
दिनेश निगम ‘त्यागी’ : मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अपने एक निर्णय से बाजी मार ली और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आगे निकल गए। मुद्दा सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों की पदोन्नति का है। पदोन्नति में आरक्षण के करण मामला पहले हाईकोर्ट और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट मे लंबित है। इसकी वजह से 9 साल से अधिकारी-कर्मचारियों की पदोन्नति में विराम लगा था। इस अवधि में लगभग एक लाख अधिकारी-कर्मचारी बिना पदोन्नति सेवानिवृत्त हो गए। इसे लेकर उनमें बेहद नाराजगी है। सरकारी अमले को लगता है कि शिवराज सरकार ने मुख्यमंत्री रहते इस मसले को निबटाने में कोई रुचि नहीं दिखाई।
मुख्यमंत्री बनते ही डॉ यादव ने सरकारी कर्मचारियों की वेदना समझी और पदोन्नति का मसला सुलझाने की दिशा मेंं प्रयास शुरू किया। अंतत: केबिनेट की बैठक में पदोन्नति के नए नियमों को मंजूदी दे दी गई। नियमों को लेकर कर्मचारी वर्ग की मिली- जुली प्रतिक्रिया है। एक वर्ग ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया है जबकि दूसरे का कहना है कि स्थिति पहले जैसी ही है। ये पदोन्नति में आरक्षण का विरोध पहले भी कर रहे थे, अब भी कर रहे हैं। इनका कहना है कि पदोन्नति में आरक्षण के कारण एससी-एसटी के अलावा अन्य वर्ग को नुकसान होगा। कर्मचारियों का यह वर्ग कोर्ट जाने की तैयारी में है। सरकार ने इस आशंका के चलते ही कोर्ट में केबिएट लगा दी है।
कांग्रेस के इस विधायक की हिम्मत को देनी होगी दाद....!
कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी जब भाजपा के साथ आरएसएस को भी पानी पी-पीकर कोस रहे हैं। ऐसे में पार्टी का कोई विधायक कहे कि मैं संघ से प्रेम करता हूं और संघ के लिए मैंने भी बहुत काम किया है तो उनकी हिम्मत को दाद देना होगी। हम बात कर रहे हैं सुसनेर से कांग्रेस विधायक भैरों सिंह बापू की। सोधिया समाज के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि मैं खुद संघ से जुड़ा हूं। कांग्रेस में रहते हुए संघ का काम करता हूं। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। बापू ने यह भी कहा कि आप सभी का मैं सम्मान करता हूं। संघ से मैं भी जुड़ा हुआ हूं। कांग्रेसी होते हुए भी इतने पदाधिकारी मेरे परिचित हैं।
वीडियाे वायरल होते ही कांग्रेस में हड़कंप मच गया। बापू पर कार्रवाइ की तलवार भी लटक है। जब लक्ष्मण सिंह जैसे वरिष्ठ नेता नहीं बचे तो ये कैसे बख्शे जाएंगे। भाजपा भी चुटकी लेने से बाज नहीं आई। भाजपा के मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि संघ सामाजिक, वैचारिक, राष्ट्रवादी संगठन है। कोई कहीं भी रहकर राष्ट्र की सेवा कर सकता है। यह अच्छी बात है कि कांग्रेस विधायक संघ के विचारों में विश्वास रखते हैं। कांग्रेस अनर्गल प्रलाप करती है उसे भी संघ की भावना समझ लेना चाहिए। हालांकि बापू ने अपनी सफाई में कहा कि ‘मैंने सोंधिया समाज के संघ को लेकर बात कही थी, इसे काट छांट कर किसी न षडयंत्र किया है।
भाजपा सांसदों-विधायकों पर ‘तीसरी आंख’ की नजर....
