बारह ज्योतिर्लिंगों में पहला स्थान रखने वाला सोमनाथ मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह मंदिर गुजरात के वेरावल बंदरगाह के पास प्रभास पाटन में स्थित है। शिव महापुराण के अनुसार, सोमनाथ के शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। चंद्रमा द्वारा स्थापना किए जाने के कारण ही इस शिवलिंग को "सोमनाथ" नाम दिया गया। आइए जानते हैं इस प्राचीन शिवधाम से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं और विशेषताएं।
चंद्रदेव को शाप से मिली थी मुक्ति
प्राचीन कथा के अनुसार, दक्ष प्रजापति ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रदेव से किया था। इन कन्याओं में से रोहिणी चंद्र की प्रिय पत्नी थी, जिससे बाकी 26 पत्नियों में ईर्ष्या उत्पन्न हो गई। जब यह बात दक्ष को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर चंद्रदेव को धीरे-धीरे क्षीण (समाप्त) होने का शाप दे दिया।
शाप के प्रभाव से चंद्रमा का तेज घटने लगा। तब ब्रह्माजी के निर्देश पर चंद्रदेव ने प्रभास क्षेत्र (वर्तमान सोमनाथ) में जाकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की और यहीं शिवलिंग की स्थापना की। शिवजी, उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और उन्हें शाप से मुक्ति देकर अमरत्व का वरदान दिया।
यही कारण है कि चंद्रमा की कलाएं कृष्ण पक्ष में घटती हैं और शुक्ल पक्ष में बढ़ती हैं, पूर्णिमा को वह पूर्ण होते हैं। चंद्रदेव की प्रार्थना पर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ इसी स्थान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करना स्वीकार किया।
मंदिर की भव्यता और वास्तुकला
समुद्र तट पर स्थित यह मंदिर बेहद आकर्षक और भव्य है। इसकी ऊंचाई लगभग 155 फीट है। मंदिर के चारों ओर विशाल आंगन है, और इसका मुख्य द्वार बेहद कलात्मक रूप में निर्मित है। यह मंदिर तीन प्रमुख हिस्सों में बंटा हुआ है –
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नाट्यमंडप
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जगमोहन
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गर्भगृह
मंदिर परिसर में वल्लभभाई पटेल और रानी अहिल्याबाई होल्कर जैसी ऐतिहासिक हस्तियों की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
सोमनाथ कैसे पहुंचे?
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हवाई मार्ग: सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट दीव (Diu Airport) है, जो यहां से लगभग 63 किलोमीटर दूर है। वहां से आप टैक्सी, बस या ट्रेन से सोमनाथ पहुंच सकते हैं।
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रेल मार्ग: भारत के लगभग सभी प्रमुख शहरों से सोमनाथ के लिए ट्रेनें उपलब्ध हैं।
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सड़क मार्ग: सोमनाथ अच्छी सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ है और निजी वाहन या बस से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।