भोपाल। विंध्य अंचल की सतना लोकसभा सीट के लिए 1996 में हुआ चुनाव भुलाया नहीं जा सकता। तब प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा भाजपा से और अर्जुन सिंह तिवारी कांग्रेस से मैदान में थे। बसपा ने यहां से सुखलाल कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया था। चुनाव यादगार इसलिए है क्योंकि सुखलाल दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों अर्जुन सिंह और वीरेंद्र कुमार सकलेचा को हरा कर बाजी मार ले गए थे। सतना में एक बार फिर इसी तरह के मुकाबले के आसार हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद अपने सांसद गणेश सिंह पर फिर भरोसा किया है और कांग्रेस ने उन्हें चुनाव हरा कर विधायक बने सिद्धार्थ को ही उनके मुकाबले खड़ा किया है। बता दें कि सिद्धार्थ 1996 में अर्जुन सिंह और वीरेंद्र कुमार सकलेचा को हराने वाले सुखलाल कुशवाहा के ही बेटे हैं। बसपा की ओर से मैदान में हैं मैहर क्षेत्र से 4 बार विधायक रहे नारायण त्रिपाठी।
क्षेत्र में ब्राह्मणों की तादाद सर्वाधिक लगभग साढ़े 5 लाख है। बसपा का अपना वोट बैंक है ही। इनकी दम पर नारायण भी जीत की उम्मीद कर रहे हैं। इसी आधार पर सतना में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। सतना विधानसभा चुनाव में पराजय से साफ है कि गणेश सिंह से लोग प्रसन्न नहीं हैं। गणेश सिंह मोदी लहर के भराेसे जीतने का दावा करते हैं, लेकिन लोगों की नाराजगी को काबू में करना उनके लिए बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के सिद्धार्थ लगातार चौथा चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा के दो चुनाव वे जीत चुके हैं। गांव- गांव फैला कुशवाहा समाज का वोट उनकी ताकत है। बसपा के नारायण दल बदल में अव्वल हैं। ब्राह्मण समाज में पकड़ उनकी ताकत बन सकती है।
क्या रहेंगे मुद्दे?
सतना ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां राष्ट्रीय के साथ प्रादेशिक और स्थानीय मुद्दे भी चुनाव में असर डालते हैं। भाजपा यहां मोदी लहर पर सवार है, लेकिन सांसद गणेश सिंह से नाराजगी भी मुद्दा है। व्यक्तिगत नाराजगी के कारण ही वे विधानसभा का चुनाव हार गए। सतना में जातीय समीकरण भी मुद्दों की तरह काम करते हैं। कई समाजों की दूसरे समाजों से नहीं बनती। इसकी वजह से एक समाज एक जगह जाता है तो प्रतिद्वंद्वी समाज दूसरे दल की ओर रुख कर लेता है। भाजपा केंद्र एवं राज्य सरकार के कामों के बूते वोट मांगेगी और कांग्रेस उनकी नाकामियां गिनाएगी। कांग्रेस की अपनी गारंटियां भी चुनाव का मुद्दा हैं।
सतना जिले को मिला कर बनी लोस सीट
सतना लोकसभा सीट में कोई मिलावट नहीं है। जिले की सभी सात विधानसभा सीटें इसके तहत आती हैं। ये सीटे हैं चित्रकूट, रैगांव, सतना, नागौद, मैहर, अमरपाटन और रामपुर बघेलान। कोई दूसरा जिला इसमें शामिल नहीं है। क्षेत्र में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और अमरपाटन से विधायक राजेंद्र सिंह भी ताकतवर हैं। अजय सिंह 2014 में यहां से चुनाव लड़ चुके हैं और लगभग 8 हजार वोटों के अंतर से ही हारे थे। उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री स्व अर्जुन सिंह भी यहां से सांसद रहे हैं। इस नाते उनके समर्थकों की अच्छी खासी तादाद क्षेत्र में है। यदि सिद्धार्थ को अजय सिंह और राजेंद्र कुमार सिंह का साथ मिल जाए तो वे कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
ब्राह्मण ज्यादा, पिछड़ा वर्ग भी कम नहीं
सतना लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाताओं की तादाद सबसे ज्यादा लगभग साढ़े 5 लाख के आसपास है। यह वर्ग गणेश सिंह से नाराज बताया जाता है। इसका लाभ बसपा के नारायण त्रिपाठी को मिल सकता है। दलितों का एक हिस्सा बसपा को वोट देता ही है। दूसरे नंबर पर लगभग डेढ़ -डेढ़ लाख पटेल और कुशवाहा समाज के मतदाता हैं। इनका क्रमश: भाजपा के गणेश और कांग्रेस के सिद्धार्थ के पास जाना तय है। इनके अलावा पिछड़े वर्ग की अन्य जातियां भी काफी तादाद में हैं। इनका भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटवारा हो सकता है।
विधानसभा के लिहाज से भाजपा का पलड़ा भारी
विधानसभा चुनाव में मिली सीटें और वोटों के लिहाज से सतना में भाजपा का पलड़ा भारी है। क्षेत्र की दो सीटों सतना और अमरपाटन में ही कांग्रेस का कब्जा है जबकि शेष पांच सीटें भाजपा के पास हैं। कांग्रेस से खुद सिद्धार्थ सतना से विधायक हैं और दूसरे अमरपाटन से पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र कुमार सिंह। कांग्रेस का दोनों सीटों में जीत का अंतर 10 हजार 531 वोटों का ही रहा, जबकि भाजपा ने पांचों सीटें 1 लाख, 4 हजार 74 वोटों के अंतर से जीती हैं। इस तरह भाजपा को विधानसभा चुनाव मेंे ही लगभग 95 हजार वोटों की बढ़त हासिल है। सतना भाजपा के गढ़ के रूप में भी तब्दील है। 1998, 1999 के दो चुनाव रामानंद सिंह जीते और चार बार से गणेश सिंह सांसद हैं।