रायपुर: प्रदेश में मानसून का आगमन तो हो गया है, लेकिन अभी मानसून बस्तर में अटका हुआ है, इसके कारण उमस बढ़ गई है। उमस के कारण बिजली की खपत में भी भारी इजाफा हो गया है। ऐसे में प्री मानसून के कारण बिजली की जो खपत बारिश होने से 35 सौ मेगावाट के आसपास पहुंच गई थी, अब छह हजार मेगावाट के भी पार हो गई है। एसी और कूलरों के चलने के कारण खपत ज्यादा हो रही है। वैसे इस बार गर्मी में खपत सात हजार मेगावाट के पार जा चुकी है। मानसून में भी बारिश न होने से उमस के कारण खपत कभी भी छह हजार मेगावाट के पार हो जाती है। बीते साल तो अगस्त में खपत का नया रिकार्ड भी बना था।
गांवों में एसी लगने के कारण लगतार बढ़ रहा खपत का ग्राफ:
प्रदेश में बिजली की खपत में लगातार इजाफा हो रहा है। इसके पीछे का कारण यह है कि एक तो प्रदेश में उपभोक्ताओं की संख्या में इजाफा हो रहा है, इसी के साथ एसी और कूलरों की संख्या में भी भारी इजाफा हो रहा है। आज गांवों में भी थोक में एसी लगने के कारण खपत का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। पहले कभी खपत छह हजार मेगावाट तक नहीं जाती थी, लेकिन इस बार फरवरी में जहां खपत छह हजार मेगावाट के पार गई, वहीं मार्च में यह खपत 65 सौ मेगावाट के पार हुई। इसके बाद अप्रैल में खपत सात हजार मेगावाट के भी पार गई। मई में भी खपत का ग्राफ ज्यादा रहा। लेकिन मई के अंतिम सप्ताह में देश में मानसून आने के बाद बस्तर में आने के कारण इसके असर से प्रदेश भर में जो प्री मानसून की बारिश हुई उसके कारण खपत कम हो गई थी। लेकिन अब जून में खपत का ग्राफ फिर से बढ़ गया है।
खपत ढाई हजार मेगावाट ज्यादा:
बारिश न होने के कारण उमस बढ़ गई है। पारा तो 40 डिग्री से नीचे है, लेकिन उमस की वजह से सबको एसी और कूलर लगातार चलाने पड़ रहे हैं। एसी तो फिर भी उमस में काम करते हैं, लेकिन कूलर काम नहीं कर रहे हैं। कूलर चलाने से चिपचिपाहट वाली उमस के कारण बेचैनी हो रही है। कूलरों में बिजली की खपत भी ज्यादा हो रही है। मानसून में जो खपत साढ़े तीन हजार मेगावाट होनी चाहिए वह छह हजार मेगावाट के पार जा रही है। यानी खपत करीब ढाई हजार मेगावाट ज्यादा हो रही है।
बिजली की कमी नहीं:
छत्तीसगढ़ राज्य पॉवर कंपनी के उत्पादन संयंत्रों की क्षमता 2960 मेगावाट है, लेकिन उत्पादन हमेशा 25 से 26 सौ मेगावाट होता है। इसी के साथ सेंट्रल सेक्टर से भी साढ़े तीन हजार मेगावाट का शेयर है। ऐसे में पॉवर कंपनी के पास आसानी से छह हजार मेगावाट बिजली हो जाती है। इस समय खपत छह हजार मेगावाट के पार जा रही है। अपना उत्पादन दो हजार से ढाई हजार मेगावाट तक हो जाता है। बाकी बिजली सेंट्रल सेक्टर से लेकर पूर्ति की जा रही है।