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Mahashivratri special Vishwanath Jyotirlinga : प्रलय से परे होंगे यहां के निवासी, ये विश्वनाथ की नगरी नाम है काशी

Mahashivratri special Vishwanath Jyotirlinga : प्रलय से परे होंगे यहां के निवासी, ये विश्वनाथ की नगरी नाम है काशी

भोपाल। एक नगरी जिसके बारे में हिन्दू मान्यता है कि ये प्रलय के समय भी डूबेगी नहीं। यह वो नगरी है जो स्वयं भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। यहां सभी जीवों को उनके पापों से मुक्त कर जन्म -रण के बंधन से छुटकारा स्वयं महादेव द्वारा दिलाया जाता है। तो चलिए 12 दिन 12 ज्योतिर्लिंग की इस शृंखला में आज इस नगरी और भोलेनाथ के सातवें ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ के बारे में विस्तार से जानते हैं। इस ज्योतिर्लिंग की खासियत ये है कि यहां भोलेनाथ अकेले नहीं हैं, यहां वे माता पार्वती के ही साथ स्थान ग्रहण किए हुए हैं। इस ज्योतिर्लिंग को कई नामों से भी जाना जाता है।

धर्म ग्रंथों में इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बारे में कहा गया है कि ये नगरी भोलेनाथ द्वारा पार्वती माता के लिए बसाई गई थी। इस मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक मान्याएं भी प्रचलित हैं। इन मान्यताओं के अनुसार यहां माता पार्वती अपने अन्नपूर्णा रूप में विराजमान हैं, वहीं भोलेनाथ तारणहार के रूप में यहां सभी को आवागमन के बंधन से मुक्त करते हैं। यह भी कहा जाता है कि पूरे संसार के नाथ होने के कारण इनका नाम विश्वनाथ है। यहां तक कि संसार निर्माण के लिए भी इसी स्थान पर आकर विष्णु ने महेश विनती की थी। तब उनकी नाभी से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई और सृष्टि का निर्माण हुआ। 

पार्वती माता का गौना

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी बनारस में स्थापित है। इन्हें विश्वेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। बनारस को ही आदिकाल में काशी के नाम से जाना जाता था। आज भी इस नगरी में धर्म और पांडित्य की अनूठी विधा अपना अस्तित्व बनाए हुए है। इस मंदिर के बारे में किवदंति है कि इसकी स्थापना पार्वती माता के गौना के समय हुई थी। बताया जाता है, जब पार्वती माता से भोलेनाथ की शादी हुई उस समय वे कैलाश पर्वत पर रहा करते थे, लेकिन वहां माता पार्वती को ले जाना थोड़ा परेशानियां खड़ी कर सकता था। इस कारण माता पार्वती अपने पिता के ही घर रहा करत थी। भोलेनाथ से इस प्रकार की दूरी उनसे बर्दाश्त नहीं होती थी। एक दिन भोलेनाथ उनसे मिलने गए। तब माता पार्वती ने भोलेनाथ के ही साथ रहने की इच्छा जताई और उनके साथ चलने को कहा।

भोलेनाथ इस बात को मान कर पार्वती माता को काशी नगरी ले आए और यहीं पर माता पार्वती के साथ विश्वनाथ ज्यतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। मान्यता है कि ये नगरी भोलेनाथ के ही त्रिशूल पर बसी हुई है। कहा जाता है कि इस नगरी का संचालन स्वयं विश्वनाथ और माता पार्वती करती हैं। पार्वती मां यहां अन्नपूर्णा के रूप में विराजमान हैं, जो काशी में रहने वाले प्रत्येक  जीव का पेट भरती हैं। इनके साथ ही भगवान शिव विराजमान हैं, जो यहां आने वाले जीवों को तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। इसी कारण इस ज्योतिर्लिंग को ताड़केश्वर के नाम से भी जाना जाता है। 

मन्यताएं जो करती हैं महानता का बखान

धर्म की नगरी काशी के बारे में कई प्रकार की मान्यताएं हैं। इनमें से एक मान्यता इसे विनाशकाल में भी स्थायी रहने की ओर इशारा करती है। इस मान्यता के अनुसार काशी नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर स्थापित है। माना जाता है कि जब प्रलय आएगा तब भगवान शिव अपने त्रिशूल को ऊपर कर लेंगे और इस नगरी को विनाश से बचा लेंगे। नगरी के बारे में माना जाता है कि यहां आकर स्नान करने से मुक्ति के रास्ते खुल जाते हैं। इस नगरी में आकालमृत्यु के कारण मृत लोगों को भी परलोक जाने का मार्ग मिल जाता है। कोई भी व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इस मंदिर को तंत्र साधना के लिए भी खास माना गया है, साथ ही श्री यंत्र और तंत्र के लिए भी ये मंदिर खास मान्यता रखता है।

