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परिवार के सपोर्ट से मिला इन हसीनाओं को खूबसूरत मुकाम, जानिए अनसुनी कहानी अभिनेत्री की जुबानी

परिवार के सपोर्ट से मिला इन हसीनाओं को खूबसूरत मुकाम, जानिए अनसुनी कहानी अभिनेत्री की जुबानी

हमारी जिंदगी में परिवार (Family) की अहमियत क्या होती है इसका जवाब कोई भी दे सकता है। परिवार का साथ, परिवार का प्यार सबकी जिंदगी में बहुत मायने रखता है। परिवार और प्यार का नाता अटूट है। यह ऐसी जगह है जहां हमें सूकून मिलती है तो जब कभी हम अपनी मंजिल की राह में डगमगा कर निराश-हताश होते हैं तो परिवार हमारे कंधे पर हाथ रख हमें संभालता है। आज इस आर्टिकल में तीन जानी-मानी अभिनेत्रियां सहित मिस यूनिवर्स बता रही हैं कि खूबसूरत मुकाम हासिल करने की राह में इनके परिवार का कितना योगदान रहा है।

परिवार के बिना कोई अकेला कामयाब नहीं हो सकता : विद्या बालन (Vidya Balan)

मैं अपने परिवार से बहुत प्यार करती हूं। खासकर अपनी दादी-नानी को तो मैं बहुत ज्यादा एडमायर करती हूं। दरअसल, मैं अपने परिवार की दूसरी बेटी हूं। मेरी बहन प्रिया मुझसे तीन साल बड़ी है। उसके जन्म पर तो घर में बहुत धूम-धाम से सेलिब्रेशन हुआ। लेकिन मेरे जन्म पर पड़ोसियों से मेरी मां को बहुत उलाहनें मिलीं कि फिर बेटी को जन्म दिया। तब मेरी दादी-नानी ने ही स्थिति संभाली थी। मैं अपनी नानी-दादी की गट फीलिंग को सलाम करती हूं। मेरे अप्पा ने भी कभी हम बेटियों के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया। वह अकेले अर्निंग पर्सन थे। लेकिन अप्पा ने कभी अपनी तंगी का हवाला देकर हमारी ख्वाहिशों को अधूरा नहीं छोड़ा। जहां तक मेरी फिल्म इंडस्ट्री में आने की बात है, मेरे परिवार ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। मुझे अपना एक किस्सा याद आता है। बॉलीवुड के नामी फिल्म मेकर ने मुझे फिल्म के लिए फाइनल कर लिया था। पूरी यूनिट शूटिंग के लिए न्यूजीलैंड चली गई, लेकिन मुझे साथ नहीं ले गई। बाद में पता चला कि उन्होंने मुझे चुपचाप रिप्लेस कर दिया था। मैं बहुत ज्यादा हताश थी। इस सदमे में मैं नरिमन प्वाइंट से कड़ी धूप में चलते-चलते बांद्रा पहुंच गई। अप्पा और अम्मा ने एक टैक्सी की और मुंबई की सड़कों पर मुझे ढूंढ़ने निकल पड़े। मेरे परिवार ने हमेशा मेरा उत्साह बनाए रखा। कभी हतोत्साहित नहीं होने दिया। मेरे पिता ने मेरी एक फिल्म के प्रीमियर में मुझे मैसेज करके कहा था, 'ग्रेट परफॉर्मेंस विद्या। वी आर प्राउड ऑफ यू।' उनके प्रोत्साहन भरे शब्द मेरे ऊपर जैसे जादू कर गए। मैं बस अंत में इतना कहूंगी कि परिवार के बिना कोई अकेला कामयाब नहीं हो सकता।

आज मैं जो कुछ भी हूं अपने परिवार के सहयोग से हूं : हेमा मालिनी (Hema Malini)

