POLA TIHAR 2025: छत्तीसगढ़ में आज बैल पोला पर्व धूम धाम के साथ मनाया गया। यह पर्व न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि,महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में भी मनाया जाता है। भले ही अलग अलग जगहे पर यह त्योहार अलग अलग नाम से मनाया जाता है। लेकिन सभी जगह इस दिन बैलों और जाता-पोरा की पूजा की जाती है। साथ ही घरों में तरह तरह के पकवान भी बनाए जाते है। छत्तीसगढ़ का पोला पर्व प्रदेश की परंपरा, संस्कृति और कृषि से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व मुख्य रूप से किसानों और पशुपालकों का पर्व माना जाता है।
यह पर्व हर साल भाद्रपद मास (अगस्त–सितंबर) में अमावस्या के दिन मनाया जाता है। पोला का पर्व किसानों का सबसे बड़ा त्योहार माना जाता है। पोला पर्व किसानों और खेतीहर मजदूर के लिए विशेष महत्व रखता है। पोला तिहार के दिन किसान बैल की पूजा करते हैं और उन्हें आराम, साज-सज्जा और विशेष भोजन प्रदान करते हैं। यह त्योहार छत्तीसगढ़ की परम्परा, संस्कृति और लोक जीवन की गहराइयों से जुड़ा हुआ है।
पोला त्योहार का महत्व और परंपराएं
पोला त्योहार खास तौर पर खेती-किसानी से जुड़ा हुआ पर्व है। भाद्र मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पर्व को लेकर मान्यता है कि इस दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है। इस दिन परंपरानुसार खेत जाने की मनाही होती है और किसान अपने घरों में रहकर बैलों को सजाते हैं, उन्हें नहलाकर और पूजा-अर्चना करते हैं। इस पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके मूल में बैलों की पूजा और खेती की उन्नति के लिए आशीर्वाद प्राप्त करना है।
पोला पर्व की शुरुआत और मान्यताएँ
- पोला पर्व का नाम बैलों के गले में बाँधे जाने वाले लकड़ी के यंत्र ‘पोला’ से पड़ा है। खेती में जब बैलों को पहली बार हल चलाने के लिए लगाया जाता है, तो उनके गले में यह लकड़ी का जुआं (पोला) डाला जाता है।
- मान्यता है कि इस दिन बैलों की पूजा करने से खेती में उन्नति होती है, पशुधन निरोगी रहते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- पोला को प्रकृति, कृषि और पशुधन के प्रति आभार का पर्व भी कहा जाता है।
त्यौहार के पीछे का इतिहास
इस अनोखी परंपरा के पीछे एक दिलचस्प कहानी है। किंवदंती के अनुसार, प्राचीन समय में, इस क्षेत्र के राजा ने अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए दूर-दराज के युद्धों में सैनिकों को भेजा। इस दौरान, राज्य में खेती और किसानी का काम ठप्प हो गया, जिससे भुखमरी की स्थिति आ गई। जब सैनिकों को यह खबर मिली, तो वे तुरंत वापस आ गए। वापस आने के बाद, उन्होंने देखा कि बच्चे अपनी गायों और बैलों के साथ खेल रहे थे। यह देखकर, उन्हें खेती का महत्व समझ आया और उन्होंने बच्चों को पोला त्यौहार मनाने के लिए प्रेरित किया। इसी घटना को याद करते हुए, बच्चों ने मिट्टी के खिलौना बैल बनाने शुरू किए और यह परंपरा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रही।