दिनेश निगम ‘त्यागी’ : पहलगाम की आतंकी घटना के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच घोषित ताैर पर युद्ध नहीं हुआ, लेकिन हालात युद्ध से कमतर भी नहीं थे। देश के अंदर वैसी ही तैयारी की जा रही थी, जैसी युद्ध के दौरान होती है। इस तैयारी में भाजपा के उन नेताओं के अरमानों पर पानी फिर गया, जो लंबे समय से पार्टी के अंदर कुछ पाने के इंतजार में बैठे थे। युद्ध पूर्व तैयारी के दौरान भाजपा नेतृत्व ने संगठनात्मक चुनाव टालने की भी घोषणा कर दी। कह दिया गया कि फिलहाल न प्रदेश अध्यक्षों के चुनाव होंगे, न ही राष्ट्रीय अध्यक्ष का। लिहाजा, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा पद पर बने रहे और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा भी।
इन पदों की चाह रखने वालों के अरमानाें पर पानी फिरना था, सो फिर गया। इसी प्रकार छत्तीसगढ़, मप्र सहित कुछ राज्यों में मंत्रिमंडल विस्तार की तैयारी थी। युद्ध की संभावना के चलते इसे भी टाल दिया गया। इससे मंत्री बनने की चाह रखने वाले विधायकों के अरमानों पर भी पानी फिर गया। अब भारत-पाक के बीच सीजफायर है, लेकिन इसे स्थाई नहीं कहा जा रहा। केंद्र की भाजपा सरकार भी कह रही है कि आपरेशन सिंदूर स्थगित हुआ है, रद्द नहीं। लिहाजा, सीमाओं में भले शांति है लेकिन पद की चाह रखने वाले नेताओं, विधायकों के मन में अशांति। इनकी शांति की घोषणा भाजपा नेतृत्व कब करता है, इसका इन्हें बेसब्री से इंतजार है।
मंत्री जी, भाजपा में ऐसी शर्त मानने की परंपरा नहीं....
भारतीय सेना की कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए आपत्तिजनक बयान के कारण घिरे प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह की मुसीबत कम होती दिखाई नहीं पड़ती। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी माफी अस्वीकार कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि गिरफ्तारी पर राेक लगाकर मंत्री को कुछ राहत दी लेकिन तीन आईपीएस की एसआईटी के गठन का आदेश भी दे दिया। एसआईटी में आईपीएस भी प्रदेश से बाहर के होंगे और इनमें एक महिला आईपीएस जरूर होगी। साफ है कि विजय शाह की मुश्किलें कम नहीं हुईं। इस बीच शाह के दो बयान और चर्चा में हैं। पहले उन्होंने कहा था कि यदि उन्हें मंत्रिमंडल से हटाया गया तो आदिवासी सेना का गठन करेंगे। इसका उद्देश्य क्या होगा, यह नहीं बताया गया। दूसरा,
अब िवजय शाह ने मंत्री पद छोड़ने की एक शर्त रखी है। उन्होंने कहा है कि वे इस्तीफा देने के लिए तैयार हैं, बशर्ते उनके बेटे को टिकट की गारंटी दे दी जाए। विजय शाह प्रारंभ से भाजपा में हैं। पार्टी में इस समय नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जोड़ी का नेतृत्व है। इनके रहते भाजपा के अंदर ऐसी शर्त मानने की परंपरा भाजपा में नहीं हैं। यह मंत्रीजी जानते हैं, फिर ऐसी शर्त रखने का औचित्य क्या है? उन्हें बचने के रास्ते पार्टी नेतृत्व को भरोसे में लेकर ही ढूंढ़ने होंगे। वैसे भी नेतृत्व उनके साथ है, वर्ना वे कब के मंत्री पद से हटाए जा चुके होते।
पार्टी में अपनों के कारण बैकफुट पर आई भाजपा....!
भाजपा के अपने नेता भारत- पाक और भारतीय सेना को लेकर केंद्र सरकार के िकए धरे पर पानी फेरने पर आमादा हैं। एक तरफ केंद्र सरकार भारतीय सेना के पराक्रम की बदौलत देश भर में पाकिस्तान को उसकी हैसितय दिखा रही है और देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार कर रही है। दुनियां के दूसरे देशों के सामने पाकिस्तान को एक्सपोज करने के लिए सभी दलों के सांसदों को विभिन्न देशों की यात्रा पर भेज रही है। इनमें विपक्षी दलों के सांसद भी शामिल हैं।
दूसरी तरफ भाजपा के ही नेता ऐसे आपत्तिजनक बयान दे रहे हैं, जिससे भाजपा बैकफुट पर आने को मजबूर है। शुरुआत मंत्री विजय शाह ने की थी। उनका मामला ठंडा नहीं पड़ा और दूसरे बयानवीर उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा सामने आ गए। उन्होंने कह दिया कि देश की सेना और एक-एक सैनिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चरणों में नतमस्तक है। इसके बाद सामने आए पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते। वे बोले की सेना ने ‘हमारे आतंकवािदयों’ को सबक सिखाया। भला विधायक क्यों पीछे रहते, एक ने कहा कि यूएन ने सीजफायर कराया तो दूसरे बोले कि अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप की बदौलत युद्ध विराम हुआ। भाजपा नेतृत्व अपने इन नेताओं से परेशान है और जवाब देते नहीं बन रहा। कुल मिला कर सत्तापक्ष ही विपक्ष की भी भूमिका में है।
प्रशिक्षित पार्टी को भी पड़ गई ‘प्रशिक्षण’ की जरूरत....!
