Uma Bharti : मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने जातिगत जनगणना को लेकर एक अहम बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि देश की सामाजिक व्यवस्था को समझने और न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए जातिगत जनगणना की आवश्यकता अब टाली नहीं जा सकती। यह केवल आंकड़ों का खेल नहीं, बल्कि सामाजिक शक्ति की पहचान का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
उस वर्ग की अनदेखी होती आई...
उमा भारती ने कहा कि देश में एक बहुत बड़ी आबादी है, जिसकी भूमिका राजनीति और समाज में काफी प्रभावशाली रही है, लेकिन समय-समय पर उस वर्ग की अनदेखी होती आई है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि इस उपेक्षा का परिणाम यह हुआ कि कई बार ऐसे समुदायों ने, जो धार्मिक रूप से तो हिंदुत्व के साथ थे, राजनीतिक तौर पर भाजपा का समर्थन नहीं किया।
हम क्यों हारे अयोध्या?
उदाहरण स्वरूप उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के बाद हुए चुनावों की ओर इशारा किया। उनका कहना था कि मंदिर निर्माण के बावजूद वहां भाजपा को अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। उन्होंने कहा, "लोग राम भक्त थे, लेकिन भाजपा के समर्थक नहीं बन सके। यह इसलिए हुआ क्योंकि हमने वहां की सामाजिक संरचना और जातीय समीकरण को ठीक से नहीं समझा।"
जातिगत जनगणना से स्पष्ट होगी संख्या
उमा भारती ने साफ किया कि जातिगत जनगणना से यह स्पष्ट हो जाएगा कि किस समुदाय की संख्या कितनी है, उनकी भागीदारी और जरूरतें क्या हैं, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व का सही संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने इसे 'राजनीतिक जागरूकता' का जरिया बताते हुए कहा कि इससे वंचित वर्गों की अनदेखी बंद होगी और उन्हें सामाजिक मुख्यधारा में लाया जा सकेगा।
उमा भारती का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस एक बार फिर तेज हो रही है। उनका यह वक्तव्य भाजपा के भीतर भी इस विषय पर नए विमर्श की शुरुआत कर सकता है।