52 Shaktipeeths 39 Kamakhya Shaktipeeth: असम के गुवाहाटी शहर के नीलांचल पर्वत पर स्थित कामाख्या शक्तिपीठ भारत के 52 शक्तिपीठों में से सबसे प्रमुख माना जाता है। देवी कामाख्या को समर्पित यह प्राचीन मंदिर सृजन शक्ति और शक्तिस्वरूपा का प्रतीक माना जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार इसी स्थान पर माता सती का योनि-भाग गिरा था, जिसके बाद यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। नवरात्र के दौरान यहां लाखों भक्त देवी का आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं। मान्यता है कि यहां की गई कोई भी कामना अवश्य पूर्ण होती है।
कामाख्या शक्तिपीठ का महत्व:
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव सती के शरीर को लेकर विलाप करते ब्रह्मांड में भ्रमण कर रहे थे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के अंगों को पृथक कर दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। इन्हीं में से एक है कामाख्या शक्तिपीठ, जहां देवी सती का योनिभाग गिरने की मान्यता है। देवी को यहां कामाख्या, कामरूपा और महामाया के नाम से पूजा जाता है। भक्त मानते हैं कि यहां की शक्तिस्थली सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है।
कामाख्या मंदिर का इतिहास:
कामाख्या मंदिर का इतिहास रहस्यों से भरा हुआ है। कई ग्रंथों में उल्लेख है कि कामदेव ने अपनी खोई शक्ति वापस पाने के लिए विश्वकर्मा की सहायता से इस मंदिर का निर्माण करवाया था। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यह मंदिर बेहद विशाल और अद्वितीय वास्तुकला से भरा हुआ था। कुछ लोकमान्यताओं के अनुसार, यह मंदिर आर्यों के आगमन से भी पहले अस्तित्व में था। विभिन्न राजवंशों ने समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण कराया, जिससे इसकी भव्यता आज भी कायम है।
मंदिर की अनोखी परंपरा बिना मूर्ति के होती है देवी की पूजा :
कामाख्या मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है। गर्भगृह में एक प्राकृतिक योनिकुंड (yoni-shrine) है, जिसमें सदैव जलधारा बहती रहती है। भक्त इसी कलेवर को सृजन शक्ति का प्रतीक मानकर पूजा करते हैं। यहां की प्रमुख दस महाविद्याओं के अलग-अलग मंदिर, प्राकृतिक योनिकुंड, तंत्र-साधना का प्रमुख केंद्र और सालाना अंबुबाची मेला, जिसे देवी के "वार्षिक ऋतुस्राव" का प्रतीक माना जाता है। अंबुबाची मेला तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस दौरान गर्भगृह के द्वार बंद रहते हैं और चौथे दिन लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं।
मंदिर की वास्तुकला:
नीलांचल पर्वत पर बसे इस शक्तिपीठ में मध्यकालीन उत्तर-पूर्वी शैली की झलक देखने को मिलती है। लाल रंग की गुंबदनुमा आकृति, पत्थरों पर बालीनुमा नक्काशी और शांत परिसर इसे आध्यात्मिक एवं अद्वितीय बनाते हैं। यहां की रहस्यमयी ऊर्जा और प्राकृतिक वातावरण हर भक्त को विशेष अनुभूति प्रदान करता है।
नवरात्र में क्यों आती है भक्तों की भीड़:
नवरात्र के पावन दिनों में कामाख्या मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ती है। माना जाता है कि इस अवधि में देवी का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यदि आप भी नवरात्र में शक्तिदर्शन की योजना बना रहे हैं, तो कामाख्या मंदिर आपका सबसे महत्वपूर्ण गंतव्य हो सकता है।