Mughal Descendants : 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ नेतृत्व करने वाले भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय को अंग्रेजों ने देश से निर्वासित कर रंगून भेज दिया था, जहां 7 नवंबर 1862 को उनका निधन हुआ। उनके निधन के बाद मुगल वंश की कहानी गुमनामी में खो गई। आज उनके वंशज बेहद कठिन हालात में जीवन बिता रहे हैं।
चाय बेच रहे मुगलों के वंशज
इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा के अनुसार मुगलों के वंशज वर्तमान में पश्चिम बंगाल के हावड़ा में रहते हैं। जफर के पड़पोते की पत्नी सुल्ताना बेगम, जो अब करीब 60 वर्ष की हैं, हावड़ा की एक झुग्गी में दो कमरों के मकान में अपनी बेटी के साथ रहती हैं। वह जीवनयापन के लिए चाय की दुकान चलाती हैं। जिन मुगलों ने दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी से देश पर शासन किया, उनके वंशज आज गरीबी और गुमनामी में जी रहे हैं।
रंगून से हावड़ा आई सुल्ताना
सुल्ताना बेगम के पति मिर्जा बेदार बुख्त बहादुर शाह जफर के पड़पोते थे। अंग्रेजों के शासनकाल में उनका परिवार भी रंगून भेजा गया था। वहीं 1920 में मिर्जा बेदार का जन्म हुआ। अंग्रेजों ने परिवार को रंगून छोड़ने की अनुमति नहीं दी थी, लेकिन उनके नाना ने उन्हें फूलों से ढकी टोकरी में छिपाकर जमशेदपुर पहुंचाया। बाद में सुल्ताना का विवाह मिर्जा बेदार से हुआ। 1980 में पति के निधन के बाद वे हावड़ा आ गईं।
सुल्ताना को मिलती है पेंशन
सरकार ने बहादुर शाह जफर के उत्तराधिकारियों के लिए पेंशन की व्यवस्था की थी। आज सुल्ताना को केंद्र सरकार से मात्र 6,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है, जिससे गुजारा मुश्किल है। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने कपड़ों का छोटा व्यापार शुरू किया, पर सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने चाय की दुकान खोल ली और उसी से आज गुजर-बसर कर रही हैं।
सुल्ताना ने किया लाल किले पर दावा
सुल्ताना बेगम ने कई बार अपने “हक” की मांग करते हुए अदालतों में याचिकाएं दायर कीं। 2021 में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में लाल किले पर दावा किया, लेकिन अदालत ने याचिका देर से दायर होने के कारण खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर मई 2025 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी उनकी याचिका निरस्त कर दी।
क्या कहती है सुल्ताना
सुल्ताना बेगम का कहना है कि उन्होंने लाल किला या कोई संपत्ति नहीं मांगी थी, बल्कि केवल इतना चाहा था कि उन्हें अपने पूर्वज बहादुर शाह जफर के निवास स्थल का सम्मान और पहचान मिले। उनका कहना है कि अब न्यायपालिका से भी उम्मीद खत्म हो गई है, लेकिन मैं अपने वंश की पहचान के लिए संघर्ष जारी रखूंगी।