Angioplasty : बॉलवुड की मशहूर अभिनेत्री सुष्मिता सेन ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि हार्ट अटैक के बाद जब उनका स्टेंट लगाया गया, तब वह पूरी तरह होश में थीं और पूरी प्रक्रिया देख भी रही थीं। उनके इस बयान के बाद लोगों के मन में सवाल उठा कि क्या वाकई एंजियोप्लास्टी के दौरान मरीज को बेहोश नहीं किया जाता? क्या हार्ट में स्टंट डालते समय मरीज को बेहोश करना जरूरी है? आइए कार्डियोलॉजी विशेषज्ञों क्या राय है, जानते है।
क्या कहते है विशेषज्ञ?
कार्डियोलॉजी विशेषज्ञों के अनुसार एंजियोप्लास्टी के दौरान ज्यादातर मरीज पूरी तरह होश में रहते हैं। प्रोसीजर शुरू करने से पहले मरीज की बीपी, शुगर और अन्य जरूरी जांच की जाती है। इसके बाद जांघ के पास एक छोटा सा छेद कर कैथेटर को नसों के माध्यम से हार्ट की ब्लॉक नस तक पहुंचाया जाता है। कैथेटर के सिरे पर लगे बैलून के जरिए स्टेंट को ब्लॉक हिस्से में सेट किया जाता है।
स्क्रीन पर मॉनिटर
यह पूरी प्रक्रिया स्क्रीन पर देखी जा सती है। कार्डियोलॉजी विशेषज्ञों की माने तो स्टेंट लगाते समय मरीज को केवल हल्का दर्द महसूस होता है, जिसे सहना आसान होता है। प्रोसीजर के बाद कुछ घंटों तक मरीज को निगरानी में रखा जाता है और रिकवरी के अनुसार छुट्टी दे दी जाती है।
एंजियोप्लास्टी में जनरल एनेस्थीसिया की जरूरत कब पड़ती है?
कार्डियोलॉजिस्ट के अनुसार स्टेंट डालने की प्रक्रिया अधिकतर मामलों में बिना जनरल एनेस्थीसिया के की जाती है। मरीज को सिर्फ लोकल एनेस्थीसिया देकर उस हिस्से को सुन्न किया जाता है जहां से कैथेटर डाला जाता है, ताकि दर्द महसूस न हो। केवल बाईपास सर्जरी में मरीज को पूरी तरह बेहोश किया जाता है। स्टेंट के मामलों में बेहोशी तभी दी जाती है जब मरीज बुजुर्ग हो, घबराहट ज्यादा हो या फिर वह बिना बेहोशी के प्रक्रिया कराने में सक्षम न हो।