भोपाल। खंडवा सीट पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता आया है। भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान इस सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने वाले सांसद हैं। यहां की जनता ने उनको पांच बार चुनकर संसद पहुंचाया है। 1996, 1998, 1999 और 2004 का चुनाव जीतकर उन्होंने इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा। हालांकि, 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके अगले चुनाव 2014 में उन्होंने इस सीट पर वापसी की और शानदार जीत दर्ज की। नंदकुमार के निधन के बाद 2021 उपचुनाव में भाजपा की जीत ज्ञानेश्वर पाटिल ने पूर्णी को 82,140 वोटों से हराकर दर्ज कराई थी। पाटिल को जहां 632,455 वोट मिले, वहीं कांग्रेस के पूर्णी को 5,50,315 वोट हासिल हुए थे। ज्ञानेश्वर पाटिल को कुल वोटों में 49.85 वोट तो पूर्णी को 43.38 प्रतिशत वोट मिले थे।
खंडवा में लोकसभा का पहला चुनाव 1962 में हुआ था। कांग्रेस के महेश दत्ता ने पहले चुनाव में जीत हासिल की। कांग्रेस ने इसके अगले चुनाव 1967 और 1971 में भी जीत हासिल की। 1977 में भारतीय लोकदल ने इस सीट पर कांग्रेस को हरा दिया। कांग्रेस ने इस सीट पर वापसी 1980 में की। तब शिवकुमार सिंह ने इस सीट पर कांग्रेस की वापसी कराई थी।
कांग्रेस ने इसका अगला चुनाव भी जीता। 1989 में भाजपा ने पहली बार इस सीट पर जीत हासिल की, हालांकि भाजपा की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक सकी और 1991 में उसे कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1996 में भाजपा की ओर से नंदकुमार चौहान मैदान में उतरे और उन्होंने खंडवा में भाजपा की वापसी कराई। वे अगले 3 चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे। 2009 में अरुण सुभाष चंद्रा ने यहां पर कांग्रेस की वापसी कराई। 2009 में हारने के बाद नंदकुमार ने एक बार फिर यहां पर वापसी की और अरुण सुभाष चंद्र को मात दी। भाजपा को यहां पर 6 बार तो कांग्रेस को 7 बार जीत मिली है।
दो प्रमुख पार्टियों के बीच होता है मुकावला
खंडवा सीट पर मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होता आया है। भाजपा के नंदकुमार सिंह चौहान इस सीट से सबसे ज्यादा बार जीतने वाले सांसद हैं। यहां की जनता ने उनको 5 बार चुनकर संसद पहुंचाया है। 1996, 1998, 1999 और 2004 का चुनाव जीतकर उन्होंने इस सीट पर अपना दबदबा बनाए रखा। हालांकि, 2009 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके अगले चुनाव 2014 में उन्होंने इस सीट पर वापसी करते हुए शानदार जीत दर्ज की। नंदकुमार के निधन के बाद 2021 उपचुनाव में भाजपा की जीत ज्ञानेश्वर पाटिल ने पूर्णी को 82,140 वोटों से हराकर दर्ज कराई थी। पाटिल को जहां 632,455 वोट मिले वहीं कांग्रेस के पूर्णी को 5,50,315 वोट हासिल हुए थे। ज्ञानेश्वर पाटिल को कुल वोटों में 49.85 वोट मिले, वहीं पूर्णी को 43.38 प्रतिशत वोट मिले थे।
क्या रहेंगे मुद्दे?
