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awarding Padma Shri : केंद्र सरकार की तरफ से छत्तीसगढ़ के 3 व्यतियों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा पर सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर दी बधाई

awarding Padma Shri : केंद्र सरकार की तरफ से छत्तीसगढ़ के 3 व्यतियों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा पर सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट कर दी बधाई

awarding Padma Shri : भारत आज 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ के 3 व्यक्तियों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा की है। संविधान के इस पर्व पर पुरे भारत में ख़ुशी का माहौल है छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट कर तीनों व्यक्तियों को बधाई ज्ञापित की है।

मुख्यमंत्री Bhupesh Baghel ने दी बधाई: 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ट्वीट करते हुए कहा है की अपनी काष्ठ कला से पथभ्रष्ट लोगों को मुख्य धारा में जोड़ने वाले कलाकार अजय कुमार मंडावी जी, छत्तीसगढ़ी नाट्य नाच कलाकार डोमार सिंह कुंवर जी, पंडवानी गायिका उषा बारले जी को कला के क्षेत्र में पद्म श्री से सम्मानित किए जाने पर बधाई।छत्तीसगढ़ को आप सब पर गर्व है।

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106 लोगों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा: 

केंद्र सरकार ने इस साल कुल 106 लोगों को पद्मश्री अलंकरण देने की घोषणा की है। इसमें छत्तीसगढ़ के 3 हस्तियां शामिल हैं, जिन्हें पद्म श्री से नवाजा जाएगा। इसमें कांकेर के अजय कुमार मंडावी, बालोद जिले के ग्राम लाटा बोड़ के निवासी डोमार सिंह कुंवर और दुर्ग जिले की उषा बारले का चयन किया गया है। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश की राष्ट्रपति द्रौपति मुर्मू ने देश को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने पद्म पुरस्कारों की घोषणा की। जानते हैं तीनों हस्तियों के बारे में...

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बालोद जिले से डोमार सिंह कुंवर को नृत्य कला के क्षेत्र में : 

छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले के निवासियों के लिए गणतंत्र दिवस की इस पूर्व संध्या ने खुशियों से भर दिया। बालोद जिले के ग्राम लाटा बोड़ के निवासी नृत्य कला के साधक एवं मशहूर कलाकार डोमार सिंह कुंवर को पद्म श्री से सम्मानित करने का ऐलान किया है। इस खबर के बाद से बालोद जिले में हर्ष व्याप्त है। डोमार ने छत्तीसगढ़ की विलुप्त होती नाचा की कला को देश से लेकर विदेशों तक ख्याति दिलाई। इन्होंने 5 हजार से भी ज्यादा मंचन किया है। डोमार सिंह 12 साल की उम्र में ही मंच पर उतर गए थे। उन्होंने लुप्त होते छत्तीसगढ़ी हास्य गम्मत नाचा कला विधा को एक कलाकार 47 साल से परी व डाकू सुल्तान की भूमिका निभाकर जिंदा रखे हुए हैं।

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देशभर में 5 हजार से ज्यादा मंचों पर दे चुके हैं प्रस्तुति: 

बालोद ब्लॉक के ग्राम लाटाबोड़ निवासी 74 साल के डोमार सिंह कुंवर ने नाचा गम्मत को न सिर्फ जीया बल्कि अपने स्कूल से लेकर दिल्ली के मंच पर मंचन किया है। अब नाचा गम्मत और संस्कृति की अनोखी विरासत को छोटे बच्चों को सिखाकर इसे सहेजने का प्रयास कर रहे हैं। डोमार छत्तीसगढ़ के अलावा देशभर में 5 हजार से ज्यादा मंचों पर प्रस्तुति दे चुके हैं। इसके अलावा प्रेरणादायक लोक गीत, पर्यावरण, नशामुक्ति, कुष्ठ उन्मूलन के गीत लिख चुके हैं।

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कांकेर जिले से अजय कुमार मंडावी को काष्ठ शिल्प क्षेत्र में : 

कांकेर जिले के ग्राम गोविंदपुर के रहने वाले अजय कुमार मंडावी ने काष्ठ शिल्प कला में गोंड ट्राईबल कला का समागम किया है। उन्होंने नक्सली क्षेत्र के प्रभावित और भटके हुए लोगों को काष्ठ शिल्प कला से जोड़ते हुए क्षेत्र के 350 से ज्यादा लोगों के जीवन में बदलाव लेकर आने के साथ-साथ लकड़ी की अद्भुत कला से युवाओं को जोड़ा है। युवाओं क हाथ से बंदूक छुड़ाकर छेनी उठाने के लिए प्रेरित करने जैसे कार्यों के लिए मंडावी को पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। बीते दिनों लकड़ी पर कलाकारी करते हुए इन्होंने बाइबल, भगवत गीता, राष्ट्रगीत, राष्ट्रगान, प्रसिद्ध कवियों की रचनाएं को उकेरने का काम किया।

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पूरा परिवार जुड़ा है कला से: 

मंडावी का पूरा परिवार आज किसी न किसी कला से जुड़ा हुआ है। कहीं न कहीं उन्हें यह कला विरासत में मिली है। उनके पिता आरती मंडावी मिट्टी की मूर्तियां बनाने का काम करते थे, जबकि उनकी मां सरोज मंडावी पेंटिंग का काम किया करती थीं। इतना ही नहीं उनके भाई विजय मंडावी एक अच्छे अभिनेता व मंच संचालक भी हैं।

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दुर्ग जिले की उषा बारले को पंडवानी गायन के क्षेत्र में: 

दुर्ग जिले की उषा बारले को पंडवानी गायन के क्षेत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। इन्होंने प्रख्यात पंडवानी गायिका पद्मविभूषण तीजनबाई से पंडवानी का प्रशिक्षण लिया है। बारले न केवल भारत बल्कि लंदन और न्यूयार्क जैसे शहरों में पंडवानी की प्रस्तुति दे चुकी हैं। बारले का जन्म 2 मई 1968 को भिलाई में हुआ था। उनकी पिता स्व. खाम सिंह जांगड़े और माता माता धनमत बाई हैं। उनका विवाह अमरदास बारले के साथ बाल विवाह 1971 में हुआ। सात वर्ष की उम्र में उन्होंने गुरु मेहत्तरदास बघेलजी से पंडवानी गायन की शिक्षा ली।

डा. तीजन बाई से लिया प्रशिक्षण:

बारले ने अपना पहला कार्यक्रम दुर्ग जिले के भिलाई खुर्सीपार में दिया। पदम् विभूषण डा. तीजन बाई से प्रशिक्षण लिया। तपोभूमि गिरौदपुरी धाम में स्वर्ण पदक से 6 बार सम्मानित हो चुकी हैं। उनकी अंतिम इच्छा है कि मंच पर पंडवानी गायन करते हुए उनके प्राण जाए। वो अपनी संस्था की ओर से सेक्टर 1 भिलाई में निशुल्क पंडवानी प्रशिक्षण देती हैं।

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