डॉ. नीरज पांडेय : आपातकाल स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे विवादस्पद एवं अलोकतांत्रिक काल कहा जाता है। आपातकाल को 50 वर्ष बीत चुके हैं, परंतु हर वर्ष जून मास आते ही इसका स्मरण ताजा हो जाता है। इसके साथ ही आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका भी स्मरण हो जाती है। संघ ने आपातकाल का कड़ा विरोध किया था। माणिकचंद्र वाजपेयी अपनी पुस्तक आपातकालीन संघर्ष गाथा में लिखते हैं- कांग्रेस ने 20 जून 1975 के दिन एक विशाल रैली का आयोजन किया तथा इस रैली में देवकांत बरुआ ने कहा था- ‘इंदिरा तेरी सुबह की जय, तेरी शाम की जय, तेरे काम की जय, तेरे नाम की जय’ और इसी जनसभा में अपने भाषण के दौरान इंदिरा गांधी ने घोषणा की कि वे प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र नही देंगी।
जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल का विरोध किया। उन्होंने इसे ‘भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि’ कहा। माणिकचंद्र वाजपेयी आगे लिखते हैं-जयप्रकाश नारायण ने रामलीला मैदान पर विशाल जनसमूह के सम्मुख 25 जून 1975 को कहा-सब विरोधी पक्षों को देश के हित के लिए एकजुट हो जाना चाहिए अन्यथा यहां तानाशाही स्थापित होगी। लोक संघर्ष समिति के सचिव नानाजी देशमुख ने वहीं पर उत्साह के साथ घोषणा कर दी, इसके बाद इंदिराजी के त्यागपत्र की मांग लेकर गांव-गांव में सभाएं की जाएंगी और राष्ट्रपति के निवास स्थान के सामने 29 जून से प्रतिदिन सत्याग्रह होगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एच वी शेषाद्रि की पुस्तक ‘कृतिरूप संघ दर्शन’ के अनुसार सभी प्रकार की संचार व्यवस्था, यथा-समाचार पत्र-पत्रिकाओं, डाक सेवा और निर्वाचित विधान मंडलों को ठप कर दिया गया। प्रश्न था कि जन आंदोलन को कौन संगठित करे? इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अतिरिक्त और कोई नहीं कर सकता था। संघ ने प्रारंभ से ही जन-जन से संपर्क की प्रविधि से अपना निर्माण किया है। जनसंपर्क के लिए वह प्रेस अथवा मंच पर कभी भी निर्भर नहीं रहा।
अत: संचार माध्यमों को ठप करने का प्रभाव अन्य दलों पर तो पड़ा, पर संघ पर उसका रंचमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। अखिल भारतीय स्तर के उसके केंद्रीय निर्णय, प्रांत,विभाग, जिला और तहसील के स्तरों से होते हुए गांव तक पहुच जाते हैं। जब आपात घोषणा हुई और जब तक आपातकाल चला, इस बीच संघ की यह संचार व्यवस्था सुचारू ढंग से चली। भूमिगत आंदोलन के ताने-बाने के लिए संघ की यह संचार व्यवस्था सुचारू ढंग से चली। भूमिगत आंदोलन के ताने-बाने के लिए संघ कार्यकर्ताओं के घर वरदान सिद्ध हुए और इसके कारण ही गुप्तचर अधिकारी भूमिगत कार्यकर्ताओं के ठौर ठिकाने का पता नही लगा सके। सर संघचालक बालासाहब देवरस को 30 जून को नागपुर स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। इससे पूर्व उन्होंने आह्णान किया था कि इस असाधारण परिस्थिति में स्वयंसेवकों का दायित्व है कि वे अपना संतुलन न खोएं। सर कार्यवाह माधवराव मुले तथा उनके द्वारा नियुक्त अधिकारी के आदेशानुसार संघ-कार्य जारी रखें तथा यथापूर्व जनसंपर्क, जनजागृति और जनशिक्षा का कार्य करते हुए अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का पालन करने की क्षमता जनसाधारण में निर्माण करें। संघ कार्यकर्ताओं ने उनके आह्णान के अनुसार ही कार्य किया।
