MP Politics : अचानक चर्चा में आ गए गोपाल, भूपेंद्र, फग्गन....

MP Politics : अचानक चर्चा में आ गए गोपाल, भूपेंद्र, फग्गन....

दिनेश निगम ‘त्यागी’ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भोपाल दौरे को लेकर कई तरह के निष्कर्ष निकाले जा रहे हैं। विश्लेषक इस दौरान के घटनाक्रमों को अपने-अपने नजरिए से देख रहे हैं। मोदी के दौरे से प्रदेश भाजपा के तीन वरिष्ठ नेता अचानक चर्चा में आ गए। ये हैं, गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह और फग्गन सिंह कुलस्ते। ये तीनों विधायक तो हैं लेकिन इनके पास कोई अन्य महत्वपूर्ण जवाबदारी नहीं है। जबकि ये अपने-अपने क्षेत्र में पार्टी के चेहरे हैं और हमेशा इनके पास कोई न कोई दायित्व रहा है। इनके चर्चा में आने की वजह है, इन्हें एयरपोर्ट बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत कराना। 

जानकार कहते हैं कि बिना पीएमओ की सहमति के बाहर के विधायकों को इस तरह राजधानी बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी से नहीं मिलाया जाता। इसका साफ संकेत है कि सरकार अथवा संगठन में इन्हें कोई बड़ी जवाबदारी दी जाने वाली है। गोपाल भार्गव तो कुछ घंटे पहले ही भोपाल से गढ़ाकोटा पहुंचे थे क्योंकि उन्होंने रहली में अहिल्याबाई की प्रतिमा स्थापित कराई थी, वहां कार्यक्रम था। अचानक भोपाल से रात में उन्हें सूचना दी गई कि उन्हें एयरपोर्ट पर मोदी जी का स्वागत करना है। वे रात में ही भोपाल पहुंच गए। इसी तरह भूपेंद्र और कुलस्ते को भी आमंत्रित किया गया। स्वाभाविक तौर पर इनके समर्थक उन्हें मिलने वाली बड़ी जिम्मेदारी से जोड़ कर देख रहे हैं।

मोदी के कार्यक्रम से दूर रहीं भाजपा की ये हस्तियां....

नारी शक्ति की प्रतीक लोकमाता देवी अहिल्याबाई की 300 वीं जयंती पर कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं और इनसे भाजपा में नारी शक्ति की प्रतीक प्रमुख हस्तियों को ही दूर रखा गया। अहिल्याबाई की जन्म जयंती के उपलक्ष्य में राजधानी में महिला सशक्तिकरण महासम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए। कार्यक्रम में प्रदेश भर से बड़ी तादाद में महिलाओं को बुलाया गया। मोदी ने दतिया, सतना में एयरपोर्ट और इंदौर में मेट्रो का लोकार्पण किया। इनमें पहली यात्रा के लिए महिलाओं को ही चुना गया। इस महत्वपूर्ण अवसर पर भाजपा की फायरब्राड नेत्री पूर्व मुख्यमंत्री साध्वी उमा भारती और इंदौर से 8 बार सांसद रहीं लोकसभा की पूर्व अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ताई की गैर मौजूदगी चर्चा में रही। 

इन्हें भुला दिया गया या अन्य कारण से नहीं दिखाई पड़ी, कोई नहीं जानता। ये दोनों भोपाल के महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम में दिखी ही नहीं, सुमित्रा महाजन इंदौर में मेट्रो के लोकार्पण कार्यक्रम से भी नदारद थीं। भाजपा ने भले इन दोनों नेत्रियों को रिटायर कर दिया है लेकिन महिला सशक्तिकरण के इस प्रमुख कार्यक्रम में इन्हें होना चाहिए था। भाजपा के तीसरे नेता हैं लगभग 17 साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम से ये भी दूर रहे। इनकी गैरमौजूदगी के मायने तलाशे जा रहे हैं।

जलील होने से अच्छा था, इस्तीफा दे देते मंत्री जी....

