भोपाल। प्रदेश के जिन 6 लोकसभा सीटों के लिए शुक्रवार 19 अप्रैल को पहले चरण में मतदान होने जा रहा है, वहां भाजपा-कांग्रेेस के बीच ही मुख्य मुकाबला है। बालाघाट में कंकर मुंजारे और सीधी में भाजपा के बागी अजय प्रताप सिंह मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव प्रचार के रुझान से पता चलता है कि छिंदवाड़ा और मंडला में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। यहां बाजी किसी के भी हाथ लग सकती है जबकि सीधी, शहडोल, जबलपुर और बालाघाट में मुकाबला रोचक है। हालांकि सीधी और बालाघाट में भी कांग्रेस मुकाबले में बताई जाती है।
सीधी: मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश
सीधी लोकसभा सीट में भाजपा के डॉ. राजेश मिश्रा और कांग्रेस के कमलेश्वर पटेल के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला रहा है। यहां भाजपा के बागी अजय प्रताप सिंह गोंगपा के टिकट पर मैदान में उतर कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं। क्षेत्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, पिछड़ा, आदिवासी और दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद अच्छी है। ब्राह्मण, आदिवासियों का ज्यादा हिस्सा भाजपा के पक्ष में दिखता है तो पिछड़ा और दलित वर्ग के मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर ज्यादा है। अजय प्रताप भी आदिवासी और क्षत्रिय मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में हैं। कांग्रेस के बड़े नेता अजय सिंह राहुल इसी जिले से आते हैं। उनका विधानसभा क्षेत्र चुरहट भी इसी लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। उनका रुख भी चुनाव को प्रभावित करेगा। फिलहाल वे कांग्रेस के साथ ही दिखाई पड़ता हैं। मुकाबला तगड़ा है।
जबलपुर: परंपरा कायम रख सकती है भाजपा
महाकौशल अंचल की जबलपुर लोकसभा सीट में भाजपा-कांग्रेस की ओर से पहली बार चुनाव लड़ रहे क्रमश: आशीष दुबे और दिनेश यादव के बीच मुकाबला है। जबलपुर सीट भी भाजपा का गढ़ बन चुक है। यहां विवेक तन्खा जैसे कांग्रेसी दिग्गज को लगातार दो बार बड़े अंतर से पराजय का सामना करना पड़ा है। संभवत: इसीलिए तन्खा तीसरी बार यहां से लड़े नहीं। कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री रहे तरुण भनोट ने भी चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया था। भाजपा प्रत्याशी आशीष दुबे और उनके परिवार की इमेज अच्छी है जबकि कांग्रेस के दिनेश यादव समाज के वोटों के सहारे हैं। भाजपा इस बार जबलपुर में अपनी जीत की परंपरा कायम रख सकती है। यहां से चार बार सांसद रहे राकेश सिंह अब प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। वे भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं और जबलपुर में पार्टी का चेहरा हैं। जबलपुर में भाजपा और कांग्रेस में कड़े मुकाबले के आसार हैं।
बालाघाट: कंकर के कारण भी मुकाबला रोचक
महाकौशल अंचल की बालाघाट लोकसभा सीट में भाजपा की भारती पारधी और कांग्रेस के सम्राट सरसवार के बीच मुकाबला है लेकिन यहां के जमीनी नेता कंकर मुंजारे ने बसपा के टिकट पर मैदान में उतर कर मुकाबले को रोचक बना दिया है। मुंजारे विधायक और सांसद रहे हैं। वे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश में हैं। कंकर की पत्नी अनुभा मुंजारे बालाघाट से कांग्रेस विधायक हैं। वे कांग्रेस प्रत्याशी सरसवार का काम कर रही है। इससे पति-पत्नी के संबंधों में ऐसी खटास आई की कंकर को घर से बाहर एक झोपड़ी में रहना पड़ रहा है। कंकर का कहना था कि मेरी पत्नी मेरे घर में रहकर मेरे खिलाफ प्रचार नहीं कर सकती। पत्नी अनुभा ने घर नहीं छोड़ा तो वे खुद घर छोड़ कर चले गए। कंकर की मौजूदगी से भाजपा-कांग्रेस दोनों को नुकसान है। ढाल सिंह बिसेन और गौरीसिंह बिसेन की असंतुष्टि की खबरें है।
