेता के तौर पर भी होती है। इसकी वजह से मुकाबला रोचक दिख सकता है। रीवा लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण और पटेल मतदाताओं की तादाद निर्णायक है। संभवत: इसीलिए आमतौर पर भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी ब्राह्मण होते हैं और बसपा से पटेल। बसपा को पटेलों के साथ दलित वर्ग का अच्छा समर्थन मिल जाता है तो वे मुकाबले को त्रिकोणीय बना देते हैं। ऐसे मुकाबले में बसपा कभी-कभी बाजी भी मार ले जाती है।
आठ विधानसभा क्षेत्रों में फैली है रीवा लोस सीट
रीवा लोकसभा सीट भौगोलिक दृष्टि से रीवा जिले की 8 विधानसभा सीटों को मिलाकर बनी है। ये सीटें सिरमौर, सेमरिया, त्यौंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, रीवा और गुढ़ हैं। इस सीट के लिए 1991 से 2019 तक हुए लोकसभा के 8 चुनावों में 4 बार भाजपा, 3 बार बसपा और 1 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है। भाजपा के चंद्रमणि त्रिपाठी दो बार 1998 और 2004 में जीते और जनार्दन मिश्रा ने 2014 और 2019 के चुनाव में जीत दर्ज की। बसपा के भीम सिंह पटेल पहली बार 1991 में जीतने में सफल रहे। 1996 के चुनाव में बसपा के बुद्धसेन पटेल जीत गए। 2009 में बसपा के देवराज सिंह पटेल ने जीत दर्ज की। वर्ष 1999 में कांग्रेस के सुंदरलाल तिवारी ने भाजपा के चंद्रमणि त्रिपाठी को हराया था। इस बार फिर मुकाबला रोचक है।
क्या रहेंगे मुद्दे?
लोकसभा के इन चुनाव में अन्य क्षेत्रों की तरह रीवा में भी राष्ट्रीय और प्रादेशिक मुद्दों पर चुनाव लड़ा जा रहा है। इस बार यहां प्रत्याशियों का चेहरा भी महत्वपूर्ण है। बसपा अपने युवा प्रत्याशी के लिए युवाओं का समर्थन मांग रही है। भाजपा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के साथ केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं, नीतियों को अागे कर वोट मांग रही है। अयोध्या मुद्दा के साथ हिंदू-मुस्लिम राजनीति भी उसे मजबूत करती है। दूसरी तरफ कांग्रेस लोकतंत्र को खतरे में बता रही है। वह देश के अंदर महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की काेशिश में है। कांग्रेस का कहना है देश की जांच एजेंसिया भाजपा के पास कब्जे में हैं।
विस चुनाव में भाजपा ने बनाई बढ़त
विधानसभा के 4 माह पहले हुए चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में बंपर जीत दर्ज की थी। रीवा लोकसभा क्षेत्र में भी इसका असर देखने को मिला। क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 7 पर भाजपा ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट पर सिमट गई। भारतीय जनता पार्टी का सिरमौर, त्यौंथर, मऊगंज, देवतालाब, मनगवां, रीवा और गुढ़ में कब्जा है, जबकि कांग्रेस का सेमरिया में। सेमरिया से कांग्रेस प्रत्याशी नीलम के पति अभय मिश्रा विधायक हैं। जीत के अंतर की दृष्टि से कांग्रेस सेमरिया में महज 637 वोटों के अंतर से चुनाव जीती है, जबकि 7 विधानसभा सीटों में भाजपा की जीत का अंतर 1 लाख 5 हजार 840 रहा। लोकसभा चुनाव में एक लाख से ज्यादा वोटों का यह अंतर पाटना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है।
ब्राह्मणों व पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का बोलबाला
रीवा लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मणों और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का बोलबाला माना जाता है। हालांकि यहां दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी कम नहीं है। यही कारण है कि आमतौर पर रीवा में ब्राह्मण और पटेल समाज के नेता ही सांसद बने हैं। क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 40 फीसदी के आसपास निर्णायक है, लेकिन यह मतदाता कांग्रेस और भाजपा के बीच बंट जाता है। इसके बाद दलित, पटेल और काछी मतदाताओं की तादाद है। बसपा पटेल को प्रत्याशी बनाती है। इसके साथ बड़ी तादाद में दलित मतदाता जुड़ जाता है। काछी समाज के अलावा क्षत्रिय सहित क्षेत्र में अन्य समाज भी हैं। दलित मतदाता बसपा, भाजपा और कांग्रेस के बीच बंट जाता है।