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इस गांव पर रोज रात धावा बोलता है लुटेरों का गिरोह: जिसके घर से खाने-पीने की खुशबू मिली, उसकी आई शामत

इस गांव पर रोज रात धावा बोलता है लुटेरों का गिरोह: जिसके घर से खाने-पीने की खुशबू मिली, उसकी आई शामत

महासमुंद | वैसे तो पूरा छत्तीसगढ़ इन दिनों कानून व्यवस्था का संकट झेल रहा है। चाकूबाजी, लूटपाट, चोरी-डकैती आम बात हो गई है। इन घटनाओं को लेकर पीड़ित पुलिस के पास जाते हैं, जहां उनकी सुनवाई भी होती है। लेकिन हम यहां आपको ऐसे लुटेरों से परेशान गांव की कहानी पढ़ाने जा रहे हैं, जो ऐसे लुटेरों से परेशान है, जिनके बारे में न तो कोई सुनवाई हो रही है, ना वे पकड़े जा रहे हैं।

ये कहानी है महासमुंद जिले में बागबाहरा वन परिक्षेत्र के ग्राम पंचायत कसेकेरा की। यहां के ग्रामीण ऐसे लुटेरों से परेशान हैं जो इन दिनों लगभग रोज ही 20 से 25 की संख्या में पहाड़ियों से उतरकर गांव पर धावा बोलते हैं और जिसके भी घर का दरवाजा जरा जा भी कमजोर हुआ, समझो उसकी शामत आई। ये लुटेरे दरवाजा तोड़कर घर के भीतर प्रवेश कर जाते हैं, खाने -पीने की जो भी चीज मिली उसे चट कर जाते हैं। यहां तक कि पीपे में भरा पूरा तेल पी जाते हैं। लुटेरों का ये झुंड इंसानों का नहीं बल्कि भालुओं का है। कसेकेरा गांव में रोज दर्जनों की संख्या में भालू आते हैं और बस्ती के घरों में लूट-पाट कर वापस पहाड़ी पर चले जाते हैं। ऐसी लूट-पाट कभी-कभार नहीं बल्कि कसेकेरा में रोज किसी न किसी घर में घट रही है। इन घटनाओं से ग्रामीण काफी परेशान हैं। लेकिन ग्रामीणों की इस समस्या का समाधान करने को कोई तैयार नहीं है। रोज-रोज की इस लूट से ग्रामीण डर के साए में जीने को मजबूर हैं।

पहाड़ियों की तराई पर बसा है गांव

बागबाहरा वन परिक्षेत्र का ग्राम पंचायत कसेकेरा पहाड़ियों के नीचे बसा हुआ है। इस गांव की आबादी लगभग ढाई हजार है। कसेकेरा गांव वैसे तो भरा-पूरा, सम्पन्न और शांतिप्रिय गांव है, लेकिन 2 साल पहले भालुओं का इस गांव में आना-जाना शुरू हुआ। कोरोना काल में लॉकडाउन के समय पहुंचे इन भालुओं को देख ग्रामीणों को लगा कि ये बागबाहरा के प्रसिद्ध शक्तिपीठ चंडी माता मंदिर में आने वाले भालू हो सकते हैं, जो भोजन की तलाश में यहां तक आ पहुंचे हैं। लेकिन कुछ दिनों में ग्रामीणों को समझ में आया कि ये मंदिर में आने वाले भालू नहीं बल्कि जंगल के खूंखार भालू हैं। सप्ताह भर बाद इन भालुओं का आतंक गांव में चालू हो गया। ये भालू ग्रामीणों के घरों के दरवाजे तोड़कर घरों में घुसने लगे। फिर ग्रामीणों ने भालुओं की निगरानी शुरू की तब ग्रामीणों को पता चला की भालुओं की संख्या दो-चार नहीं बल्कि बीस से पच्चीस है। भालुओं की इतनी बड़ी संख्या जानकर ग्रामीण दहशत में आ गए। और फिर तभी से जारी है भालुओं की लूटपाट का यह दौर।

शाम ढलने से पहले घरों में दुबक जाते हैं ग्रामीण

लुटेरे भालुओं का आतंक ऐसा है कि शाम ढलते ही कसेकेरा गांव के ग्रामीणों के घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं। लाइट्स जल जाती हैं और गालियां सुनसान हो जाती हैं। पूरे ग्रामीण घरों में दुबक जाते हैं। दिन ढलते ही पहाड़ियों से नीचे अलग अलग रास्ते से उतरकर भालू गांव में पहुंचते हैं। उसके बाद ये भालू जिस किसी के घर से भी कुछ खाने -पीने की खुशबू पा जाते हैं, उसका दरवाजा तोड़कर घर में प्रवेश करते हैं। तब उनके पास चीखने-चिल्लाने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। ग्रामीण चीख चिल्लाकर, पीपा बजाकर भालुओं को भगाने का प्रयास करते हैं। लेकिन ये लुटेरे भालू अब इन सब के आदी हो गए हैं। वे जब तक किचन में रखा तेल, गुड़, चना, आटा आदि खाद्यान्न चट नहीं कर जाते तब तक नहीं भागते हैं। भालुओं ने अब तक 3 दर्जन से ज्यादा घरों के दरवाजे तोड़ डाले हैं।

काम न आई वन अमले की तरकीब

वन विभाग ने इन भालुओं को पकड़ने के लिए पिंजरे भी लगाए। पिंजरा लगाकर महीनों इन्तजार भी किया गया, लेकिन यह तरकीब काम नहीं आई। एक भी भालू पिंजरे में नहीं फंसा। उसके बाद वन विभाग के कर्मी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ कर ग्रामीणों को उनके हाल पर छोड़कर गांव से चले गए। उसके बाद फिर कभी कसेकेरा गांव की ओर किसी भी वनकर्मी ने कभी मुड़कर भी नहीं देखा। हालांकि इस पूरी कहानी का सबसे सुखद पहलू यह है कि भालुओं ने अब तक किसी भी ग्रामीण पर हमला नहीं किया है। जबकि बागबाहरा वन परीक्षेत्र में साल 2019 से अब तक भालुओं के हमले के 52 मामले सामने आए हैं। इन हमलों में 47 लोग घायल हुए और 5 लोगों ने अपनी जान तक गंवाई है।

प्यास लगने पर कुआं खोदने की बात कर रहे रेंजर साहब

एक मशहूर उक्ति है, प्यास लगने पर कुआं खोदना। इस पूरे मसले पर बागबहरा के रेजर विकास चंद्राकर की बात भी कुछ ऐसी ही है। वे कहते हैं कि हमने भालुओं को पकड़ने की कोशिश की थी। लेकिन पकड़ नहीं पाए। अब चूंकि भालू ग्रामीणों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहे हैं बल्कि वे खाने-पीने की तलाश में गांव का रुख कर रहे हैं। तो इसे रोकने के लिए अब वन विभाग जंगल में कंद, मूल, बेर जैसे फल लगाने की तैयारी में है। ये कंद मूल और फल के पेड़ जब बड़े होकर फलने लगेंगे तो भालू उन्हे खाएंगे और गांव की ओर आना बंद कर देंगे। यानी कि तब तक कसेकेरा वासी यूं ही भालुओं की लूटपाट झेलते हुए दहशत के साए में जीते रहेंगे। वाह भाई रेंजर साहब... क्या मस्त प्लान है आपका।


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