रायपुर। छत्तीसगढ़ में संचालित शहरी वीरनारायण सिंह आयुष्मान स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत निजी अस्पतालों में हुए इलाज का ऑडिट पिछले दो महीने से पूरी तरह रुका हुआ है। इसकी वजह से स्टेट नोडल एजेंसी के पास बिना ऑडिट किए ही भारी संख्या में क्लेम पहुंच रहे हैं और उनका भुगतान भी किया जा रहा है।
स्वास्थ्य योजना के तहत प्रदेश में करीब 1300 पंजीकृत अस्पतालों में हितग्राहियों को नि:शुल्क इलाज की सुविधा दी जाती है। इलाज की गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए स्टेट नोडल एजेंसी एक टीपीए (थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर) कंपनी के माध्यम से ऑडिट टीम तैनात करती है। ये टीम मरीज के वास्तविक इलाज की ऑन-साइट जांच करती है।
पुरानी कंपनी का अनुबंध खत्म, नई कंपनी का चयन लंबित:
जानकारी के अनुसार, ऑडिट का काम देख रही एफएचपीएल (FHPL) कंपनी का अनुबंध 30 अप्रैल को समाप्त हो चुका है, लेकिन नई कंपनी के चयन की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई है। इसी कारण पिछले दो महीने से इलाज के दावों की कोई सघन जांच नहीं हो रही है।
अस्पतालों द्वारा फर्जी क्लेम का खतरा बढ़ा:
सूत्रों का कहना है कि ऑडिट प्रक्रिया के ठप होने से निजी अस्पतालों द्वारा अंधाधुंध तरीके से क्लेम फाइल किए जा रहे हैं, जिनकी वास्तविकता जांचे बिना ही स्टेट नोडल एजेंसी को भुगतान के लिए भेजा जा रहा है। यह स्थिति स्वास्थ्य योजना के पारदर्शिता तंत्र पर सवाल खड़े कर रही है।
एमबीबीएस डॉक्टर की अनिवार्यता, लेकिन अनुभव जरूरी:
स्वास्थ्य योजना के तहत ऑडिट के लिए टीपीए कंपनी को कम से कम तीन साल अनुभवी एमबीबीएस डॉक्टरों की तैनाती करनी होती है। इन डॉक्टरों को मरीज के इलाज की प्रक्रिया की जानकारी होनी चाहिए। कुछ समय पहले अनुबंधित डॉक्टरों को ऑडिट की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन क्लेम रिजेक्शन की अधिकता के कारण विवाद हुआ और अंततः इन डॉक्टरों को हटाना पड़ा।