इंदौरी नमक हराम : "नमक हराम" – यह शब्द हम अक्सर उस व्यक्ति के लिए इस्तेमाल करते हैं जो किसी के भरोसे को तोड़कर गद्दारी करता है। भारतीय इतिहास में ऐसे कई पात्र मिलते हैं, जिन्होंने निजी स्वार्थ के लिए देश या अपने स्वामी से विश्वासघात किया। उन्हीं में से एक नाम है भवानी शंकर खत्री, जिसे ऐतिहासिक संदर्भों में देश के पहले ‘नमक हराम’ के रूप में देखा जाता है।
कौन था भवानी शंकर खत्री?
भवानी शंकर खत्री मूल रूप से इंदौर का निवासी था और मराठा साम्राज्य के प्रसिद्ध योद्धा महाराजा यशवंतराव होलकर का सैनिक और सहयोगी माना जाता था। कुछ मतभेदों के चलते उसने इंदौर छोड़ दिया और दिल्ली का रुख किया, जहां उसने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया।
कैसे बना अंग्रेजों का सहयोगी?
दिल्ली पहुंचने के बाद भवानी शंकर ने अंग्रेजों के लिए जासूसी का काम शुरू कर दिया। उसने मराठा सेना की रणनीतियों और खुफिया जानकारी अंग्रेज अधिकारियों को मुहैया कराई, जिससे 1803 में दिल्ली के पटपड़गंज क्षेत्र में हुए युद्ध में अंग्रेजों को निर्णायक बढ़त मिली। इस युद्ध में होलकर की सेना को पराजय झेलनी पड़ी।
इनाम में मिली हवेली
अंग्रेजों से मिली मदद के एवज में भवानी शंकर को दिल्ली के चांदनी चौक क्षेत्र में एक हवेली इनाम में दी गई। बाद में इसी हवेली को 'नमक हराम की हवेली' कहा जाने लगा। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जब जनता अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़ी हुई, तब इस हवेली को जनता के गुस्से का निशाना भी बनाया गया।
आज भी है इतिहास की गवाही
चांदनी चौक की ‘नमक हराम की हवेली’ आज भी वहां मौजूद है और अपने नाम के चलते लोगों में उत्सुकता का विषय बनी रहती है। यह हवेली न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि एक चेतावनी भी – कि देश और स्वामी से गद्दारी कभी भुलाई नहीं जाती।
नोट: इस लेख में प्रस्तुत जानकारियां ऐतिहासिक संदर्भों और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित हैं। इनका उद्देश्य केवल जानकारी देना है, न कि किसी व्यक्ति या समुदाय को अपमानित करना। आईएनएच न्यूज इस लेख की पूरी तरह से पुष्टि नहीं करता है।