ग्राम रूधि में ग्रोथ सेंटर बनाया गया, लेकिन कोई बड़ी इंडस्ट्री यहां नहीं आ पाई है। पानी की समस्या को दूर करने 106 करोड़ रुपए की नर्मदा जल योजना सौगात मिली, लेकिन पाइपलाइन बार-बार फूटने से पानी की समस्या अब भी बरकरार है। वहीं, शहर को रिंगरोड, बायपास और ट्रांसपोर्ट नगर की सौगात तो मिली लेकिन वह भी अधूरे हैं। ट्रैफिक की समस्या शहर में आज भी बरकरार है। इसके अलावा इंदौर-इच्छापुर हाईवे पर बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिसके कारण लगातार यहां एक्सीडेंट की घटनाएं बढ़ रही हैं। खंडवा रिंग रोड, बायपास अधूरा है और बुरहानपुर के 8-10 हजार पावरलूम अब भी बंद पड़े हैं।
अरुण यादव की जगह नरेंद्र पटेल को मौका
रविवार को कांग्रेस को एक बड़ा झटका तब लग गया, जब जिला संगठन मंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता रिंकू सोनकर भाजपा में शामिल हो गए। मंत्री तुलसी सिलावट और पूर्व मंत्री उषा ठाकुर, सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई है। ऐसे में अब चुनावी समीकरण कुछ हद तक प्रभावित होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इधर, कांग्रेस में रविवार को अरुण यादव की जगह नरेंद्र पटेल को प्रत्याशी घोषित किया गया है। नरेंद्र पटेल ने अरुण यादव को प्रत्याशी न बनाए जाने पर कहा कि यह अरुण यादव का निजी निर्णय है, लेकिन उन्होंने देखा कि मैं लगातार दो लोकसभा चुनाव हार चुका हूं, यदि खंडवा लोकसभा क्षेत्र की जनता मुझे चुनती नहीं है, तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी के पक्ष में निर्णय लिया कि जिस पर सभी नेताओं की सहमति हो उसे कैंडिडेट बनाया जाए, उसमे मेरा नाम आया। ठाकुर राजनारायण सिंह ने मेरे नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका समर्थन अरुण यादव ने किया।
खंडवा लोकसभा क्षेत्र में 8 विधानसभा सीटें
खंडवा लोकसभा क्षेत्र के तहत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं। बागली, पंधाना, भीखनगांव, मंधाता, नेपानगर, बदवाह, खंडवा, बुरहानपुर यहां की विधानसभा सीटें हैं। यहां की 8 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा, 4 पर कांग्रेस और 1 सीट पर निर्दलीय का कब्जा है। मालवा और निमाड़ को मिलाकर बना खंडवा लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा और कांग्रेस में जोरदार मुकाबला होने वाला है। खंडवा कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ हुआ करता था। कांग्रेस ने यहां 7 बार जीत दर्ज की, बाद में यह भाजपा का किला बन गया है। 1996 के बाद भाजपा यहां लगातार जीत दर्ज कर रही है। खंडवा से भाजपा और कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव जीतते रहे हैं। यहां कुशाभाई ठाकरे ने भी जीत हासिल की थी। इसके साथ ही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे दिवंगत नंदकुमार सिंह चौहान यहां से 6 बार चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे थे। वर्तमान में भाजपा के ज्ञानेश्वर पाटिल यहां के सांसद हैं।
यहां जनसंख्या के आधार पर जातीय समीकरण:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार खंडवा की जनसंख्या 2728882 है। यहां की 76.26 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 23.74 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है। खंडवा में 10.85 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति और 35.13 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है। चुनाव आयोग के आंकड़े के अनुसार 2014 के लोकसभा चुनाव में यहां पर 17,59,410 मतदाता थे। इनमें से 8,46, 663 महिला मतदाता और 9,12,747 पुरुष मतदाता थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर 71.46 फीसदी मतदान हुआ था। खंडवा लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति का खासा दबदबा है। यहां एससी-एसटी वर्ग के 7 लाख 68 हजार 320 मतदाता हैं। 4 लाख 76 हजार 280 ओबीसी के और अल्पसंख्यक 2 लाख 86 हजार 160 की संख्या में हैं। सामान्य वर्ग के 3 लाख 62 हजार 600 मतदाता हैं। इसके अलावा अन्य की संख्या 1500 है। इस सीट पर आदिवासी और अल्पसंख्यक वोट बैंक को निर्णायक माना जा सकता है।
कुछ खास मुद्दों का पड़ेगा सीधा असर:
दिवंगत नंद कुमार सिंह चौहान खंडवा लोकसभा से लगातार चार बार सांसद रहे हैं। लेकिन साल 2009 के चुनाव में यहां पर कांग्रेस की वापसी हुई। अरूण यादव यहां से सांसद चुने गए और केंद्र में मंत्री बने। इस बीच साल 2014 और 2019 के चुनाव में नंदकुमार सिंह चौहान छठवीं बार इस सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे। नंदकुमार सिंह के कोरोना से निधन की सहानुभूति का लाभ इस सीट से भाजपा को मिल सकता है, लेकिन कई ऐसे मुद्दे हैं जिनका असर भी पड़ सकता है। यहां इस चुनाव में वोटरों की नाराजगी का सामना भी भाजपा को करना पड़ सकता है।