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कोण्डागांव के ग्राम बफना की महिलाओं ने धागों के ताने-बाने में ढूंढी स्वावलम्बन की राहें

कोण्डागांव के ग्राम बफना की महिलाओं ने धागों के ताने-बाने में ढूंढी स्वावलम्बन की राहें

कोण्डागांव। कपड़ा बुनाई कला एक ऐसा कार्य क्षेत्र है, जिसमें स्वरोजगार की असीम सम्भावनाएं मौजूद है। यूं तो जिले के आस-पास के कई गांव में बुनकर व्यवसाय से कई परिवार जुड़े हुए हैं जिन्हें यह वृत्ति पैतृक विरासत में मिली है परन्तु इस व्यवसाय को जिला प्रशासन द्वारा एक व्यापक एवं व्यवस्थित तरीके से महिला समूहों को जोड़कर उन्हें स्वरोजगार के विकल्प के तौर पर प्रस्तुत किये जाने का प्रयास किया जा रहा है और अब आधुनिकता के दौर में दम तोड़ती कपड़ा बुनाई की कला को अपनाकर जिले की महिलाएं आत्मनिर्भरता की राह पर अग्रसर हैं। इस क्रम में मां दंतेश्वरी बुनकर सहकारी समिति बफना की महिलाओं के साथ-साथ जिले के लगभग 300 परिवार बुनकर के पेशे को अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर रहे। बुनकर सहकारी समिति की महिलाओं ने बताया कि पहले अपनी आवश्यकताओं के लिए पति या परिवार पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन कपड़ा बुनाई से हो रही आमदनी से अब किसी के समक्ष पैसे मांगने की आवश्यकता नहीं रहती।

जिससे बच्चों की देखभाल एवं अपनी निजी-आर्थिक जरूरतों की पूर्ति आसानी से हो रही है। उल्लेखनीय है कि जिला प्रशासन ने नक्सल पीड़ित परिवारों के पुनर्वास व्यवस्थापन अंतर्गत लगभग 3 वर्ष पूर्व ग्राम बफना में नक्सल पीड़ित परिवारों की बस्ती बताया गया था और विस्थापित परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बुनकर के व्यवसाय से जोड़ा गया। इस प्रकार ग्राम बफना की 21 महिलाओं को मिलाकर वर्ष 2019 में मां दंतेश्वरी बुनकर सहकारी समिति बफना का गठन किया गया था और महिलाओं की मेहनत व कार्य के प्रति लगन के चलते आज जिला प्रशासन से 10 हजार नग स्कूल ड्रेस प्रदान करने का आर्डर इस समूह को मिला है और अब तक जिले के लगभग 300 परिवार मां दंतेश्वरी बुनकर सहकारी समिति के सदस्य बन चुके हैं।

बुनकर सहकारी समिति बफना की अध्यक्ष गंगा नेताम, उपाध्यक्ष सुलेखा नेताम ने यह भी बताया कि हम सभी महिलाएं पहले खेती किसानी के साथ वनोपज संग्रहण का कार्य करती थीं और साल के कुछ महीने वे बिल्कुल खाली रहती थीं, जिससे आर्थिक तंगी हमेशा बनी रहती थी। परन्तु जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में हमने 21 महिलाओं का समूह मां दंतेश्वरी बुनकर सहकारी समिति ग्राम बफना का गठन किया साथ ही सभी महिलाओं को गांव में चार माह कपड़ा बुनाई का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण लेने के पश्चात सभी महिलाएं कपड़ा बुनाई में जुटी हुई हैं। महिलाओं ने आगे बताया कि प्रशिक्षण लेने के बाद हमें शुरुआत में कार्य करने में परेशानी होती थी 1 मीटर कपड़ा बुनाई करना भी मुश्किल था, लेकिन आज सभी सदस्य महिलाएं चार से पांच मीटर कपड़ा आराम से बुन लेती हैं और कपड़ा बुनाई के अनुसार महिलाओं को राशि भुगतान होता है। जिसके तहत् 1 मीटर गमछा कपड़ा का 30 रुपए दर एवं एक नग चादर का 84 रूपए निर्धारित है। प्रत्येक महिलाएं सुबह 9.00 से शाम 5.00 तक कार्य करने से तीन से चार नग गमछा बुनाई करती हैं।

इस प्रकार प्रत्येक महिलाएं माह में 4500 तक कमा लेती हैं। महिलाओं ने आगे बताया कि समूह को शुरुआत में 3 लाख का लोन मिला, उसके बाद कच्चे माल के लिए भी लोन लिया गया। इस प्रकार उनके खाते में लगभग 11 लाख का कारोबार हुआ है और तो और बुनकर सहकारी समिति से जुड़े लगभग 300 बुनकर परिवार के उत्पाद को खरीदकर उन्हें पारिश्रमिक भुगतान के साथ कच्चा माल भी प्रदान करते हैं साथ ही तैयार उत्पाद को विपणन संघ रायपुर में विक्रय किया जाता है। परन्तु अभी भी कच्चा माल के रूप में धागा के लिए समूह रायपुर के निजी फर्मों पर निर्भर है। समूह द्वारा हाल ही में 2 लाख का धागा, चादर के लिए 4 किलो लच्छी धागा बाना 1025 ताना 1450 तथा गमछा धागा 450 की दर में प्राप्त किया गया है। महिलाओं का यह भी कहना था कि यदि विपणन संघ की ओर से निर्धारित मूल्य में धागा उपलब्ध कराने पर स्थिति और बेहतर होती।

इन महिलाओं का हौसला देखकर यह कहना उचित होगा कि निश्चय ही आत्मनिर्भर होना दूसरों से उम्मीद रखने के बजाय खुद में आस लगाने का पाठ पढ़ाता है। आत्मनिर्भर न केवल दूसरों से सम्मान पाता है बल्कि उसके मन मस्तिष्क में आत्मसंतुष्टि की भावना विकसित होती है। बाफना ग्राम की महिलाओं ने कपड़ा बुनाई करके स्वावलम्बन की ओर जो कदम बढ़ाकर औरों को भी राह दिखाई है। इसके लिए ये महिलाएं वास्तव में साधुवाद के पात्र हैं।


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