प्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा के आदिवासी चेहरे विजय शाह द्वारा कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर दिए गए आपत्तिजनक बयान का मामला ठंडा पड़ने लगा है। इसकी वजह देश की सुप्रीम अदालत भी है। उसने हाईकोर्ट की सुनवाई पर रोक लगाने के साथ मंत्री विजय शाह की गिरफ्तारी पर रोक जुलाई तक के लिए बढ़ा दी है। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की प्रारंभिक प्रतिक्रियाओं से यह अलग रुख था। इसलिए कहा जा रहा है कि अब शाह का कुछ नहीं बिगड़ेगा। लेकिन भाजपा शाह को लेकर अब भी नफा-नुकसान का आकलन कर रही है। उन्हें न मंत्रिमंडल से हटा रही और न ही केबिनेट की बैठकों में बुला रही। 

एक तरफ भाजपा कहती है कि विजय शाह मामले की सुनवाई कोर्ट में चल रही है। जो कोर्ट कहेगा, उसका पालन किया जाएगा। ऐसा कह शाह को मंत्रिमंडल से हटाने की मांग खारिज कर दी जाती है। दूसरी तरफ विजय शाह को जलील भी किया जा रहा है। इंदौर के राजवाड़ा और भोपाल की केबिनेट बैठकों में उन्हें नहीं बुलाया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 31 मई के कार्यक्रम से भी उन्हें दूर रखा गया। शाह के एक समर्थक का कहना था कि इस तरह जलील होने से अच्छा था कि मंत्री जी इस्तीफा ही दे देते। इसके बाद उनके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती क्योंकि उनकी मंशा सेना अथवा कर्नल सोफिया को अपमानित करने की नहीं थी।

लक्ष्मण के खिलाफ हो सकती कार्रवाई की सिफारिश....!

पहलगाम की आतंकी घटना के बाद दिए पार्टी विरोधी बयान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लक्ष्मण सिंह इस समय शांत हैं। संभवत: उन्हें अहसास हो चुका है कि कांग्रेस नेतृत्व उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है। बयान ही इतना तीखा दिया था कि उन्हें पार्टी से निकाला भी जा सकता है। लक्ष्मण ने कहा था कि राहुल गांधी और राबर्ट बाड्रा के बयानों के कारण आतंकी घटनाएं होती हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला आतंकवादियों को संरक्षण देते हैं, इसलिए कांग्रेस को उनसे समर्थन वापस ले लेना चाहिए। लक्ष्मण ने पार्टी लाइन के खिलाफ पहली बार बयान नहीं दिया था। 

समय-समय पर वे लक्ष्मण रेखा पार करते रहते हैं। कई बौर उन्होंने अपने बड़े भाई दिग्विजय सिंह को भी नहीं बख्शा। इस बार मामला ज्यादा गंभीर था इसलिए उन्हें नोटिस जारी कर 10 दिन में जवाब मांगा गया। कांग्रेस की केंद्रीय अनुशासन समिति के अध्यक्ष और सांसद तारिक अनवर को लक्ष्मण द्वारा भेजा गया जवाब मिल गया है। सूत्रों का कहना है कि वे स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए समिति लक्ष्मण के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश कर सकती है। इस आधार पर उन्हें कांग्रेस से बाहर भी किया जा सकता है, हालांकि कार्रवाई राहुल गांधी के रुख पर निर्भर करेगी।

दिग्विजय डटे रहे, नहीं मिला किसी नेता का साथ....

ग्वालियर की संविधान बचाओ रैली में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने घोषणा की थी कि भविष्य में वे पार्टी के किसी कार्यक्रम में मंच पर नहीं बैठेंगे। सामने आम कार्यकर्ताओं के बीच बैठेंगे और सिर्फ संबोधन के लिए ही मंच पर जाएंगे। दिग्विजय के इस निर्णय के पीछे दो प्रमुख कारण थे। पहला, भोपाल के एक कार्यक्रम में भीड़ ज्यादा होने से मंच का गिरना, इसमें पार्टी के कई नेता गंभीर रूप से घायल हो गए थे। दूसरा, ग्वालियर के कार्यक्रम में मंच पर भीड़ बढ़ने से अफरा-तफरा का मच जाना। पार्टी के अन्य कार्यक्रमों में भी मंचों पर नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच धक्का-मुक्की आम थी। दिग्विजय को उम्मीद थी कि उनके इस निर्णय का अन्य नेता भी अनुसरण करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जबलपुर में शनिवार को आयाजित जय हिंद सभा में भी मंच पर नेताओं की खासी भीड़ थी। 

दिग्विजय अपनी घोषणा के अनुसार मंच की बजाय सामने बैठे, लेकिन किसी नेता ने उनका साथ नहीं दिया। अलबत्ता, पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया ने उन्हें पैर छूकर मंच पर लाने की कोशिश की लेकिन दिग्विजय निर्णय पर अडिग रहे। मजेदार बात यह है कि भोपाल की घटना से सबक लेकर पार्टी ने सभाओं, रैलियों के लिए जो मापदंड बनाए हैं, उसमें भी मंच पर ज्यादा नेताओं का न बैठना तय किया गया है। पर कांग्रेस ने तय मापदंड पर भी अमल नहीं किया।


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