बस्तर संभाग में एक ऐसा गांव है, जिसका नाम ही नाग देवता के कारण ही नागफनी पड़ा है। नाग पंचमी के दिन यहां के मंदिर में श्रद्धालुओं और सैलानियों का विशाल मेला लगता है। गीदम ब्लॉक मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर बस्तर संभाग का इकलौता प्राचीन नाग मंदिर नागफनी ग्राम में स्थित है। इस मंदिर में प्रतिवर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विशाल मेला लगता है। कहा जाता है कि नाग देवता के मंदिर के कारण ही इस गांव का नागफनी पड़ा था और नाग पंचमी के पर्व के दिन मंदिर परिसर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है और विशाल मेला भरता है, जहां बड़ी संख्या में आसपास के गांव के ग्रामीण जुटते हैं।
यहां के लोगों को सांपों से विशेष लगाव है और नाग पंचमी पर विशाल मेलालगता है, जिसमें आसपास के लगभग दो से तीन दर्जन गांवों के लोग हिस्सा लेते हैं और सभी अपने साथ देवी देवताओं का प्रतीक चिन्ह लेकर आते हैं। नाग मंदिर की पूजा गांव का अटामी परिवार करता है। मंदिर के पुजारी प्रमोद अटामी बताते हैं कि यहां जो भी श्रद्धालु सोमवार के दिन नाग मंदिर में आकर मन्नत मांगता है, वह जरूर पूरी होती है। इसलिए नाग पंचमी के दिन दूर-दूर से श्रद्धालु अपने मनोकामना लेकर नाग मंदिर पहुंचते है।
नागवंशी शासक ने बनाया था:
बस्तर में लंबे समय तक छिंदक नागवंशी राजाओं का शासन था। शैव उपासक इस राजवंश द्वारा भगवान शिव और उनके गणों के कई मंदिरों का निर्माण कर मूर्ति स्थापित कि गई। नागफनी का नाग मंदिर भी उनमें से एक है। मंदिर में भगवान गणेश, सूर्यदेव, शेषनाग सहित नागों की कई मूर्तियां है। पहले यह मूर्तियां खुले में पड़ी थी। बाद में स्थानीय ग्रामीणों ने मंदिर बनवाया।