भोपाल ; मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद अब पार्टी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई है। पार्टी के दिग्गज नेता लगातार जनता का विश्वास हासिल करने के एड़ी से चोटी का जोर लगा रहे है। तो वही दूसरी तरफ बीजेपी की जीत पर सवाल उठाते हुए दिग्विजय सिंह ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाते हुए पक्षपात का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने आगे कहा कि EVM का सॉफ्टवेयर तय करता है सरकार किसकी बनेगी।
मोदी - शाह को सॉफ्टवेयर पर आत्मविश्वास
बता दें कि प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने भोपाल में ईवीएम को लेकर आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जिसमे उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग मोदी जी के दबाब में काम करता है। ईवीएम का सारा काम प्राइवे्ट लोगों के हाथ मे हैं। मोदी और शाह का जो आत्मविश्वास है वो जनता का नहीं सॉफ्टवेयर का है। जब सॉफ्टवेयर ही सब करता है तो वही सॉफ्टवेयर तय करेगा सरकार किसकी बनेगी।
इलेक्शन प्रोसेस का मालिक सॉफ्टवेयर
140 करोड़ के देश मे जहां 90 करोड़ मतदाता हैं तो क्या हम ऐसे लोगों के हाथ मे ये सब तय करने का अधिकार दे दें। पूरे इलेक्शन प्रोसेस का मालिक ना मतदाता है, ना अधिकारी कर्मचारी हैं। इसका मालिक सॉफ्टवेयर बनाने और डालने वाला है। उन्होंने आगे कहा, सॉफ्टवेयर कौन डाल रहा है इसकी कोई जानकारी नहीं है। सॉफ्टवेयर बनाने वाला डालने वाला और सॉफ्टवेयर ही तय करेगा की सरकार किसकी बनेगी।
दिग्विजय ने लगाया चुनाव आयोग पर आरोप
चुनाव आयोग बीजेपी और मोदी जी से डरा हुआ है। इसलिए पक्षपात होता है। चुनाव आयोग निष्पक्ष काम नही करता। इस वजह से बीजेपी की अक्सर जीत होती है। मतदाता होने के नाते में अपने मत का उपयोग करना चाहता हूं। इसलिए लड़ाई लड़ता आया हूं और लड़ता रहूंगा। दिग्गी ने आगे कहा कि हम 6 महीने से चुनाव आयोग से मिलने का समय मांग रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग मिलने को तैयार नहीं है।
दिग्विजय ने लगाया चुनाव आयोग पर आरोप
चुनाव आयोग बीजेपी और मोदी जी से डरा हुआ है। इसलिए पक्षपात होता है। चुनाव आयोग निष्पक्ष काम नही करता। इस वजह से बीजेपी की अक्सर जीत होती है। मतदाता होने के नाते में अपने मत का उपयोग करना चाहता हूं। इसलिए लड़ाई लड़ता आया हूं और लड़ता रहूंगा। दिग्गी ने आगे कहा कि हम 6 महीने से चुनाव आयोग से मिलने का समय मांग रहे हैं, लेकिन चुनाव आयोग मिलने को तैयार नहीं है। हम लोग चुनाव में कुछ बोल देते हैं तो नोटिस मिल जाता है। मोदी जी खुलेआम कर्नाटक चुनाव में बजरंगबली की जय बोलकर कमल को वोट देने कहते हैं और चुनाव आयोग कुछ नहीं कहता।
लालकृष्ण आडवाणी भी संदेह जता चुके हैं
साल 2003 से लेकर 2012 तक ईवीएम चलती रही। इस दौरान लालकृष्ण आडवाणी से लेकर कई नेताओं ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। मूल रूप है विश्वास जनता को विश्वास होना चाहिए। इसके बाद वीवीपैट मशीन आई। उसमे दिखाने की प्रक्रिया थी कि वोट कहाँ डाल रहा है। मतदाता वीवीपैट में डाला जाने वाला सॉफ्टवेयर का सर्वर सेंट्रल इलेक्शन के सर्वर से जुड़ी होती है। इसका कंट्रोल यूनिट प्री-प्रोग्राम होती है। ईवीएम मशीन में जहाँ चिप डला हो वहाँ पर डला होने वाला सॉफ्टवेयर ही सर्वेसर्वा होता है।
चुनाव आयोग ने माना खतरनाक
दिग्विजय ने कहा कि हमारे यहां आस्ट्रेलिया की तर्ज़ में वीवीपैड पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं डाले जाते। इसी तरह यह वन टाइम प्रोग्रामेबल चिप है या मल्टीलेवल प्रोग्रामेबल चिप इसकी भी जानकारी नहीं है। आज विश्व में 5 देश ऐसे है जहां EVM से वोट डाला जाता है। विदेशों में सॉफ्टवेयर पब्लिक डोमेन में है। हमारे यहाँ 2003 से ही ऐसा नहीं है । जब बोला गया तो चुनाव आयोग ने कहा इसे पब्लिक डोमेन में नहीं रख सकते। ये तो और भी ख़तरनाक है की चुनाव आयोग मानता है की इसका दुरुपयोग हो सकता है ।
केवल सॉफ्टवेयर ही मतदान प्रभावित कर सकता है
भारत में आज तक कौनसा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है ये जानकारी पब्लिक नहीं है। इलेक्शन कमिशन कहता है पब्लिक करने से सॉफ्टवेयर हैक हो सकता है.आरटीआई के अंतर्गत कई प्रश्न पूछे गए जिसके eci और beil अलग अलग जवाब दे रहे हैं। पार्ट्स अलग अलग वेंडर्स से आते हैं। कहा गया की चिप वन टाइम प्रोग्राम चिप है। लेकिन जब वीवीपीएटी आई तो चिप मल्टीपल प्रोग्रामेबल हो गई. रिटर्निंग ऑफिसर्स कहते हैं की वीवीपीएटी प्रोग्राम करने के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी मांगी जाती है। Eci इन सभी सवालों का जवाब नहीं देती। टेक्निशियंस इलेक्शन कमिशन के नहीं हैं। मशीन कौन बना रहा है ये भी नहीं पता। सॉफ्टवेयर भी विदेशी है। केवल सॉफ्टवेयर ही मतदान प्रभावित कर सकता है।
प्री प्रोमिंग से चुनाव का नतीजा बदला जाता
इसके साथ ही दिग्विजय ने कहा कि मोदी और शाह का जो आत्मविश्वास है वो जनता का नहीं सॉफ्टवेयर का आत्मविश्वास है। साल 2014 हो या 2019 दोनो ही बार कैसे इनके दावों के अनुरूप नतीजे आ गए। हम लड़ना चाहते हैं लेकिन कैसे लड़ें। ये लोग हमेशा नैरेटिव बनाते हैं कभी पुलवामा, कभी लाडली बहना और अब रामलल्ला। बीजेपी का चुनाव आयोग पर दबाव है। इस वजह से अक्सर प्री प्रोमिंग से चुनाव का नतीजा बदला जाता है।