रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री साय ने पुलिस कमिश्नर की व्यवस्था लागू करने की घोषणा कर दी है। बता दें कि पुलिस कमिश्नरी की व्यवस्था देश के कई राज्यों में लागू है, दरअसल इसमें जिला पुलिस का मुखिया एसपी इसमें मूल रूप से एसएसपी की जगह पुलिस कमिश्नर होता है। इस ओहदे पर सरकार डीआईजी से लेकर एडीजी स्तर के अधिकारी को तैनात कर सकती है। वहीं राज्य सरकार उसके अधिकार की अधिसूचित करती है, और ये अफसर अनुभवी होता है इसमें से कुछ अधिकार पुलिस कमिश्नर को मजिस्ट्रेट के भी मिलते हैं। कमिश्नर आईजी रैंक पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में भी हैं।
इन राज्यों में लागू है कमिश्नरी व्यवस्था:
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश तर्ज पर छत्तीसगढ़ सरकार ये नियन लागू कर सकती है। बता दें कि यहां के कमिश्नर को सीमित मजिस्ट्रीयल पॉवर्स मिली हैं। मध्य प्रदेश के भोपाल और इंदौर में कमिश्नरी की व्यवस्था है। जिससे वहां छोटे मामलों में वो अधिकारों और मजिस्ट्रेट का इस्तेमाल कर सकता है, हालांकि डीएम के हाथों में लाइसेंसिंग वगैरह का जिम्मा रहता है। वहीं मुंबई दिल्ली और पंजाब कि बता करें तो यहां पर लाइसेंस वगैरह जारी करने के अधिकार कमिश्नर के पास ही होता है।फिलहाल ये पुलिस कमिश्नर की व्यवस्था उत्तरप्रदेश के आगरा, लखनऊ, मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर नोएडा यानी गौतमबुद्ध नगर और वाराणसी में है।
बदल जाएंगे अफसरों के पदनाम:
कमिश्नर अपने अधिकार अपने मातहत अफसरों को देता है। उनके नाम भी उसी के अनुरुप हो जाते हैं। जैसे कमिश्नर के नीचे एडिश्नल कमिश्नर हो सकते हैं। ये राज्य सरकार पर निर्भर करेगा। कमिश्नर की मदद के लिए उसी रैंक के किसी अफसर को एडिश्नल कमिश्नर तैनात करे। कमिश्नर अगर आईजी लेबल का है। तो ऐसे में डीआईजी लेबल के उनके मातहत में अफसरों को डिप्टी कमिश्नर नियुक्त करते हैं, और कमिश्नर एडीजी होने की स्थिति में ज्यादातर डीसीपी ओहदे पर डीआईजी लेबल के अफसर ही तैनात होते हैं। लेकिन उनके नीचे में एडिशन डीसीपी भी नियुक्त होते हैं, जो एसपी और एसएसपी रैंक के अफसर होते हैं।
जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका:
बता दें कि जनजाति बहुल राज्य छत्तीसगढ़ में डिस्ट्रक मजिस्ट्रेट या डिस्ट्रक कलेक्टर की भूमिका पर इस के असर पड़ने की संभावना कम ही है। क्योंकि राजस्व के काम यहां इस कदर उलझे रहते हैं कि उसके काम काज अधिकारों में कटौती से प्रभावित नहीं होगा। इस लिहाज से डीएम और एसडीएम अपने पूरे अधिकारों के साथ अपने कार्य का निर्वहन रहेंगे।
कमिश्नरी बनने से होंगे ये बदलाव:
कमिश्नरी बनने से सबसे बड़ा अंतर ये होगा है कि, जिला पुलिस का मुखिया ऊंचे रैंक वाला और एक अनुभवी अफसर बन जाता है। बहुत सारे निर्णय पुलिस स्तर पर विभाग में ही होने लगते हैं। ऐसे में जरुरत के अनुसार पुलिस फोर्स मिलने से कसी भी तरह की समस्याएं नहीं होती है। एसडीएम लेबल के अफसरों को फौजदारी मामलों की सुनवाई करने होते हैं, ऐसी स्थित्ति में वह कमिश्नर के पास जाते हैं। हालांकि राज्य सरकार चाहे तो इसे रोक भी सकती है, लेकिन उस स्थिति में कमिश्नरी बनाने का औचित्य खत्म हो जाएगा। बहुत से छोटे मसले ऐसे होते हैं, जिनमें पुलिस और एसडीएम के बीच तालमेल की कमी से बात बिगड़ जाती है। जबकि एसीपी या डीसीपी स्तर के अफसर के पास ये अधिकार आ जाने से पुलिस के काम काज में सुविधा होती है। जैसे किसी को पाबंद करना या निषेधाज्ञा वगैरह लागू करना। दीवानी वाले मामले एसडीएम के पास ही रहते हैं।