रायपुर: छत्तीसगढ़ में मंगलवार को राज्य सरकार ने बड़ा फैसला किया। दरअसल सरकार ने स्कूलों में युक्तियुक्तकरण का आदेश जारी कर दिया। लोक शिक्षण संचालनालय ने इसे तत्काल प्रभाव से लागू लागू करने करने की बात कही है, अर्थात शैक्षणिक सत्र 2025-26 के प्रारंभ होने के पूर्व ही प्रदेशभर के विद्यालयों और शिक्षकों का सेटअप बदल जाएगा। वहीं इसके आदेश लागू होने के बाद प्रदेश के 10463 विद्यालय को मर्ज किया जाएगा। इसके अलावा शहरों के अतिशेष शिक्षकों कि ऐसे स्कूलों में ट्रांसफर कि जाएगी जहां पर शिक्षकों की कमी रहेगी।
सेटअप के आधार पर युक्तियुक्तकरण:
स्कूलों के मर्ज होने के बाद शिक्षकों के पदों में भी कमी आएगी। दूसरी ओर शिक्षक इसके विरोध में उतर आए हैं। 28 मई को उन्होंने मंत्रालय घेराव का निर्णय लिया है। आज प्रदेशभर के शिक्षक रायपुर में जुटेंगे। वे 2008 के सेटअप के आधार पर युक्तियुक्तकरण की मांग कर रहे हैं, जबकि सरकार द्वारा शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के आधार पर युक्तियुक्तकरण किया जा रहा है।
हटाए जाएंगे अतिशेष शिक्षक :
युक्तियुक्तकरण के बाद अतिशेष शिक्षकों पर भी गाज गिरेगी। आंकड़ों के मुताबिक, प्रदेश के 30,700 प्राइमरी स्कूलों में से 6,872 स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही टीचर है। 212 स्कूलों में एक भी शिक्षक नहीं हैं। दूसरी ओर 13,149 प्री मिडिल स्कूलों में से 255 स्कूलों में एक ही टीचर है। इसी कैटेगरी में 48 स्कूल ऐसे हैं, जहां एक भी टीचर नहीं है। स्कूल शिक्षा विभाग के अनुसार, इस पहल से शिक्षक विहीन एवं एकल शिक्षकीय शालाओं में अब अतिशेष शिक्षकों की तैनाती संभव होगी।
दो विधि से विद्यालयों का युक्तियुक्तकरण:
प्रथम : युक्तियुक्तकरण को आसान शब्दों में दो संस्थाओं को एक साथ मिलाना भी कह सकते हैं। विद्यालयों का युक्तियुक्तकरण दो विधि से किया जा रहा है। वर्तमान में एक ही कैंपस में यदि प्राथमिक, माध्यमिक, हाईस्कूल अथवा हायर सेकंडरी कक्षाएं संचालित होती है, तो उसे अलग-अलग स्कूल के रूप में गिना जाता है। अब ऐसा नहीं होगा।
द्वितीय : स्कूल शिक्षा सचिव सिद्धार्थ कोमल परदेशी के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्र में एक किलोमीटर के दायरे में स्थित 133 विद्यालयों को मर्ज किया गया है। ये वह विद्यालय है, जहां छात्र संख्या 10 से कम हैं। दूसरी ओर शहरी क्षेत्र में 500 मीटर के दायरे में स्थित 33 विद्यालयों का भी युक्तियुक्तकरण किया गया है। कुछ कदमों की दूरी में ही दो विद्यालयों की आवश्यकता नहीं होने के कारण यह व्यवस्था की गई है।