क्रिसमस की रात अमेरिका ने नाइजीरिया में आतंकी संगठन ISIS से जुड़े ठिकानों पर बड़ी सैन्य कार्रवाई की। इस एयरस्ट्राइक की जानकारी खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया के जरिए दी। उन्होंने साफ कहा कि नाइजीरिया में ईसाइयों को निशाना बनाकर की जा रही हत्याएं अब अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा। खास बात यह रही कि यह कार्रवाई नाइजीरिया सरकार की सहमति और सहयोग से की गई, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह सवाल उठने लगा कि आखिर नाइजीरिया अपने ही क्षेत्र में अमेरिकी हमले के लिए क्यों राजी हुआ।
नाइजीरिया सरकार की सहमति क्यों जरूरी थी:
अमेरिकी रक्षा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, यह ऑपरेशन नाइजीरिया के उत्तरी इलाकों में सक्रिय ISIS आतंकियों के खिलाफ किया गया। इस कार्रवाई में नौसेना के युद्धपोत से दर्जनभर से अधिक टॉमहॉक क्रूज मिसाइलें दागी गईं। नाइजीरिया के विदेश मंत्रालय ने पुष्टि की कि यह हमला इंटेलिजेंस शेयरिंग और आपसी सैन्य सहयोग के तहत हुआ। नाइजीरिया लंबे समय से बोको हराम और ISIS वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISWAP) जैसे आतंकी संगठनों से जूझ रहा है। स्थानीय सुरक्षा बलों की सीमित क्षमता के चलते सरकार ने अमेरिका के साथ मिलकर यह कदम उठाना बेहतर समझा।
ट्रंप ने नाइजीरिया को ही क्यों चुना निशाना:
डोनाल्ड ट्रंप बीते कई हफ्तों से नाइजीरिया सरकार पर ईसाइयों की सुरक्षा में विफल रहने का आरोप लगाते रहे हैं। अमेरिका के दक्षिणपंथी और इवेंजेलिकल ईसाई समूहों का दावा है कि नाइजीरिया में ईसाइयों का सुनियोजित उत्पीड़न हो रहा है। रिपब्लिकन सीनेटर टेड क्रूज तक नाइजीरियाई अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर चुके हैं। ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में नाइजीरिया को “कंट्री ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न” (CPC) की सूची में डाला था। हालांकि, जो बाइडेन सरकार ने 2023 में यह टैग हटा दिया था। लेकिन हमले से ठीक एक दिन पहले ही ट्रंप ने दोबारा नाइजीरिया को CPC घोषित कर दिया।
ट्रंप की खुली चेतावनी:
ट्रंप पहले ही चेतावनी दे चुके थे कि अगर नाइजीरिया में ईसाइयों पर हमले नहीं रुके तो अमेरिका सभी आर्थिक और सैन्य सहायता रोक देगा, और आतंकी ठिकानों पर सीधे सैन्य कार्रवाई करेगा। इस चेतावनी के बाद एयरस्ट्राइक को ट्रंप की राजनीतिक और वैचारिक रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। क्या नाइजीरिया में वाकई ईसाइयों का उत्पीड़न हो रहा है? यह सबसे बड़ा और विवादित सवाल है।रिपोर्ट्स के मुताबिक जनवरी से 10 अगस्त के बीच 7,000 से ज्यादा ईसाइयों की हत्या धार्मिक हिंसा में हुई। इन हमलों के लिए बोको हराम, ISWAP और फुलानी चरमपंथी गुटों को जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि, नाइजीरिया सरकार का कहना है कि हिंसा का शिकार केवल ईसाई नहीं, बल्कि मुस्लिम समुदाय भी बड़ी संख्या में प्रभावित हुआ है।
हिंसा की जड़ें सिर्फ धर्म नहीं हैं:
विशेषज्ञों का मानना है कि नाइजीरिया की हिंसा को केवल धार्मिक नजरिए से देखना अधूरा सच होगा। इसके पीछे कई परतें हैं:
1. उत्तर-पूर्वी नाइजीरिया
बोको हराम और ISWAP का आतंक
2009 से अब तक हजारों लोगों की मौत
2. मध्य नाइजीरिया
मुस्लिम चरवाहों और ईसाई किसानों के बीच
जमीन और पानी को लेकर लंबे समय से संघर्ष
3. उत्तर-पश्चिमी इलाके
फिरौती के लिए अपहरण करने वाले आपराधिक गिरोह
कानून-व्यवस्था की गंभीर समस्या:
धर्म, जातीय तनाव, संसाधनों की कमी और आतंकी नेटवर्क ये सभी कारण एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। अमेरिका की नाइजीरिया में की गई एयरस्ट्राइक सिर्फ आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई नहीं है, बल्कि इसके पीछे धार्मिक स्वतंत्रता, अमेरिकी घरेलू राजनीति और वैश्विक सुरक्षा रणनीति भी शामिल है। नाइजीरिया की सहमति बताती है कि देश अपनी आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद पर निर्भर होता जा रहा है।