रायपुर: छत्तीसगढ़ राज्य सरकार के खजाने को 341 करोड़ रुपये की चपत लगाने वाला सीजीएमएससी रीएजेंट घोटाला अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है। ईओडब्ल्यू की ताजा रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि इस घोटाले में राज्य के विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने ठेका कंपनियों के साथ मिलकर एक संगठित गिरोह के रूप में काम किया।
रिपोर्ट के मुताबिक, मोक्षित कारपोरेशन के मालिक शशांक चोपड़ा और डॉ. अनिल परसाई के बीच मोबाइल फोन पर हुई लंबी बातचीत के काल डिटेल्स से यह स्पष्ट होता है कि ठेका प्रक्रिया शुरू होने से लेकर अंत तक दोनों के बीच निरंतर संवाद होता रहा। ईओडब्ल्यू ने खुलासा किया है कि शशांक चोपड़ा ने ठेका हथियाने के लिए डॉ. परसाई को मोटी रकम दी, और बदले में परसाई ने सभी आवश्यक कदम उठाए।
ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट: डॉ. परसाई का अत्यंत आपत्तिजनक व्यवहार:
ईओडब्ल्यू की जांच रिपोर्ट में डॉ. परसाई की भूमिका को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि डॉ. परसाई ने विशेषज्ञ समिति के स्पष्ट निर्णयों को दरकिनार करते हुए मनमाने तरीके से रीएजेंट्स की सूची तैयार करवाई। जिन रीजेंट्स की आवश्यकता नहीं थी, उन्हें फिर से जोड़ा गया और उनकी मात्रा भी जानबूझकर बढ़ा दी गई, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये की वित्तीय क्षति हुई।
डॉ. परसाई ने इंडेंट निर्धारण प्रक्रिया में समिति की बैठकों और राय को औपचारिकता के रूप में लिया। उन्होंने विशेषज्ञों की आपत्तियों को दबाया और निर्णयों पर हस्ताक्षर करवाए, जिससे यह साबित होता है कि पूरी प्रक्रिया पहले से ही मोक्षित कॉर्पोरेशन को लाभ पहुंचाने के लिए नियंत्रित थी।
आवश्यकता से कहीं अधिक रीजेंट्स की आपूर्ति:
ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि कई ऐसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) थे जहां न तो लैब थे, न प्रशिक्षित स्टाफ और न ही उपकरणों की जरूरत, फिर भी वहां भारी मात्रा में रीजेंट्स की आपूर्ति की गई। यह स्थिति यह संकेत देती है कि डॉ. परसाई ने जानबूझकर इन केंद्रों में आपूर्ति करवाई, जिससे सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ और योजना की पारदर्शिता को भी नुकसान पहुंचा।
ईओडब्ल्यू ने बताया कि वहां जहां लैब या तकनीकी कर्मचारी नहीं थे, वहां भी बड़ी मात्रा में रीजेंट्स भेजे गए, जो अंततः समय समाप्त होने के कारण नष्ट हो गए। यह सारा कार्य किसी पूर्वनिर्धारित योजना या व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया था।
टेलीफोन कॉल डिटेल्स ने खोली पोल:
ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट में जो सबसे चौंकाने वाला खुलासा हुआ, वह था सीडीआर (कॉल डाटा रिकॉर्ड) का विश्लेषण। रिपोर्ट के अनुसार, डॉ. परसाई और शशांक चोपड़ा के बीच बार-बार फोन पर बातचीत होती रही, विशेषकर निविदा प्रक्रिया के निर्णायक क्षणों में। यह कॉल डिटेल्स पूर्व नियोजित साजिश का स्पष्ट प्रमाण हैं, जो यह साबित करते हैं कि दोनों के बीच संनियोजन के तहत ही इस भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया।
निविदा प्रक्रियाओं में जानबूझकर हस्तक्षेप:
ईओडब्ल्यू ने यह भी खुलासा किया कि निविदा क्रमांक-182 के दौरान डॉ. परसाई ने फर्मों के सुझावों को नजरअंदाज किया और स्पेसिफिकेशन को टेलर-मेड बनवाया, ताकि सिर्फ मोक्षित कॉर्पोरेशन को फायदा हो सके। इसके अलावा, अन्य कंपनियों द्वारा डेमोस्ट्रेशन के दौरान प्रस्तुत किए गए उपकरणों को भी अर्ह घोषित किया गया, जिससे इस प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता का उल्लंघन हुआ।
शासन को करोड़ों की क्षति:
ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि इस पूरे घोटाले के कारण राज्य सरकार को क़रीब 341 करोड़ रुपये की वित्तीय हानि हुई। यह सब एक संगठित गिरोह की तरह काम करने वाले अधिकारियों और कंपनियों के बीच एक साज़िश का परिणाम था, जिसमें डॉ. परसाई ने अपने प्रभाव का उपयोग कर घोटाले को अंजाम दिया।