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बासमती की खुशबू से महका नरहर का घर-आँगन, 3 साल बाद बीजापुर के गांव में हो रही रबी फसल की तैयारियाँ

बासमती की खुशबू से महका नरहर का घर-आँगन, 3 साल बाद बीजापुर के गांव में हो रही रबी फसल की तैयारियाँ

बीजापुर। बीजापुर के किसान नरहर नेताम का घर-आंगन आज बासमती चावल की खुशबू से महक उठा है। इनकी इस कड़ी मेहनत, इच्छाशक्ति और लगन को आधार मिला है, महात्मा गांधी नरेगा योजना के साथ सरकार की अन्य योजनाओं के समुचित तालमेल से। जी हां! यह बिल्कुल सत्य है। जिला बीजापुर में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के साथ जिला खनिज न्यास निधि के तालमेल से वित्तीय वर्ष 2019-20 में जलाशयों की सिंचाई परियोजना पुनर्स्थापित करने का एक महती कार्य शुरु किया गया था। इसके सकारात्मक परिणाम अब जमीनी स्तर पर नजर आने लगे हैं। जहाँ एक ओर यह कार्य किसानों के लिए आर्थिक उन्नति का कारक बन रहा है, वहीं दूसरी ओर यह परियोजना जिले की सिंचाई रकबे में वृद्धि में मील का पत्थर साबित हो रही है।

यहां हम बात कर रहे हैं जिले के भैरमगढ़ विकासखण्ड की ग्राम पंचायत कोडोली में हुए नहर लाइनिंग कार्य की। वहाँ के कोडोली जलाशय से नहर लाइनिंग कार्य (तालाब क्रमांक -1 व 2 से) में कुल 1,800 मीटर लम्बाई की सी.सी. लाइनिंग कर सिंचाई व्यवस्था पुनर्स्थापित की गई है। महज एक साल के भीतर ही इन कार्यों के सुखद परिणाम देखने को मिल रहे हैं। यह परियोजना क्षेत्र में नरहर जैसे किसानों के जीवन में खुशहाली की छटा बिखेर रही है।

नरहर नेताम की 7 एकड़ कृषि भूमि इस नहर से लगी हुई है। उन्होंने हमें बताया कि यह कार्य उन जैसे किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है। पहले यह कच्ची नहर थी। जब भी किसी किसान को पानी की जरूरत होती थी, तो वह नहर के किनारों को काटकर अपने खेतों की सिंचाई कर लेता था। इसके कारण जलाशय के समीप के ही कुछ खेतों को पानी मिल पाता था। वहीं नहर कच्ची होने के कारण, उसमें गाद भरने के साथ-साथ झाड़ियां भी उग आई थीं। इन सब कारणों से आखिरी गांव तक नहर का पानी नहीं पहुँच पा रहा था। इन सभी समस्याओं के कारण वे और उन जैसे अन्य किसान भाई बहुत परेशान रहते थे।

नेताम आगे बताते हैं कि रबी की फसल तो दूर खरीफ़ फसल में भी नहर से सिंचाई को लेकर किसानों के बीच झगड़े की स्थिति भी निर्मित हो जाती थी; लेकिन यह समस्या अब बीते दिनों की बात हो गई है। नहर लाइनिंग के बाद हो रही सिंचाई सुविधा के मद्देनजर उन्होंने खरीफ़ फसल के रूप में 4 एकड़ में बासमती और 3 एकड़ में महेश्वरी किस्म की धान की बुआई की थी, जो अब पककर घर आ चुकी है। इस बार पिछले वर्षों की तुलना में धान की फसल अच्छी हुई है। ऐसा अनुमान है कि बासमती का 50-55 क्विंटल और माहेश्वरी का 20-25 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ है।

खरीफ़ फसल के बाद नरहर अब दोहरी फसल की तैयारी में लग गए हैं। तीन साल बाद उन्होंने अपने एक एकड़ खेत में भुट्टा, आधा एकड़ में चना-सरसों और आधा एकड़ में खरबूजे की बुआई की है। इनकी मेहनत और महात्मा गांधी नरेगा योजना के साथ जिला खनिज न्यास निधि के अभिसरण से विकसित हुई सिंचाई सुविधा के फलस्वरूप आने वाले कुछ महीनों में भैरमगढ़, कोडोली, मिरतुर और नेलसनार के बाजारों में इनके उत्पाद नज़र आएंगे।

योजना से प्रत्यक्ष लाभ

नरहर नेताम के परिवार को महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत वर्षः 2019-20 में 80 दिनों के रोजगार के लिए 14,080.00 रुपये एवं चालू वित्तीय वर्षः 2020-21 में 105 दिनों के रोजगार के लिए 19,950.00 रुपये की मजदूरी का भुगतान किया गया है।


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