टोक्यो। दुनियाभर में हर रोज दुर्घटनाओं या आपातकालीन स्थिति में जरूरी खून की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो जाती है।आंकड़ों से पता चलता है कि हर साल ऐसे लाखों मरीज सिर्फ इसलिए दम तोड़ देते हैं, क्योंकि वक्त पर उन्हें खून नहीं मिल पाता। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की साल 2023 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल दुनिया में लगभग 118.5 मिलियन यूनिट रक्त की आवश्यकता होती है, लेकिन जरूरत के मुकाबले मात्र 87 मिलियन यूनिट रक्त एकत्र हो पाता है। जनवरी 2024 में अमेरिकन रेड क्रॉस ने चिंता जताई कि उसे आपातकालीन रक्त की कमी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पिछले 20 वर्षों में रक्त देने वाले लोगों की संख्या सबसे कम है।
जिंदगी बचाने वाली खोज:
रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे असली रक्त के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा। इतना ही नहीं, सबसे खास बात ये है कि इसका उपयोग किसी भी ब्लड ग्रुप के लिए किया जा सकता है और इसे बिना रेफ्रिजरेशन के लंबे समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता है। विशेषज्ञों का मामला है कि यह आपातकालीन चिकित्सा के दौरान सामने आने वाली सबसे बड़ी चुनौती को दूर करने और लोगों की जान बचाने में काफी मददगार हो सकती है।
लंबे समय तक रखा जा सकता है सुरक्षित:
शोधकर्ताओं की टीम क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने जा रही खबरों के मुताबिक जापान स्थित नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम इस साल एक क्लीनिकल ट्रायल शुरू करने जा रही है, जिसमें परीक्षण किया जाएगा कि क्या सामान्य रूप से फेंक दिए जाने वाले एक्सपायर हो चुके रक्त को कृत्रिम लाल रक्त कोशिकाओं में बदलकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है?
क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
इंग्लैंड के ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ बायोकेमिस्ट्री में सेल बायोलॉजी के प्रोफेसर एश टॉय कहते हैं, ह्यूमन हीमोग्लोधिन से प्राप्त कृत्रिम रक्त का उपयोग करके जापान में एक बाए नैदानिक परीक्षण को शुरुआत संभावित रूप से रोमांचक कदम है। इस क्षेत्र में लंबे समय से संभावनाएं हैं, इससे पहले किए गए प्रयासों को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से यह ऑक्सीजन वितरण, स्थिरता और सुरक्षा की प्रभावकारिता को लेकर है। जो इस परीक्षण के बाद यह प्रदर्शित करने की जरुरत है, कि मनुष्यों में ये कृत्रिम रक्त सुरक्षित है। चल्कि यह भी कि यह कई नेवानिक स्थितियों के तहत विश्वसनीय रूप से कार्य कर सकता है।
दुष्प्रभाव और प्रभाविकता के लिए जांच:
स्थानीय समाचार आउटलेट क्योडो न्यूज के अनुसार, बारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के परीक्षण के शुरुआती चरणों में मार्च में 16 स्वस्थ वयस्कों को 100 से 400 मिलीलीटर कृत्रिम रक्त दिया गया था। इस ट्रायल के अगले चरण में उपचार की प्रभावकारिता और सुरक्षा की जांच की जानी है। फिलहाल रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं है कि प्रतिभागियों को मार्च में कृत्रिम रक्त दिए जाने के बाद किसी भी दुष्प्रभाव का अनुजव हुआ है या नहीं? चूंकि इस कृत्रिम रक्त में विशिष्ट मार्कर नहीं होते हैं जो आमतौर पर इसके ग्रुप को बिधर्धारित करते हैं (जैसे ए. बी, एबी या ओ)। ऐसे में इसे क्रॉस-मैचिंग के बिना किसी मी रोगी में सुरक्षित रूप से चढ़ाया जा सकता है
शुरुआती परिणाम आशाजनक:
इस सन्दर्भ में नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिरोमी साकाई ने जानकारी देते हुए ये बताया है कि, जब तत्काल रक्त आधान की जरुरत होती है, तो हमें इस बीच कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कृत्रिम लाल रक्त कोशिकाओं के साथ, रक्त प्रकारों के बारे में चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है, इसलिए आधान प्रक्रिया जल्दी से की जा सकती है। यह तकनीक अभी भी नैदानिक परीक्षण के चरणों में है, लेकिन शुरुआती परिणाम आशाजनक हैं।