कांग्रेस नेताओं-कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करने की योजनाएं बनें तो बात समझ में आती है, क्योंकि वहां बड़े-छोटे सभी नेता सार्वजनिक तौर पर कुभी बोल बैठते हैं। दिग्विजय सिंह, लक्ष्मण सिंह, सज्जन सिंह वर्मा, मुकेश नायक सहित तमाम नेता इसके उदाहरण हैं। ऐसे नेताओं को चाहे जितना प्रशिक्षित कर दीजिए लेकिन वे सुधरने वाले नहीं। वे शालीन और अनुशासन के दायरे में बोलना जानते ही नहीं। लेकिन भाजपा में नेताओं को प्रशिक्षण की जरूरत पड़ने लगे, तो अचरज वाली बात है। इससे पता चलता है कि यह पार्टी भी अब कांग्रेस की राह पर है। भाजपा के जिन नेताओं ने हाल में पार्टी लाइन से अलग हटकर बोला है, वे नए नवेले नहीं हैं। वे पार्टी के पुराने खांटी नेता हैं।
विजय शाह, जगदीश देवड़ा, भूपेंद्र सिंह, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रदीप पटेल, प्रीतम लोधी, पन्नालाल शाक्य जैसे नेता भाजपा में शुरू से हैं और पार्टी में चलने वाली प्रशिक्षणों की श्रंखला से गुजर कर ही निकले हैं। ऐसे नेता कुछ भी बोल रहे हैं तो किसे और क्या प्रशिक्षण दिया जाएगा? इन नेताओं के बयानों के कारण भाजपा के अंदर प्रशिक्षण की जरूरत पर बल दिया जाने लगा है। हाल के कुछ बयानों से वरिष्ठ तक इतने भयभीत हो गए हैं कि प्रहलाद पटेल से सवाल किया गया तो जवाब देने की बजाय, वे जय हिंद कह आगे बढ़ गए।
कार्यकर्ताओं के गले नहीं उतरा सांसद का यह निर्णय....
उज्जैन से भाजपा के सांसद हैं अनिल फिरोजिया। इनके एक निर्णय की तारीफ की जाए या आलोचना, इस बारे में निर्णय लेना आसान नहीं। प्रदेश में तबादलों से प्रतिबंध लगभग ढाई साल बाद हटाया गया है। बहुत सारे अधिकारी-कर्मचारी इसका इंतजार कर रहे थे। ऐसे में इन्हें और इनके परिजनों को नेताओं की सिफारिश की जरूरत पड़ती है क्योंकि बिना सिफारिशी पत्र के ट्रांसफर असंभव है। तबादले की चाह रखने वालों ने उज्जैन के सांसद अनिल फिरोजिया से भी मिलना प्रारंभ कर दिया। उन्होंने किसी की सिफािरश की या नहीं, पता नहीं लेकिन अपने कार्यालय के सामने बोर्ड लगा दिया कि कोई भी ट्रांसफर के संबंध में उनसे संपर्क न करे। इतना ही नहीं उनके कार्यालय के सामने एक सूचना और लगी है कि शस्त्र लाइसेंस के संबंध में उनसे कोई संपर्क न करे।
यह सच है कि ट्रांसफर और शस्त्र लायसेंस की सिफारिश में लेन-देन के आरोप लगते हैं। सांसद ने ऐसे आरोपों से बचने के लिए यह निर्णय लिया तो यह ठीक लगता है लेकिन दूसरी तरफ वे जनप्रतिनिधि हैं। कई ट्रांसफर ऐसे हो सकते हैं, जो जनहित में जरूरी हों। जनप्रतिनिधि होने के नाते उन्हें इनकी सिफारिश करना चाहिए। इसी तरफ कई बार आत्मरक्षार्थ शस्त्र लाइसेंस भी जरूरी होता है, इनकी सिफारिश में भी कोई बुराई नहीं। इस लिहाज से लोगों को उनका निर्णय गले नहीं उतर रहा।