बिलासपुर: छत्तीसगढ़ में भांग की व्यवसायिक खेती को लेकर दायर जनहित याचिका को हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है। याचिका में भांग को “गोल्डन प्लांट” बताते हुए इसे औद्योगिक, औषधीय और आर्थिक दृष्टि से उपयोगी बताते हुए राज्य में इसकी खेती की अनुमति मांगी गई थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की खंडपीठ ने इसे तुच्छ और अनुचित करार दिया।
याचिका में क्या कहा गया था?
बिलासपुर के तिलक नगर निवासी डॉ. सचिन काले द्वारा दायर इस याचिका में प्राचीन ग्रंथों, ब्रिटिश कालीन रिपोर्टों और केंद्र सरकार की कुछ नीतियों का हवाला देते हुए भांग को भारतीय संस्कृति और चिकित्सा का अहम हिस्सा बताया गया था। याचिकाकर्ता का तर्क था कि यदि भांग में THC (टेट्राहाइड्रोकैनाबिनोल) की मात्रा 0.3% से कम हो, तो वह नशे के लिए अनुपयुक्त होती है। उन्होंने यह भी कहा कि फरवरी 2024 में उन्होंने सरकार को इस विषय पर पत्र भेजा था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
डॉ. काले ने NDPS एक्ट की धारा 10 और 14 का हवाला देते हुए कहा कि राज्य सरकार को भांग की खेती के लिए लाइसेंस जारी करने का अधिकार है, लेकिन इसका अब तक उपयोग नहीं किया गया।
हाईकोर्ट का जवाब: जनहित नहीं, निजी हित
हाईकोर्ट ने कहा कि यह याचिका जनहित की आड़ में निजी उद्देश्यों को साधने की कोशिश है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NDPS एक्ट के अनुसार भांग की खेती केवल चिकित्सा, वैज्ञानिक या बागवानी उद्देश्यों के लिए की जा सकती है और इसके लिए विधिसम्मत अनुमति आवश्यक है।
भांग की खेती से सामाजिक खतरे की आशंका
कोर्ट ने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ में पहले से ही नशीले पदार्थों के दुरुपयोग की समस्या गंभीर होती जा रही है। ऐसे में भांग की व्यवसायिक खेती की अनुमति देना समाज के लिए गंभीर खतरे का कारण बन सकता है। कोर्ट ने प्रदेश में बढ़ रही मादक द्रव्यों की तस्करी, अपराध और मानसिक रोग के मामलों पर चिंता जताई और कहा कि नशे की लत न केवल व्यक्ति, बल्कि पूरे परिवार और समाज को प्रभावित करती है।
नीति निर्माण का अधिकार सरकार का
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में नीति निर्धारण कार्यपालिका का विषय होता है, और अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। कोर्ट ने याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग बताते हुए खारिज कर दिया।