बस्तर में नक्सलियों की शांति वार्ता का पांचवां प्रस्ताव : क्या खत्म होगा दशकों पुराना संघर्ष?

बस्तर में नक्सलियों की शांति वार्ता का पांचवां प्रस्ताव : क्या खत्म होगा दशकों पुराना संघर्ष?

मानसी चंद्राकर// रायपुर: छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में नक्सल आंदोलन को लेकर बड़ा मोड़ देखने को मिला है। जहां वर्षों से हथियारों के बल पर अपनी बात मनवाने वाले नक्सलियों ने अब बातचीत की राह चुनने की पहल की है। नक्सलियों ने सरकार को लगातार पांचवीं बार शांति वार्ता के लिए पत्र जारी किया है। इस पत्र में एक महीने के युद्धविराम की बात कही गई है, जिससे इलाके में शांति की उम्मीद जगी है।

उत्तर-पश्चिम सब जोनल ब्यूरो के प्रभारी रुपेश ने शुक्रवार को सरकार के नाम पांचवां पत्र जारी किया, रुपेश ने उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा का आभार जताया, जिन्होंने उनके पहले बयान पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और शांतिवार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात कही। नक्सली नेता ने कहा कि शीर्ष नेतृत्व से मिलकर वार्ता के लिए प्रतिनिधियों को चुनने की जरूरत है, जिसके लिए सशस्त्र बलों के ऑपरेशनों को एक महीने तक रोकना होगा। यह पहली बार है जब नक्सलियों ने इतनी बार शांतिवार्ता की पेशकश की है, जो दिखाता है कि वे दबाव में हैं। केंद्र और राज्य सरकार की सख्त नीतियों, खासकर 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने के लक्ष्य ने नक्सलियों को बैकफुट पर ला दिया है। हालांकि, कुछ जानकार मानते हैं कि यह प्रस्ताव एक रणनीति भी हो सकता है, क्योंकि पहले भी नक्सलियों ने शांतिवार्ता की बात कर हमले किए हैं।

सुकमा में 22 नक्सलियों ने हथियार डाला :

शुक्रवार को सुकमा में 22 नक्सलियों ने हथियार डालकर मुख्यधारा में शामिल होने का फैसला किया। इनमें सात महिलाएं भी शामिल थीं, जिन पर कुल 23 लाख रुपये का इनाम था। समर्पण करने वालों में माड़ डिवीजन की पीएलजीए बटालियन के एक नक्सली दंपति पर 8-8 लाख रुपये का इनाम था। ये नक्सली कई बड़ी हिंसक घटनाओं में शामिल रहे थे। समर्पण के दौरान एसपी कार्यालय में डीआईजी आनंद सिंह राजपुरोहित और एसपी किरण चव्हाण मौजूद थे। सरकार की आत्मसमर्पण नीति के तहत इन नक्सलियों को 50-50 हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि और अन्य सुविधाएं दी जाएंगी। आईजी सुंदरराज पी ने बताया कि नक्सल मुक्त ग्राम पंचायतों को 1 करोड़ रुपये विकास के लिए दिए जाएंगे। यह कदम नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है। इससे पहले भी कई नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जो दिखाता है कि सरकार की नीतियां असर दिखा रही हैं।

सरकार की रणनीति और अमित शाह का बयान

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलियों से जल्द से जल्द हथियार डालने की अपील की है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार 31 मार्च 2026 तक देश को नक्सलवाद से मुक्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। शाह ने सोशल मीडिया पर लिखा कि नक्सलियों को आत्मसमर्पण नीति अपनाकर मुख्यधारा में शामिल होना चाहिए। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद अब केवल चार जिलों तक सीमित रह गया है, जो सरकार की सफलता को दिखाता है। सुरक्षा बलों के लगातार ऑपरेशनों और आत्मसमर्पण नीति ने नक्सलियों पर दबाव बढ़ाया है। सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास कार्यों को भी तेज किया है, जैसे स्कूल, अस्पताल और सड़कें बनाना। साथ ही, आत्मसमर्पण करने वालों को नौकरी और प्रशिक्षण जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। शाह ने यह भी कहा कि जो गांव नक्सलियों को समर्पण के लिए प्रेरित करेगा, उसे 1 करोड़ रुपये की विकास राशि मिलेगी। यह रणनीति नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने की दिशा में अहम है।

नक्सलियों की चुनौतियां और शांतिवार्ता पर सवाल

नक्सलियों का शांतिवार्ता प्रस्ताव कई सवाल उठाता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह उनकी कमजोरी का संकेत है, क्योंकि सुरक्षा बलों के अभियानों ने उनके संगठन को कमजोर किया है। नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 2014 में 126 से घटकर 2024 में 12 रह गई है। लेकिन, अतीत में नक्सलियों ने शांतिवार्ता की बात कर हमले किए हैं, जिससे सरकार सतर्क है। उप मुख्यमंत्री विजय शर्मा ने कहा कि नक्सलियों को बिना शर्त समर्पण करना होगा, और सरकार उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेगी। नक्सलियों ने पत्र में भाजपा और कांग्रेस नेताओं की तीखी प्रतिक्रियाओं का जिक्र किया, लेकिन कहा कि वे अभी जवाब नहीं देंगे। उनका फोकस शांतिवार्ता पर है। हालांकि, सरकार शर्तों पर वार्ता के लिए तैयार नहीं है। नक्सलियों की लेवी वसूली और हिंसा की वजह से स्थानीय लोगों का समर्थन भी कम हो रहा है। इससे शांतिवार्ता की प्रक्रिया जटिल हो रही है। 

क्या बस्तर में शांति आएगी? 

बस्तर में नक्सलवाद के खिलाफ सरकार की दोहरी रणनीति—सुरक्षा अभियान और विकास कार्य—असर दिखा रही है। नक्सलियों का बार-बार शांतिवार्ता प्रस्ताव और समर्पण की बढ़ती संख्या यह बताती है कि वे कमजोर पड़ रहे हैं। लेकिन, शांतिवार्ता की सफलता के लिए दोनों पक्षों में भरोसा जरूरी है। सरकार की सख्त नीति और नक्सलियों की शर्तें इस प्रक्रिया को मुश्किल बना रही हैं। स्थानीय आदिवासियों को हिंसा से बचाने और विकास के रास्ते पर लाने के लिए शांतिवार्ता एक मौका हो सकता है। नक्सलियों को समझना होगा कि हिंसा से अब कुछ हासिल नहीं होगा। सरकार को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि समर्पण करने वालों को समाज में सम्मान के साथ जगह मिले। अगर दोनों पक्ष ईमानदारी से कदम उठाएं, तो बस्तर में शांति की उम्मीद बढ़ सकती है। यह समय नक्सलवाद को खत्म करने और बस्तर को विकास की मुख्यधारा में लाने का है।

 


संबंधित समाचार