राजा शर्मा// डोंगरगढ़: छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से जारी की गई आर्थिक सहायता को लेकर डोंगरगढ़ में विवाद खड़ा हो गया है। जिस पर यह आरोप है कि इस मद से उन भाजपा पदाधिकारियों को राशि दी गई, जो सामाजिक व राजनीतिक रूप से न केवल सक्रिय हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी सक्षम माने जाते हैं। अब इस पूरे मामले को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। शनिवार शाम को खैरागढ़ जिले के ग्राम मूढ़ीपार में आयोजित एक सामाजिक कार्यक्रम में शामिल हुए बघेल ने मीडिया से बातचीत में इस अनुदान वितरण को “सीधी बंदरबांट” करार दिया। उनका कहना था, 'मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से सहायता केवल जरूरतमंद, गरीब और असहाय लोगों को दी जानी चाहिए। लेकिन यहां जिन लोगों को लाभ मिला है, वे भाजपा के पदाधिकारी हैं। यह सीधी-सीधी बंदरबांट है जो पूरी तरह से निंदनीय है।'
अनुदान राशि प्रदान की गई:
डोंगरगढ़ में सामने आई सूची के अनुसार जिन लोगों को अनुदान राशि प्रदान की गई है, उनमें भाजपा शहर मंडल के दोनों महामंत्री , महिला मोर्चा अध्यक्ष , युवा मोर्चा अध्यक्ष , मंडल कोषाध्यक्ष , महिला मोर्चा उपाध्यक्ष , बूथ अध्यक्ष और कार्यकर्ता समेत कई रसूखदार और साधन संपन्न लोगों के नाम शामिल हैं। इन नामों के सामने आने के बाद सवाल यह उठ रहा है, कि जिन लोगों के पास संगठनात्मक जिम्मेदारियां और राजनीतिक पहुंच है, क्या वे आर्थिक रूप से इतने असहाय हैं कि उन्हें सरकारी आर्थिक सहायता की जरूरत पड़ी? और अगर नहीं, तो फिर यह राशि किन आधारों पर स्वीकृत की गई? विपक्ष इसे सत्ता का दुरुपयोग बता रहा है। और डोंगरगढ़-खैरागढ़ की अनुदान वाली सूची देखकर यह बात सही भी साबित होती है, जरूरतमंदों के नाम पर बना कोष अब सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं की सुविधा निधि बन गया है। क्षेत्र के ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस बात की पुष्टि की है कि आम जरूरतमंदों के लंबे समय से किए गए आवेदन अभी तक लंबित हैं, जबकि जिनके पास राजनीतिक पहचान है, उन्हें प्राथमिकता दी गई। यह बात क्षेत्र में नाराजगी का कारण बनी हुई है।
दोषियों को तत्काल प्रभाव से पद मुक्त:
सरकारी स्तर पर और भाजपा संगठन से अब तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, जबकि यह विषय गंभीर हैं पार्टी में अंतर कलह का कारण बना हुआ है इसकी जांच पार्टी लेबल पर करनी चाहिए और जांच उपरान्त दोषियों को तत्काल प्रभाव से पद मुक्त होना चाहिए अगर ऐसा नहीं होता है तो पार्टी का अंतर कलह बना रहेगा जो भारतीय जनता पार्टी को भारी खाम्याजा भुगतना पड़ सकता है।
गरीब की उम्मीदों पर भाजपा नेताओं का कब्जा:
सारे मामले में कांग्रेस ने संकेत दिया है कि वह इसे विधानसभा तक ले जाएगी और जरूरत पड़ी तो राज्यव्यापी आंदोलन भी किया जा सकता है। यह मामला न सिर्फ मुख्यमंत्री स्वेच्छा अनुदान वितरण की पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। बल्कि शासन के भीतर सत्ता और सुविधा के गठजोड़ की गंभीरता को भी उजागर करता है। सवाल कई हैं, पर जवाब अभी नहीं। लेकिन इतना ज़रूर तय है, गरीब की उम्मीदों पर ‘अनुदान’ के नाम पर भाजपा नेताओं का कब्जा अब किसी पंचायत की फुसफुसाहट नहीं, बल्कि राजधानी तक गूंजने वाला मुद्दा बन चुका है।