भोपाल। 55 वर्षीय गैस पीड़ित मरीज के फेफड़ों की धमनी में खून का थक्का जम गया था, जिससे थोड़ा भी चलने पर उनकी सांस फूल रही थी और वह काफी गंभीर हो गए थे। बीएमएचआरसी में इस मरीज का रेडियोलॉजिकल इंटरवेंशनल प्रक्रिया से छोटा सा चीरा लगाकर उपचार किया गया। रेडियोलॉजी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. राधेश्याम मीणा ने बताया कि मरीज सांस फूलने की शिकायत के साथ कार्डियोलॉजी ओपीडी में आए थे। जांच में पता चला कि उनकी फेफडों की धमनी पल्मोनरी आर्टरी में खून का थक्का जम गया है, इससे उन्हें सांस फूलने की शिकायत है। इसे पल्मोनरी थम्बो एम्बोलिज्म (पीई) कहा जाता है। इसमें मत्युदर करीब 20 से 30% है। ऐसे मरीजों को दवा व इन्जेक्शन के माध्यम से खून का थक्का हटाने का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया से मरीज के पैर की नस के रास्ते एक कैथेटर के जरिए आर्टरी में दवा पहुंचाई जाती है, जो वहां बने हुए खून के थक्के को नष्ट कर देती है।
कैसे होता है डीवीटी
नसों में रक्त का प्रवाह रुक जाने से डीवीटी हो सकता है। जब खून का थक्का पैर की नसों से फेफड़ों की नसों में फंस जाता है, तो इसे पल्मोनरी थम्बो एम्बोलिज्म (पीई) कहा जाता है।
किन लोगों को अधिक खतरा
ऐसे लोग जो ज्यादा चल फिर नहीं पाते। शरीर का कम मूवमेंट कर पाते हैं। 60 वर्ष से अधिक बुजुर्ग लोगों में डीवीटी की शिकायत देखी जाती है। एक्सीडेंट या सर्जरी की वजह से किसी नस के प्रभावित होने से प्रेग्नेंसी, मोटापा, धूम्रपान करने से। अनुवांशिक कारणों से भी ऐसा हो सकता है।
बीमारियों के इलाज में होने वाली जटिलताएं खत्म
इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी प्रक्रिया ने कई बीमारियों के इलाज में होने वाली जटिलताएं खत्म कर दी हैं। एक छोटा सा चीरा लगाकर बड़ी-बड़ी प्रक्रियाएं होने लगी हैं।
डॉ मनीषा श्रीवास्तव, प्रभारी निदेशक, बीएमएचआरसी