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साबुत चावल से ज्यादा डिमांड में खंडा : विदेशों में बढ़ी मांग के चलते चावल से ज्यादा महंगी हुई कनकी..

साबुत चावल से ज्यादा डिमांड में खंडा : विदेशों में बढ़ी मांग के चलते चावल से ज्यादा महंगी हुई कनकी..

राजनांदगांव। चाइना सहित कई देशों में इस बार ब्रोकन चावल की मांग बढ़ने के चलते देश में चावल से ज्यादा कनकी के दाम बढ़ गए हैं। युक्रेन और रूस के बीच छिड़े युद्ध के बीच कनकी के दाम में आई तेजी से छत्तीसगढ़ के राइस मिलर्स भी सकते में आ गए हैं। हर साल कस्टम मिलिंग में निर्धारित मात्रा से अधिक ब्रोकन को खपाने वाले मिलर्स ने इस बार कनकी खपाने के खेल से तौबा कर लिया है। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार राशन दुकानों में गरीब परिवारों को मिलने वाले चावल की क्वालिटी बेहद अच्छी होगी।

बताया जा रहा है कि चाइना सहित कई देशों ने नूडल्स और वाइन बनाने के लिए अब टूटे हुए चावल का उपयोग करना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि इस बार विदेशों में रिकार्डतोड़ कनकी की डिमांड हुई है। यही नहीं मक्के के दामो में भी आई तेजी के कारण विदेशों में पशु आहार के लिए ब्रोकन का इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। विदेशों में रिकार्डतोड़ कनकी का निर्यात होने के चलते भारत में पहली बार चावल से ज्यादा कनकी के दाम में तेजी आई है।पिछले साल तक 1600 रुपए क्विंटल में मिलने वाली कनकी इस बार 2300 रुपए क्विंटल में बिक रही है।

वहीं चावल के न्यूनतम दाम पिछले साल 1800 रुपए क्विंटल था। इस बार यह दाम दो हजार रुपए क्विंटल तक पहुंच गया है। टूटे हुए चावल के दाम और साबूत चावल में महज तीन सौ रुपए का अंतर होने के कारण राइस मिलरों का पूरा समीकरण गड़बड़ा गया है। धान की सरकारी खरीदी के बाद कस्टम मिलिंग करने वाले राइस मिलर्स अभी तक निर्धारित मात्रा से ज्यादा कनकी को खपाते रहे हैं, लेकिन इस बार उन्होने तौबा कर लिया है।

गरीबों की थाली से गायब होगी कनकी

देश में कनकी के दामो में आई तेजी के कारण राइस मिलर्स अब मिलिंग के दौरान टूटने वाले चावल को एक्सपोर्ट करने में लग गए हैं, वहीं राशन दुकानो के लिए तैयार कनकी की बजाए साबुत चावल का उपयोग किया जा रहा है। मिलिंग में मिलर्स को 25 फीसदी तक कनकी खपाने की अनुमति है, लेकिन इस बार यह मात्रा से बेहद कम हो गया है।

मक्के का विकल्प बनी कनकी

युद्ध के कारण युक्रेन से मक्के की सप्लाई की चेन टूट गयी है, जिसके कारण इसके दामो में आग लगी हुई है। विदेशो में मक्के का उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है। मक्के के दाम ज्यादा होने के कारण विदेशो में अब कनकी का उपयोग शुरू कर दिया गया है। मक्के और कनकी मांग बढ़ने से किसानो को भी काफी फायदा मिल रहा है।

पहली बार ब्रोकन का रेट ज्यादा ब्रोकन का एस्सपोर्ट होने के कारण पहली बार साबुत चावल से खंडे कनकी का रेट 25 फीसदी ज्यादा है। एस्सपोर्ट होने वाले ब्रोकन में भी सिर्फ पांच फीसदी चावल मान्य है। यहीं कारण है कि ब्रोकन का रेट ज्यादा है।
 


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