नई दिल्ली: देश के कॉलेज और विश्वविद्यालय अब छात्रों की सुरक्षा को लेकर और सख्त रुख अपनाने जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने रैगिंग की परिभाषा को और व्यापक करते हुए नए निर्देश जारी किए हैं। अब रैगिंग का मतलब सिर्फ शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न नहीं, बल्कि किसी छात्र की जाति, धर्म, लिंग, रंग, भाषा, क्षेत्र या आर्थिक पृष्ठभूमि को लेकर की गई अपमानजनक टिप्पणी भी होगी। यानी अब किसी को 'बिहारी', 'चिकी', 'जाट' या 'गरीब कहकर मजाक उड़ाना भी रैगिंग माना जाएगा। इसके लिए सख्त सजा तय होगी।
कैंपस में होगी और सख्ती:
एंटी-रैगिंग कमेटी अनिवार्य हर संस्थान को अपनी एंटी-रैगिंग कमेटी बनानी होगी, जो हॉस्टल, कैंटीन, टॉयलेट, लाइब्रेरी, बस स्टैंड आदि जगहों की निगरानी करेगी। सीसीटीवी निगरानी बढ़ेगी। अब 'डार्क जोन' जैसे जगहों पर भी कैमरे लगाने होंगे, जहां पहले नजर रखना मुश्किल होता था। छात्र संवाद और काउंसलिंग से होगी।
वीडियो के जरिए जागरूकता अभियान:
यूजीसी अब पोस्टर और सेमीनार के अलावा छोटे वीडियो क्लिप्स के जरिए भी छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को रैगिंग के खतरे और इसके परिणामों के प्रति जागरूक करेगा। इसका उद्देश्य छात्रों में मानसिक जागरूकता के साथ साथ भावनात्मक समझ भी विकसित करना है। अब सभी छात्रों को एडमिशन के समय रैगिंग न करने का शपथपत्र देना होगा, जिसमें छात्र और उसके माता-पिता यह लिखित रूप में स्वीकार करेंगे कि वे रैगिंग में शामिल नहीं होंगे. यह एक कानूनी दायित्व होगा।
वेबसाइट पर होगी पारदर्शिता:
हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी को अपनी वेबसाइट पर एंटी रैगिंग सेल से संबंधित सभी जानकारी जैसे कमेटी के सदस्य, मोबाइल नंबर, ईमेल और शिकायत पोर्टल सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करनी होगी। शिकायत मिलने पर संस्थान को तत्काल जांच और कार्रवाई करनी होगी। यूजीसी के इस फैसले का मकसद है कि छात्रों को किसी भी तरह की जातिगत, क्षेत्रीय या लैंगिक पहचान से अपमानित न किया जाए।