सत्ता पक्ष के विरुद्ध जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को संघ के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं ने जारी रखा। मोहनलाल रुस्तगी की पुस्तक ‘आपातकालीन संघर्ष गाथा’ के अनुसार जयप्रकाश नारायण ने अपनी गिरफ्तारी से पूर्व ‘लोक संघर्ष समिति’ का आंदोलन चलाने के लिए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता नानाजी देशमुख को जिम्मेदारी सौंपी थी। जब नानाजी देशमुख गिरफ्तार हो गए तो नेतृत्व की जिम्मेदारी सुंदर सिंह भंडारी को सर्वसम्मति से सौंपी गई। आपातकाल लगाने से उत्पन्न हुई परिस्थिति से देश को सचेत रखने के लिए तथा जनता का मनोबल बनाए रखने के लिए भूमिगत कार्य के लिए संघ के कार्यकर्ता तय किए गए। संघ के स्वयंसेवकों ने सत्ता की नीतियों के विरोध में सत्याग्रह किया। इस कड़ी में 9 अगस्त 1975 को मेरठ में सत्याग्रह किया गया। उसी दिन मुजफ्फरपुर में जगह-जगह जोरदार ध्वनि करने वाले पटाखे फोड़े गए। तत्पश्चात, 15 अगस्त, 1975 को लाल किले पर जब प्रधानमंत्री भाषण देने के लिए माइक की ओर बढ़ीं उसी समय जनता के बीच से 50 सत्याग्रहियों ने नारे लगाए और पर्चे वितरित किए। इसके पश्चात 2 अक्टूबर को प्रधानमंत्री के सामने महात्मा गांधी की समाधि पर सत्याग्रह किया।
वास्तव में आपातकाल कांग्रेस के लिए हानिकारक रहा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आपातकाल का जमकर विरोध किया। इसके कारण उसे सत्ता के क्रोध का दंश झेलना पड़ा, किंतु आपातकाल के दौरान संघ द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शनों ने लोगों में उसे विख्यात कर दिया। इस प्रकार लोकतंत्र के विजय घोष के साथ संघ बढ़ता गया। उस समय संघ के 1300 प्रचारक थे उनमें से 189 प्रचारकों को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में थर्ड डिग्री की यातनाएं दी गईं। संघ को उस समय 50000 शाखाओं और आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में स्वयंसेवकों ने पूरी ताकत लगा दी और लोगों के साथ हाथ मिलाया जिनका साझा लक्ष्य लोकतंत्र की बहाली था।
विदेशी मीडिया के आपातकाल मे संघ के बारे मे विचार
प्रेस में सेंसरशिप के बाद भारतीय मीडिया के लिए आपातकाल की निष्पक्ष रिर्पोटिंग करना कठिन हो गया था लेकिन विदेशी मीडिया ने निष्पक्ष रिर्पोटिंग की। 4 अप्रैल 1976 मे न्यूज आफ टाइम्स मैगजीन के एक आलेख में जे एंथोनी लूकास लिखते हैं कि आरएसएस के कार्यकर्ता लोकतंत्र को बचाने के लिए देशव्यापी आंदोलन कर रहे हैं और इसके लिए सभी प्रकार की यातनाएं सह रहे हैं । 2 अगस्त 1976 में गार्जियन मे प्रकाशित लेख में यह खुलासा होता है कि संघ के कुछ कार्यकर्ता नेपाल से इस मूवमेंट को चला रहे हैं और यह भी प्रकाशित हुआ कि नेपाल सरकार ने इंिदरा सरकार को उन कार्यकर्ताओं को सरकार को सौंपने से इंकार कर दिया था । तत्कालीन गृहमंत्री बह्मानंद रेड्डी ने स्वीकार किया कि संघ के कार्यकर्ताओं का देशव्यापी आंदोलन केरल तक है अर्थात इसका असर पूरे दक्षिण भारत में हैे । इसी लेख में यह भी प्रकाशित हुआ कि कम्युनिस्ट पार्टी एवं मुस्लिम लीग ने सरकार का आपातकाल में समर्थन किया । सीपीई (एम) का यह विचार था कि विपक्षी पार्टियों से सख्ती से निपटने की योजना बनाना चाहिए । आज जो कम्युनिस्ट पार्टी, कांग्रेस पार्टी एवं मुस्लिम लीग संविधान एवं लोकतंत्र की बात करते हैं उन्हें आपातकाल के दौरान विदेशी मीडिया के द्वारा जो विचार उपरोक्त संगठन के लिए व्यक्त किए गए उनको जानना चाहिए। https://journals.econri.org/