मेरा जन्म एक सामान्य परिवार में हुआ। मैं अपने दो बड़े भाइयों की इकलौती बहन हूं। पिताजी सरकारी कर्मचारी थे, जबकि मां जया लक्ष्मी चक्रवर्ती हाउस वाइफ थीं। मेरी मां हमारे परिवार की धुरी थीं। उन्होंने जिस खूबसूरती से अपने मायके को संभाला हुआ था, वैसे ही उन्होंने अपने ससुराल में भी अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं। उन्हें अपने मायके से प्यार-संबल हमेशा मिलता रहा। इस वजह से उनमें एक आत्मविश्वास बना रहा। उस समय मेरी मां घर से जुड़े फैसले स्वतंत्र रूप से लिया करती थीं। मैं आज जो कुछ भी हूं, जैसी भी हूं, इसका श्रेय भी मेरी मां को ही जाता है। उन्होंने परिवार की खुशियों के लिए बहुत कुछ किया। मेरी मां ने ही मुझे भारतनाट्यम सीखने पर जोर दिया। जबकि मैं ऐसा नहीं चाहती थी। लेकिन मुझे मां की बात माननी पड़ी। मैं कह सकती हूं कि मां की वजह से ही आज मैं और मेरी बेटियां ईशा और आहना देश की गिनी-चुनी क्लासिकल डांसर्स में हैं। शुरुआत में एक बार किसी फिल्ममेकर ने स्टेज पर मेरा डांस परफॉर्म देखकर मुझे साउथ फिल्म के लिए ऑफर किया था। चूंकि मैं एक रूढ़िवादी परिवार से हूं, ऐसे में फिल्मों में जाना मेरे लिए आसान नहीं था। लेकिन मेरी मां ने परिवार के लोगों को प्यार से समझाया, कंविंस किया कि अगर मुझमें टैलेंट है तो आजमाने में क्या हर्ज है। मां के समझाने के बाद सभी मान गए। हालांकि किसी वजह से मैं साउथ की फिल्म नहीं कर पाई, जिससे परिवार हतोत्साहित हुआ था। हालांकि जल्द ही मुझे हिंदी फिल्मों से ऑफर आने लगे। लेकिन पिछली इंसीडेंस की वजह से अप्पा ने जाने से मना कर दिया। फिर भी मां नहीं रुकीं। वह मेरे साथ मुंबई आकर रहने लगीं। मेरी पहली डेब्यू फिल्म 'सपनों का सौदागर' फ्लॉप रही। लेकिन मैं फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रही। फिल्म 'जॉनी मेरा नाम' से मैं हिंदी फिल्मों की बड़ी अभिनेत्रियों में शुमार हो गई। मेरा करियर बहुत ही शानदार रहा। मैं तीन शिफ्ट्स में शूटिंग करती, विदेश जाती, डांस शोज करती। मेरी इस पूरी व्यस्तता के दौरान मेरा परिवार खासकर मां और मेरी कजिन प्रभा मेरा संबल बनकर मेरे साथ रहे। जब मां साथ ना होतीं तो प्रभा मेरे साथ होती। पिताजी को जब हार्ट अटैक आया और वो नहीं रहे, तब प्रभा ने ही मेरे पूरे परिवार को संभाला था। मेरी मां कई वर्षों तक मेरे मैनेजर-सेक्रेटरी का काम संभालती रहीं। भाई मेरे स्टेज शोज की व्यवस्था देखते थे। इसी तरह शादी के बाद धरम जी ने भी मुझे पूरा सपोर्ट दिया। आज हमारी शादी को बयालीस साल हो चुके हैं। उन्होंने और मेरे समूचे परिवार ने मुझमें बहुत हिम्मत भरी है। आज मैं जो कुछ भी हूं अपने परिवार के सहयोग से हूं। ऐसा प्यारा परिवार पाकर अपने आपको सौभाग्यशाली मानती हूं।

कपूर परिवार ने मुझे हमेशा अपनी पलकों पर बैठाया : नीतू सिंह (Neetu Singh)

