रतलाम महालक्ष्मी मंदिर : रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में सजावट के साथ कुबेर के खजाने की तरह नजर आता है। भक्त अपने घरों की तिजोरियों से भी नोट लेकर आते हैं, ताकि वे इस दिव्य आयोजन का हिस्सा बन सकें। देशी-विदेशी नोट और आभूषणों के साथ माता के दर्शन होंगे। मंदिर का कोना-कोना नकदी और जेवरात से सजाया गया है।
भारत का यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां दीपावली पर्व पर करोड़ों रुपए के साथ ही आभूषणों से सजावट की जाती है। ये रुपए और आभूषण भक्तों द्वारा दिए जाते हैं। दीपावली पर्व के समापन पर भाईदूज के दिन प्रसादी के रुपए में भक्तों को उनके नोट और आभूषण लौटा दिए जाते हैं। अभी तक मंदिर में 1 करोड़ 47 लाख रुपए की गिनती हो चुकी है जबकि आभूषणों का अनुमान लगाया जा रहा है कि वह 3 करोड़ से ज्यादा के हैं।
500 रुपए तक के नोटों से सजावट
रतलाम के माणक चौक स्थित इस मंदिर में नोटों और आभूषणों से सजावट की शुरुआत इस बार शरद पूर्णिमा पर 14 अक्टूबर से हुई थी। मंदिर में भक्त निशुल्क सेवा भी देते हैं। कोई नोटों की लड़ियां बनाता है तो कोई नोट लेकर आने वाले श्रद्धालुओं की एंट्री करता है। कुछ भक्त दिन से लेकर रात तक सजावट में लगे रहते हैं। 20, 50, 100 और 500 रुपए के नए नोटों से मंदिर को सजाया जाता है।
नोटों से बने वंदनवार
सजावट के लिए रतलाम के अलावा मंदसौर, नीमच, इंदौर, उज्जैन, नागदा, खंडवा, देवास समेत राजस्थान के कोटा से आए भक्तों ने अपनी श्रद्धानुसार राशि जमा कराई है। महालक्ष्मी के कई भक्त तो ऐसे भी हैं, जो एक साथ 5 लाख रुपए तक मंदिर में रखकर जाते हैं। श्रद्धालुओं द्वारा दिए जाने वाले नोटों से मंदिर के लिए वंदनवार बनाया जाता है। महालक्ष्मी का आकर्षक श्रृंगार कर गर्भगृह को खजाने के रूप में सजाया जाता है।
राजा रतन सिंह करते थे पूजा
मान्यता है कि करीब 200 वर्ष पूर्व राजा रतन सिंह कुल देवी के रूप में माता का पूजन करते थे। राजा वैभव, निरोगी काया और प्रजा की खुशहाली के लिए पांच दिन तक अपनी संपदा मंदिर में रखकर आराधना कराते थे। तभी से ये परंपरा चली आ रही है। रतलाम के महालक्ष्मी मंदिर में माता के 8 रूप अधी लक्ष्मी, धान्य लक्ष्मी, लक्ष्मीनारायण, धन लक्ष्मी, विजयालक्ष्मी, वीर लक्ष्मी, संतान लक्ष्मी और ऐश्वर्य लक्ष्मी मां विराजमान हैं।