छिंदवाड़ा: सीट छीनने भाजपा ने झोंकी ताकत
महाकौशल अंचल की छिंदवाड़ा लोकसभा सीट कमलनाथ के कारण कांग्रेस का गढ़ है। प्रदेश का सबसे चर्चित और राेचक मुकाबला यहां हो रहा है। भाजपा ने यह सीट छीनने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। इसके लिए साम, दाम, दंड, भेद सब अपनाए जा रहे हैं। यहां कमलनाथ के सांसद बेटे नकुलनाथ का मुकाबला भाजपा के विवेक बंटी साहू से है। प्रचार थमने के एक दिन पहले भाजपा के शीर्ष नेता केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह छिंदवाड़ा में रोड शो और रात्रि विश्राम कर गए हैं। शाह भाजपा के असंतुष्ट नेताओं को चेतावनी भी दे गए हैं। प्रचार की बागडोर भाजपा के दिग्गज कैलाश विजयर्गीय के हाथ है। पहली बार कमलनाथ के खास लोगों को तोड़कर भाजपा में शामिल कराया गया है। अलका नाथ ने भी बेटे नकुलनाथ के लिए अपील की है। यहां कोई भी बाजी मार सकता है।
शहडोल: हिमाद्री को चुनौती दे हैं मार्को
विंध्य अंचल की दूसरी शहडोल लोकसभा सीट भाजपा के गढ़ के रूप में तब्दील हो चुकी है। कांग्रेस ने तीन बार के विधायक फुंदेलाल मार्को को मैदान में उतारा है, लेकिन वे भाजपा की हिमाद्री को टक्कर नहीं दे पा रहे हैं। हिमाद्री सिंह आदिवासी राजघराने से ताल्लुक रखती हैं। इनके पिता दलबीर सिंह और मां राजेश नंदिनी सिंह के कारण शहडोल में कांग्रेस जिंदा थी। यहां दलबीर सिंह के नाम से ही कांग्रेस जानी जाती थी। माता-पिता के न रहने के बाद हिमाद्री सिंह कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आ गईं। बाद में कांग्रेस के आदिवासी चेहरे बिसाहूलाल सिंह भी भाजपा में आ गए। इसके बाद क्षेत्र में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा। इसलिए शहडोल में अभी एकतरफा माहौल दिखाई पड़ रहा है। हालांकि कांग्रेस यहां से भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है। यहां अन्य दलों ने भी अपने प्रत्याशी उतारे है। ऊंट किस करवट बैठता है। मतगणना के बाद पता चलेगा।
मंडला: कुलस्ते और मरकाम में रोचक मुकाबला
महाकौशल की मंडला लोकसभा सीट से भाजपा के आदिवासी चेहरे केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते एक बार फिर मैदान में हैं। पार्टी ने इन्हें विधानसभा का चुनाव लड़ाया था लेकिन केंद्रीय मंत्री रहते ये कांग्रेस के नगर पालिका अध्यक्ष से चुनाव हार गए थे। कांग्रेस ने मंडला से अपने युवा आदिवासी चेहरे पूर्व मंत्री ओंकार सिंह मरकाम को मैदान में उतारा है। ओंकार से फग्गन को कड़ी टक्कर मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता यहां भी है। फग्गन अपने आप में भाजपा का बड़ा नाम हैं। ये प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के लिए दावा करते रहे हैं। केंद्र में लगातार मंत्री हैं। लेकिन इनके खिलाफ क्षेत्र में तगड़ी एंटी-इंकम्बैंसी देखने को मिल रही है। लिहाजा मुकाबला रोचक है। कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी में कड़ी टक्कर के आसार है। अब मंडला में बाजी किसी के भी हाथ लग सकती है।