भोपाल। राजधानी के वन विहार नेशनल पार्क का टाइगर ‘पन्ना’ नहीं रहा। बुधवार-गुरुवार की रात में उसकी मौत हो गई। चार साल की उम्र में कान्हा टाइगर रिजर्व से बाघ को वन विहार लाया गया था। मौत की वजह साफ नहीं हो पाई है। शव का पोस्टमार्टम कर सैंपल जबलपुर स्थित स्कूल ऑफ वाइल्ड लाइफ फोरेंसिंग एंड हेल्थ में भेजे गए हैं। नर बाघ की उम्र 14 साल है। वन विहार के अधिकारियों के अनुसार करीब चार साल की उम्र में भोपाल आया पन्ना सालों तक टूरिस्टों की पसंद बना रहा। दरअसल, बाड़े में उसकी उछल-कूद टूरिस्टों को बहुत लुभाती थी। बाघ का पोस्टमार्टम वन विहार के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. अतुल गुप्ता, एवं वाइल्ड लाइफ एसओएस के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. रजत कुलकर्णी द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
काठ की गेंद से कराई थी पन्ना की वर्जिश
वनविहार का युवा नर बाघ पन्ना की मौत की खबर वन्यजीव प्राणी प्रेमियों के लिए चौंकाने वाली हो सकती है। पन्ना से जुड़ी कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो वनविहार के वन्य प्राणियों को सेहतमंद बनाए रखने के लिए काफी उत्साहजनक हैं। दरअसल, पन्ना को जब कान्हा टाइगर रिजर्व से लाया गया था, तब वह छोटा था, इसलिए पार्क में रम गया था। लेकिन कुछ साल के बाद वह बाड़े में अक्सर खाने के बाद सोता रहता था। हालांकि, यह उसकी सामान्य आदत थी, जो सेहत के लिए अच्छी थी। लेकिन इसे दिन में वर्जिश कराने के लिए प्रबंधन को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। उस दौरान तत्कालीन वनविहार संचालिका इस बाघ को लेकर काफी सजग थीं, यह बेहद खूबसूरत और सेहतमंद, फुर्तीला बाघ था। पार्क में आने वाले सैलानियों के लिए यह सबसे ज्यादा पसंद था, इस लिए पार्क प्रबंधन के वे कर्मचारी जो इसका रखरखाव करते थे, वे इसका खास ख्याल रखते थे।
दर्शकों के आने पर यह बाड़े में सामने आकर बैठ जाता था। तब पार्क की संचालिका ने एक नवाचार किया और बाघ के बाड़े में फुटबाॅल से करीब चार गुना बड़ी काठ की एक गेंद पेड़ पर जंजीर के सहारे लटका दी। इस गेंद को कई दिनों तक मांस के साथ पानी में उबाला गया था, जिससे गेंद में मांस की गंध आने लगी थी। बाघ इस गेंद से दिन में कई बार शिकार समझ कर खेलता रहता था। उसे उछल कर पकड़ता और शिकार करने जैसी कलाबाजियां करता रहता था। इससे उसकी सेहत और रहवास प्राकृतिक माहौल की तरह ढल रहा था, जो सेहत के लिए और बेहतर साबित हुआ। यह क्रम काफी समय तक चला।