आपको बता दें, कई लोग काशी में अपने अंतिम समय आते हैं, ताकि यहीं उनके प्राण निकले। इसे भी एक मान्यता के कारण ही किया जाता है। क्योंकि लोग मानते हैं कि काशी में प्राण त्यगने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन्ही में एक और मान्यता है जो इस संसार के निर्माण के बारे में बताती है। इस प्रकार की किवदंति ही कि संसार का निर्माण करने के लिए विष्णु के मन में लालसा उत्पन्न हुई थी। जिसके बाद उन्होंने इसी काशी में आकर आशुतोष को प्रसन्न किया, तब आशुतोष के ही कारण विष्णु के शयन के समय उनकी नाभी से ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। इसके बाद ब्रह्मा द्वारा संसार की निर्माण किया गया। आरती को लेकर मान्यता यह भी है कि यहां भोलेनाथ राजा और गुरू दोनों रूपों में विराजते हैं। कहते हैं कि दिन के समय वे गुरू के रूप में रहा करते हैं। वहीं जब रात के नौ बजे इनका श्रंगार किया जाता है तो ये राजा के रूप में निवास करते हैं। इस कारण इन्हें राजराजेश्वर भी कहा जाता है। वहीं शिवरात्री के दिन भी रात के समय बाबा अघोड़ रूप में विचरण करत हैं। 

कैसा है विश्वनाथ का मंदिर 

मंदिर की बनावट के बारे में यदि देखा जाए तो ये मंदिर गंगा नदी के किनारे विश्वनाथ गली में है। इस जगह का नाम विश्वनाथ गली होने का भी अपना ही एक कारण है, यहां मंदिरों का पूरा एक समूह है जिसके कारण इसे इस नाम से पुकारा जाता है। इन सभी मंदिरों के बीच विश्वनाथ मंदिर है जो चतुर्भुज आकार में है। मंदिर में एक कुआं भी है जिसे ज्ञानवापी के नाम से जाना जाता है। जी हां इसी कुएं के एक सरफ ज्ञानवापी मस्जिद और एक तरफ मंदिर है। हालांकि इस ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मंदिर को ध्वस्त कर कराया गया था। इस कुएं के बारे में कहा जाता है कि आक्रमणकारियों से ज्योतिर्लिंग को बचाने के लिए इस मंदिर के पुजारी ने ज्योतिर्लिंग लेकर इसमें छलांग लगा दी थी।

इसकी संरचना तीन भागों में है। जिसमें एक शिखर फिर गुंबद और आखिर में गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है। इस मंदिर के शिखरों पर एक टन(1000 किलोग्राम) शुद्ध सोने की परत चढ़ाई गई है। इस मंदिर का शिखर 15.5 मीटर ऊचा है। इस मंदिर के चारों ओर कई मंदिर हैं। जिनमें काल भैरव, कार्तिकेय, अविमुक्तेश्वर, विष्णु, गणेश, शनि, शिव और पार्वती के छोटे मंदिर हैं। इस मंदिर में गर्भग्रह में ऊपर की ओर श्री यंत्र उकेरा गया है। इस कारण इसे तांत्रिक सिद्धी के लिए खास माना जाता है। यहां चार तंत्र द्वारों के नाम शांति द्वार, कला द्वार, प्रतिष्ठा द्वार और निवृत्ति द्वार हैं। गर्भगृह के ईशान कोण में ज्योतिर्लिंग स्थापित है इस कारण इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। क्योंकि ईशान स्वयं भोलेनाथ को ही कहा जाता है। 

क्या कहता है इतिहास

इस मंदिर के स्थापत्य को कई युगों पुराना कहा जाता है। वहीं अगर इतिहास में निहित जानकारी को भी देखा जाए तो इस मंदिर के निर्माण का जिक्र केवल पुराणों और हिन्दु ग्रंथों में मिलता है। इतिहास की दूसरी किताबों में भी इस मंदिर के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इसकी स्थापना किसके द्वारा की गई, लेकिन हां इतिहास में मुस्लिम शासकों द्वारा इसके कई बार तोड़े जाने और बार-बार हिन्दू शासकों द्वारा पुनर्निर्माण किए जाने की जानकारी लिखी गई है। इतिहास में इस मंदिर को तोड़कर बनाई गई ज्ञानवापी मस्जिद का भी जिक्र है। औरंगजेब ने इस मंदिर को तोड़कर यहां ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। जिसमें आज भी मंदिर के अवशेषों को साफ देखा जा सकता है। 
 


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