रायपुर। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय कैबिनेट ने एक बड़ा और राहत भरा फैसला लेते हुए उन 2621 बर्खास्त सहायक शिक्षकों की पुनर्नियुक्ति को मंजूरी दे दी है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बीएड डिग्री धारक होने के कारण सेवा से हटा दिया गया था। मंगलवार को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते हुई थी बर्खास्तगी:
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया था कि प्राथमिक स्कूलों में शिक्षण कार्य के लिए बीएड (B.Ed) नहीं बल्कि डीएलएड (D.El.Ed) डिग्री अनिवार्य है। बावजूद इसके, पिछली कांग्रेस सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रोक के बावजूद बीएड धारकों की सहायक शिक्षक के पद पर नियुक्ति कर दी थी। हालांकि, नियुक्ति पत्र में यह उल्लेख किया गया था कि नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी।
जब सर्वोच्च न्यायालय ने बीएड धारकों को अयोग्य घोषित करते हुए स्पेशल लीव पिटिशन (SLP) को खारिज कर दिया, तब राज्य सरकार के पास इन शिक्षकों को बर्खास्त करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इस निर्णय से 2897 शिक्षक प्रभावित हुए, जिनमें से 2621 शिक्षकों के लिए अब पुनर्नियुक्ति का रास्ता खुल गया है।
आंदोलन के बाद हरकत में आया प्रशासन:
बर्खास्तगी के बाद प्रभावित शिक्षक लंबे समय से सड़क पर संघर्ष कर रहे थे। उनके आंदोलन और लगातार बढ़ते सामाजिक दबाव को देखते हुए मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने व्यक्तिगत रूप से इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था, जिसने मामले की गहराई से समीक्षा की।
हाल ही में मुख्यमंत्री निवास में हुई एक अहम बैठक में मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि बर्खास्त शिक्षकों के पक्ष में जल्द से जल्द समाधान निकाला जाए। इसके बाद कैबिनेट ने सहायक शिक्षक (विज्ञान प्रयोगशाला) के पदों पर पुनर्नियुक्ति की मंजूरी दे दी।
विज्ञान प्रयोगशाला पद के लिए पुनर्नियुक्ति:
सरकार अब इन शिक्षकों को “सहायक शिक्षक – विज्ञान प्रयोगशाला” के पद पर नियुक्त करेगी। इससे न सिर्फ शिक्षकों को राहत मिलेगी, बल्कि राज्य के स्कूलों में खाली पदों की पूर्ति भी हो सकेगी।
यह निर्णय उन हजारों शिक्षकों और उनके परिवारों के लिए उम्मीद की किरण लेकर आया है, जो बीते कई महीनों से अनिश्चितता और संघर्ष के दौर से गुजर रहे थे।
बर्खास्त शिक्षकों का संघर्ष: न्याय के लिए 100 दिन की लंबी लड़ाई
14 दिसंबर: आंदोलन की शुरुआत अंबिकापुर से रायपुर तक अनुनय यात्रा के रूप में हुई।
19 दिसंबर: रायपुर पहुंचने के बाद यात्रा धरने में बदल गई।
22 दिसंबर: धरना स्थल पर ही ब्लड डोनेशन कैंप लगाकर मानवता और संकल्प का परिचय दिया।
26 दिसंबर: सामूहिक मुंडन कर शिक्षकों ने अपना विरोध दर्ज कराया। महिलाओं ने भी बाल त्यागकर कहा—"यह त्याग हमारे भविष्य और अधिकार की पुकार है।"
28 दिसंबर: हवन और यज्ञ कर विरोध जताया गया। चेतावनी दी गई कि अगर मांगें नहीं मानी गईं, तो सांकेतिक जल समाधि ली जाएगी।
29 दिसंबर: आदिवासी महिला शिक्षिकाओं ने वित्त मंत्री ओपी चौधरी से मिलने की कोशिश की, लेकिन बिना मुलाकात के लौटना पड़ा।
30 दिसंबर: जल सत्याग्रह करते हुए शिक्षकों ने अटल बिहारी वाजपेयी की तस्वीर लेकर प्रदर्शन किया।
1 जनवरी: बीजेपी कार्यालय कुशाभाऊ ठाकरे परिसर का घेराव, पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया।
2 जनवरी: पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल धरना स्थल पर पहुंचे और आंदोलन को समर्थन दिया।
3 जनवरी: सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय कमेटी गठित की।
3 जनवरी: मांगें पूरी न होने पर सामूहिक अनशन की शुरुआत।
6 जनवरी: मतदान बहिष्कार के ऐलान के साथ राज्य निर्वाचन आयोग को ज्ञापन सौंपा।
10 जनवरी: NCTE की शवयात्रा निकालकर प्रतीकात्मक विरोध।
12 जनवरी: दंडवत यात्रा निकाली गई—माना से शदाणी दरबार तक।
17 जनवरी: पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज और धनेंद्र साहू ने आंदोलन को समर्थन दिया।
18 जनवरी: तड़के सुबह 5 बजे मंत्री ओपी चौधरी के बंगले का घेराव।
19 जनवरी: तेलीबांधा में सड़क पर चक्काजाम कर प्रदर्शन।
20 जनवरी: आचार संहिता लागू होने के कारण आंदोलन को स्थगित करना पड़ा।
आंदोलन के दौरान होली जैसे त्योहार पर भी शिक्षक घर नहीं लौटे।
दांडी मार्च, अर्धनग्न प्रदर्शन, भगत-राजगुरु-सुखदेव की वेशभूषा में सड़कों पर उतरे।
1 किलोमीटर लंबी चुनरी यात्रा निकाली गई, रामनवमी पर मंदिर जाने की कोशिश की गई।
खून से चिट्ठी लिखकर सरकार को अल्टीमेटम दिया गया।
राष्ट्रपति के दौरे के दौरान घुटनों के बल रेंगते हुए उनसे मिलने का प्रयास।
24 मार्च: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिलासपुर दौरे पर शिक्षकों का बड़ा प्रदर्शन।