राजा शर्मा //डोंगरगढ़ : डोंगरगढ़ विकासखंड में आयोजित एक दिवसीय तहसील स्तरीय राजस्व शिविर शासन की सुशासन मंशा को साकार करने में पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। शिविर का उद्देश्य था – सुशासन त्यौहार के दौरान जिन समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाया, उन्हें हल करना। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आई।
शिविर में आधे घंटे में खत्म हुई आवेदन , जनता भटकी:
सुबह शुरू हुए इस शिविर में मात्र आधे घंटे के भीतर आवेदन खत्म हो गया, जिससे बड़ी संख्या में उपस्थित ग्रामीण व शहरी नागरिकों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ा। मौके पर मौजूद लोगों में प्रशासन की इस लापरवाही को लेकर गहरा आक्रोश देखने को मिला।
लचर व्यवस्था और खानापूर्ति का आरोप:
स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन सिर्फ शिविर के नाम पर खानापूर्ति करता नजर आया। समस्याओं का वास्तविक समाधान देने के बजाय, लोगों को टाल-मटोल कर वापस भेज दिया गया। कई मामलों में तो आवेदन की पाउती तक नहीं दी गई, जिससे आवेदकों को अपनी समस्याओं के समाधान की स्थिति का पता लगाना भी मुश्किल हो गया है।
सूत्रों की मानें तो गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों को ही ऐसे शिविरों में सबसे ज़्यादा नजरअंदाज किया जाता है। आवेदकों का कहना है कि उन्हें सिर्फ गोलमोल जवाब देकर टाल दिया जाता है, जबकि उन्हें उम्मीद होती है कि यहां आकर उनकी समस्याओं का समाधान होगा।
प्रशासनिक रवैये से लोगों का उठ रहा विश्वास:
लगातार लापरवाही और समाधान न मिलने से लोगों का शासन और प्रशासन पर से विश्वास डगमगाने लगा है। अधिकारियों की निष्क्रियता और जवाबदेही की कमी से शासन की नीयत पर भी सवाल उठने लगे हैं।
कलेक्टर डॉ. भूरे का बयान: 15 दिन में समस्याओं के समाधान का आश्वासन
इस पूरे मामले पर जिला कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेन्द्र भूरे ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि, “कुछ आवेदन सुशासन त्यौहार में नहीं लिए जा सके होंगे, इसलिए शिविर का आयोजन किया गया। 15 दिनों में जितना संभव होगा, उतनी समस्याओं का समाधान किया जाएगा।"
उन्होंने यह भी कहा कि कुछ क्षेत्रों में पट्टों की मांग की गई है जिसे शासन के पास भेजा गया है, और स्वामित्व योजना के अंतर्गत जिन लोगों की जमीन आबादी क्षेत्र में है उन्हें भविष्य में पट्टे दिए जाएंगे। हालांकि उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि जिन समस्याओं के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है, उनका निराकरण संभव नहीं है।