पार्टी के सांसदों, मंत्रियों, विधायकों और प्रमुख पदाधिकारियों को हर जरूरी मुद्दे पर बारीकी से प्रशिक्षण देने के बाद अनुशासन तोड़ने और आपत्तिजनक बयानों पर अब भाजपा चुप नहीं बैठेगी। पार्टी अपनी ‘तीसरी आंख’ को सक्रिय करेगी। यह आंख प्रशिक्षण प्राप्त नेताओं के क्रियाकलापों पर नजर रखेगी। खासकर प्रशिक्षण वर्ग में जिन पैरामीटर पर नसीहतें दी गई हैं, उनकी मॉनीटनिंग की जाएगी। इसके तहत दिनचर्या के साथ उनके सोशल प्लेटफॉर्म को भी शामिल किया जाएगा। यह भी देखा जाएगा कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने जिन विषयों पर प्रतिक्रिया जारी करने से मना किया है, उन पर नेता मुखर तो नहीं हैं। इसके लिए इनके कार्य व्यवहार और बयानों की मॉनिटरिंग के सिस्टम को और अपग्रेड किया जाएगा।
सिर्फ माॅनीटरिंग ही नहीं होगी बल्कि सांसदों-विधायकों को अनुशासन का जो पाठ पढ़ाया गया है, इस गाइडलाइन का उल्लंघन करने पर सीधे अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाएगी। भाजपा नेतृत्व को इस निर्णय के लिए कुछ मंत्रियों, विधायकों और नेताओं के आपत्तिजनक बयानों के कारण मजबूर होना पड़ा है। इनकी वजह से पार्टी असहज हुई है। कुछ जिलों में नेताओं की आपसी लड़ाई सड़क पर है। वे एक-दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक बयानबाजी करते हैं। इससे पार्टी की छीछालेदर होती है। लिहाजा, अब समझाइश नहीं, सीधे कार्रवाई होगी।
पुराने दौड़ में पिछड़े, अब आदिवासी वर्ग के नेता आगे....
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव लगातार टल रहा है। इसके कारण राजनीतिक समीकरण लगातार बन-बिगड़ रहे हैं और अटकलों का दौर जारी है। प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में अब तक नरोत्तम मिश्रा, हेमंत खंडेलवााल, गोपाल भार्गव सहित कई नेताओं के नाम शामिल थे, लेकिन अचानक प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी वर्ग से बनाए जाने की चर्चा चल पड़ी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और राज्यसभा सदस्य सुमेर सिंह सोलंकी पहले से प्रदेश अध्यक्ष के दावेदारों में शामिल थे।
पिछली बार भी इनके नामों पर विचार हुआ था। इस बार अचानक दौड़ में खरगोन से भाजपा सांसद गजेंद्र सिंह पटेल का नाम शामिल हो गया है। खबर है कि भाजपा नेतृत्व गजेंद्र के नाम पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इसकी वजह गजेंद्र की पृष्ठभूमि आरएसएस से होना भी है। इनके पिता उमराव सिंह संघ के विस्तारक रहे हैं। गजेंद्र अपने काम और व्यवहार से आदिवासी वर्ग खासकर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पहलगाम में आतंकी घटना और इसके बाद भारत द्वारा चलाए आपरेशन सिंदूर को लेकर प्रदेश सरकार के मंत्री विजय शाह के बयान से राजनीतिक समीकरण बदले हैं। शाह की वजह से आदिवासी वर्ग नाराज हो रहा था। इसे दूर करने के उद्देश्य से भी इस वर्ग से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने पर विचार हो रहा है।
अफसरों की मनमानी, मंत्रियों को नहीं मिली तवज्जो....
सरकार के अिधकारियों-कर्मचारियों के तबादलों को लेकर जैसा हर बार होता है, इस बार भी हुआ। दो बार अवधि बढ़ाने के बाद भी तबादला सूचियां जारी नहीं हो पाईं। खास बात यह है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के निर्देश पर बनी तबादला नीति में साफ कहा गया था कि प्रदेश स्तर पर विभाग के मंत्री और जिला स्तर पर प्रभारी मंत्री के अनुमोदन के बाद ही तबादले होंगे। यह भी उल्लेख किया गया कि सांसदाें-विधायकों की सिफारिश को तवज्जो दी जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नौकरशाही ने जम कर मनमानी की और मंत्रियों की सिफारिशों को डस्टबिन में डाल दिया गया।
मंत्रियों करन सिंह वर्मा, प्रद्युम्न सिंह तोमर और जगदीश देवड़ा ने कहा कि उनकी सिफारिश वाले तबादले नहीं हुए। जगदीश देवड़ा का यहां तक कहना था कि कुछ दागी अफसरों को हटाने के लिए लिखा था लेकिन वे नहीं हटे। कई अन्य मंत्रियों ने भी बताया कि विभागाध्यक्षों और प्रमुख सचिवों ने अपने मन से तबादले किए। कुछ घटनाक्रमों में तो अधिकारी, मंत्रियों से बहस करते नजर आ गए। नतीजा यह हुआ कि कई विभागों की सूचियां नहीं निकल सकीं। स्थानांतरण को लेकर सामान्य और मानवीय पहलुओं की ओर भी ध्यान नहीं दिया गया। कई गंभीर बीमार कर्मचारियों को उनके चाहे स्थान की बजाय और दूर भेज दिया गया। hhttp://mediaevaliamericana.org/ इस तरह तबादलों को लेकर हर स्तर पर असंतोष है।