भोपाल। चंडीगढ़ में फिलहाल मेयर के चुनाव को लेकर विवादास्पद स्थिति बनी हुई है। चुनाव में आने वाली अनियमितताओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे संज्ञान में ले लिया है। लेकिन क्या आपको पता है इसका कारण क्या है। मेयर पद इतना खास क्यों है। इस पद के दायित्व क्या हैं। क्यों आखिर सुप्रीम कोर्ट को इसमें आगे आना पड़ा। देखा जाए तो देश में मेयर एक ऐसा पद है जो महानगर कहे जाने वाले शहरों में शीर्ष निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। मेयर को ही महापौर या महापालिकाअध्यक्ष भी कहा जाता है। स्थानीय निकायों को देखा जाए तो कस्बों औऱ छोटे शहरों में नगर पालिका या नगर परिषद होती है। वहीं जब बात बड़े शहरों की हो तो उनमें नगरीय निकाय को नगर निगम कहा जाता है। इसी नगर निगम में जो शीर्ष प्रतिनिधि होता है उसे महापौर यानि मेयर कहा जाता है। इसे उस शहर का प्रथम नागरिक की उपाधि भी दी गई है।
कैसी होती है व्यवस्था
देश के बड़े शहरों में महानगरपालिका या फिर नगर निगम होता है। इनकी आबादी भी पांच लाख या इससे अधिक ही होती है। इस कारण इनका क्षेत्रफल भी काफी ज्यादा होता है। इनमें ही मेयर चुना जाता है जो इस बड़े शहर की व्यवस्थाओं की देखरेख करता है। वहीं छोटे शहरों में नगर पालिका द्वारा काम कराया जाता है। इसके लिए प्रमुख को नगर पालिका अध्यक्ष या नगर पालिका चेयरमैन कहते हैं।
खासे ताकतवर माने जाते हैं यहां के मेयर
देश में नगर निगम ब्रिटिश शाशन द्वारा चलाया गया था। जिसकी शुरुआत 1688 में मद्रास(चैन्नई) में हुई थी। इसके बाद 1762 में बाम्बे जिसे आज मुंबई और कलकत्ता जिसे आज कोलकाता कहा जाता है में शुरू कराया गया था। इनमें मेयर को ही सर्वेसर्वा माना जाता है। क्योंकि ये ही इस क्षेत्र के प्रथम नागरिक होते हैं कोई सांसद भी इनके बाद ही होता है। इस कारण कोलकाता, मुंबई और दिल्ली के मेयर खासे ताकतवर भी माने जाते हैं।
महापौर का चुनाव और उन्हें मान्यता
इस संदर्भ में रिकॉर्ड कहते हैं कि 1870 से लॉर्ड मेयो के प्रावधानों के बाद नगर पालिका में चुनाव होने लगे थे। उनका अध्यक्ष निर्वाचित होता था। 1892 में लार्ड रिपन के सुझावों के बाद स्थानीय निकायों की संरचना और स्वशासन को और बेहतर किया गया। 1992 का 74वां संवैधानिक संशोधन अधिनियम शहरी स्थानीय निकायों को 18 विभिन्न शक्तियों के हस्तांतरण के लिए पेश किया गया था, जिसमें महापौर का चुनाव और उन्हें मान्यता देना शामिल था। मेयरों के पास अब भी बहुत ज्यादा अधिकार और स्वायत्ता नहीं है उन्हें कुछ हद तक कामकाज, वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता ही हासिल है। हालांकि पहले उन्हें राज्य सरकार के नियंत्रण में रहना होता था, जो अब 1992 के संशोधित कानून के बाद खत्म हो चुका है। इस समय उनकी स्वायत्तता तो बढ़ी है लेकिन इसे और बढ़ाने की मांग की जाती रही है।
कैसे होते हैं चुनाव
भारत के कुछ राज्यों में इनका चुनाव सीधे होता है तो वहीं कुछ राज्यों में चुने हुए पार्षद या नगर निगम सदस्य इनको चुनते हैं। हालांकि नगरनिगमों और महापालिकाओं में कार्यकारी शक्ति सरकार द्वारा नियुक्त नगर निगम आयुक्त के पास होती है, जिसे लेकर अक्सर महापौर और नगरनिगम आयुक्त के बीच टकराव की स्थितियां भी बना करती हैं। कहा जा सकता है कि किसी शहर का मेयर नगरसेवकों के बीच से निर्वाचित होने के बावजूद एक औपचारिक पद रखता है। असली कार्यकारी, वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियों को सरकार द्वारा नियुक्त अधिकार नगरनिगम आयुक्त ही कंट्रोल करता है, जो आईएएस स्तर का अधिकारी होता है।
क्या हैं मेयर के अधिकार
– स्थानीय नागरिक निकाय को नियंत्रित करता है.
– निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ नगर की विकास योजनाएं बनाना और उन्हें लागू करना
– शहर की आवागमन, सफाई, विकास और योजना में भूमिका
– जल, सीवर, सौंदर्यीकरण और मूलभूत सुविधाओं पर योजना बनाना और लागू कराना
– निगम से संबंधित विभिन्न बैठकों में अध्यक्षता करना
– शहर के प्रोटोकॉल में वह सबसे ऊपर होते हैं
– नगर निगम में होने वाले सभी कार्य मेयर की मंजूरी के बाद ही किए जाते हैं।
– मेयर की मंजूरी के बाद ही किसी भी एजेंडे को सदन में रखा जाता है।
– शहर के विकास के लिए मेयर को 2 करोड़ रूपए की राशि प्रदान की जाती है. इस राशि को मेयर अपने वार्ड को छोड़कर पूरे शहर में कहीं भी खर्च कर सकता है।
क्या चाहिए योग्यता
– मेयर बनने के लिए व्यक्ति की उम्र 21 साल या उससे अधिक होनी चाहिए।
– न्यूनतम दसवीं कक्षा पास होनी चाहिए।
ये मिलती हैं सुविधाएं
– मेयर को लाल बत्ती वाली गाड़ी के साथ एक मेयर हाउस भी दिया जाता है.
– उसकी सैलरी अलग अलग महापालिकाओं के हिसाब से तय होती है कि उन्होंने इसे क्या तय किया हुआ है लेकिन उसे खर्च और आफिस संबंधी कई भत्ते मिलते हैं. वैसे उनका न्यूनतम वेतन प्रतिमाह 30 हजार रुपए होते हैं.