बचपन में मेरे लिए मेरा पूरा परिवार सिर्फ मेरी मां ही थीं। दरअसल, मेरे पिता दर्शन सिंह का अकस्मात निधन हो गया था। उस समय मैं सिर्फ चार साल की थी। पिता के जाने के बाद घर की पूरी जिम्मेदारी मां पर आ गई। घर की माली हालत बहुत अच्छी नहीं थी। उन्हीं दिनों एक फिल्ममेकर ने मुझे किसी पारिवारिक कार्यक्रम में डांस करते हुए देखा था। उन्होंने मेरी मां से इजाजत लेकर मुझे बाल कलाकार के रूप में लॉन्च किया। मेरी मां ने मेरा साथ कभी नहीं छोड़ा। वह हर पल मेरे साथ, मेरा हमसाया बनकर रहीं। मुझे याद है, जब फिल्म 'बॉबी' के लिए राज साहब को ऋषि कपूर के अपॉजिट हीरोइन की कास्टिंग करनी थी, तब उन्होंने डिंपल कपाड़िया को चुना था। मेरा सेलेक्शन ना होने पर मैं बहुत रोई थी। लेकिन मेरी मां ने मुझे टूटने नहीं दिया। उन्होंने मुझे सहारा दिया, मुझे संभाला। इसके बाद मुझे कई फिल्मों में ऋषि जी के साथ काम करने का मौका मिला। हम दोनों को एक-दूसरे के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। जल्द ही हम दोनों ने शादी कर ली। शादी के संबंध में खुद राज साहब और उनकी पत्नी कृष्णा कपूर ने मेरी मां से बात की थी। उन्होंने मेरी मां को आश्वस्त किया कि वह मुझे खुश रखेंगी, तो मां मान गईं। शादी के बाद मुझे जो नया परिवार मिला, वह बहुत ही प्यारा और सपोर्टिव था। मुझे यह कहते हुए बड़ी खुशी हो रही है कि कपूर परिवार ने मुझे हमेशा अपनी पलकों पर बैठाया। मुझे याद है कि जब शादी के बाद पहली बार मैंने सुबह पापा जी, मम्मी जी के लिए नाश्ता बनाया, सर्व करने के लिए मैं खुद गई तो उस समय उन्होंने कहा, 'तुम यह सब मत करो। इस काम के लिए घर में बहुत लोग हैं। तुम चिंटू (ऋषि कपूर) के साथ जिंदगी का लुत्फ उठाओ।' मैं बड़ी ही खुशकिस्मत हूं जो मुझे कपूर परिवार के एक-एक सदस्य का प्यार मिला, उनके प्यार और अपनेपन से मेरे जीवन में रौनक हमेशा बनी रही।

परिवार के प्यार ने मुझे आगे बढ़ने का सही रास्ता दिखाया : हरनाज कौर संधू (Harnaaz Kaur Sandhu)

मुझे अपने परिवार से बचपन से ही बहुत लाड़-प्यार मिला। मैं अपने भाइयों की अकेली बहन हूं। ऐसे में लाड़-प्यार मिलना तो लाजिमी था। लेकिन मेरे परिवार के लाड़ ने मुझे बिगाड़ा नहीं। बल्कि उनके लाड़ की वजह से मैं और जिम्मेदार बन गई। इसमें मेरे पूरे परिवार की भूमिका है। एक ओर मेरी मां रविंदर कौर संधू गायनेकोलॉजिस्ट हैं तो दूसरी ओर पिताजी प्रीतमपाल संधू रियल एस्टेट में काम करते हैं। मैं छुट्टी वाले दिन शनिवार-रविवार को अपनी मां के साथ मेडिकल कैंप जाया करती थी। कैंप में जाकर मैंने बहुत कुछ सीखा-जाना। खासकर देश के निम्न वर्ग की महिलाओं से बातचीत का मौका मिला। तभी मैंने यह समझा कि महिलाएं अपने परिवार की देख-रेख करते हुए अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह हो जाती हैं। कैंप में आने वाली ज्यादातर महिलाएं एनीमिया की शिकार हुआ करती थीं। कैंप में मुझे इस तरह की बहुत सारी बातों का एक्सपीरियंस हुआ। मैं मानती हूं, यहीं से मेरे उज्ज्वल भविष्य की नींव पड़ी। मैंने अकसर देखा है कि परिवारों में बेटों को ज्यादा अहमियत दी जाती है, उन्हें स्पेशल तरीके से ट्रीट किया जाता है। जबकि लड़कियों को कमतर आंका जाता है। लेकिन मेरे साथ ऐसा कभी नहीं किया गया। सच बताऊं तो मेरे परिवार में बेटी के लिए मन्नतें मांगी गई थीं। मेरा जन्म मेरे परिवार के लिए खुशियों की सौगात थी। इस वजह से मुझे बहुत ज्यादा प्यार मिला। मेरे चाचा-चाची तो मुझे खेतों में भी ले जाते थे ताकि मैं किसानों की जिंदगी को नजदीक से देख-जान सकूं। उनके काम, उनकी मेहनत को समझ सकूं। तभी मैं कहती हूं कि मेरी ग्रोथ ऑल राउंडर की तरह की गई। सच कहूं तो परिवार में एक ही लड़की होने की वजह से मुझे बहुत प्यार मिला। परिवार के प्यार ने ही मुझे आगे बढ़ने का सही रास्ता दिखाया। जब मैं विदेश में मिस यूनिवर्स के फाइनल में थी तो मम्मी, चाची, दादी, नानी सभी गुरुद्वारे में बैठे मेरे लिए दुआएं मांग रहे थे। उनकी दुआ सफल हुई। मेरी मिस यूनिवर्स के रूप में दुनिया में एक पहचान बनी। मेरा परिवार मेरी ताकत है।


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