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Lok Sabha Elections 2024 : चार लोकसभा सीटों में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर, एक पर असमंजस, चार पर भाजपा भारी

Lok Sabha Elections 2024 : चार लोकसभा सीटों में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर, एक पर असमंजस, चार पर भाजपा भारी

भोपाल। लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार 7 मई को प्रदेश की जिन 9 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होने वाला है, उनमें राजा दिग्विजय सिंह की राजगढ़, महाराजा ज्योतिरािदत्य सिंधिया की गुना और पूर्व मुख्मयंत्री शिवराज सिंह चौहान की विदिशा भी शामिल हैं। इन तीनों की किस्मत का फैसला भी ईवीएम में कैद हो जाएगा। मतदाताओं से बातचीत और माहौल को देखकर पता चलता है कि 4 लोकसभा सीटों मुरैना, ग्वालियर, भिंड और राजगढ़ में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला है। 

इनमें मुरैना और भिंड में बसपा के क्रमश: रमेश गर्ग बौर देवाशीष जजारिया मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। चार लोकसभा क्षेत्रों सागर,विदिशा, बैतूल और गुना में भाजपा भारी दिखती है। भोपाल सीट को लेकर लोग असमंजस में हैं क्योंकि यहां जातीय समीकरणों ने विश्लेषकों को पसोपेश में डाल रखा है। बहरहाल, प्रदेश की इन 9 लोकसभा सीटों के प्रत्याशियों की किस्मत मंगलवार को ईवीएम में कैद हो जाएगी।

मुरैना में नरेंद्र तोमर की प्रतिष्ठा दांव पर

भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर की सिफारिश पर मुरैना सीट से शिवमंगल सिंह तोमर को मैदान में उतारा है। नरेंद्र तोमर यहां से सांसद रहते केंद्रीय मंत्री रहे हैं और अब जिले की दिमनी सीट से विधायक हैं। इस कारण इस सीट से उनकी प्रतिष्ठा खुद ब खुद जुड़ गई है। शिवमंगल सिंह का कांग्रेस के सत्यपाल सिकरवार से कड़ा मुकाबला है। कांग्रेस ने जब से सत्यपाल को प्रत्याशी घोषित किया तब से यह सीट भाजपा के लिए कठिन मानी जा रही है। सत्यपाल के पिता गजराज सिंह सिकरवार का क्षेत्र में अच्छा असर है। सत्यपाल के भाई सतीश सिकरवार ग्वालियर से विधायक और उनकी पत्नी शोभा सिकरवार महापौर हैं। नरेंद्र तोमर के साथ पार्टी को कांग्रेस की मजबूती का अहसास है। संभवत: इसीलिए श्योपुर जिले की विजयपुर सीट से 6 बार के कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक राम निवास रावत और मुरैना की महापौर शारदा सोलंकी को भाजपा में लाया गया है। बसपा से रमेश गर्ग मैदान में हैं। तोमर और सिकरवार से नाराज वैश्य और ब्राह्मण मतदाता इनके पक्ष में जा सकता है। बसपा से जुड़ा दलित वोट इन्हें मिलेगा ही। इस तरह मुरैना में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं।

ग्वालियर- चंबल अंचल की भिंड लोकसभा सीट में तीन कोणीय मुकाबले के हालात हैं। यहां भाजपा की संध्या राय और कांग्रेस के फूल सिंह बरैया के बीच कड़ा मुकाबला है लेकिन कांग्रेस छोड़कर बसपा से चुनाव लड़ रहे देवाशीष जरारिया मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। जरारिया 2019 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और बड़े अंतर से हारे थे। कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया तो उन्होंने बगावत कर दी। प्रारंभ में भिंड में कांग्रेस के बरैया भारी पड़ते दिख रहे थे लेकिन बसपा से जरारिया के मैदान में उतरने के बाद चुनावी समीकरण बदले दिखाई पड़े। जरारिया द्वारा कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाने की संभावना है। भिंड जिले की लहार सीट से पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह विधायक रहे हैं और क्षेत्र की दतिया सीट से प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा। दोनों विधानसभा का चुनाव हार गए थे। लोकसभा चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है क्योंकि कांग्रेस और भाजपा की नैया पार लगाने की जवाबदारी इनके ऊपर ही है। डॉ सिंह और मिश्रा पार्टी प्रत्याशियों के लिए क्षेत्र में खासी मेहनत कर रहे हैं।

ग्वालियर में विधानसभा हारे प्रत्यािशयों में टक्कर

ग्वालियर ऐसा लाेकसभा क्षेत्र है जहां भाजपा और कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव हार चुके नेताओं पर दांव लगाया है। ये हैं भाजपा के भारत सिंह कुशवाहा और कांग्रेस के प्रवीण पाठक। चंबल-ग्वालियर अंचल की तासीर जातीय आधार पर मतदान करने की रही है। इसलिए पिछड़े वर्ग से जुड़ी अधिकांश जातियां भाजपा के पक्ष में खड़ी नजर आती है और ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित समाज का रुझान कांग्रेस की ओर झुका नजर आता है। बसपा ने यहां केदार सिंह कंसाना को मैदान में उतारा है। वे पिछड़े वर्ग के वोट लेकर भाजपा के कुशवाहा और दलितों के वोट लेकर कांग्रेस के पाठक को नुकसान पहुंचाते दिख रहे हैं। भाजपा ने सांसद विवेक शेजवलकर को  टिकट काट कर कुशवाहा को प्रत्याशी बनाया है, इसकी वजह से पार्टी के एक वर्ग में नाराजगी देखने को मिल रही है। क्षत्रिय समाज आमतौर पर ब्राह्मणों के साथ वोट नहीं करता लेकिन यह वर्ग इस समय भाजपा से बेजा नाराज है। करणी सेना जगह-जगह प्रदर्शन का भाजपा को सबक सिखाने की बात कर रही है। इसलिए यह वर्ग पहली बार ब्राह्मणों के साथ कांग्रेस में जा सकता है।

गुना में महाराज के खिलाफ यादवों की चुनौती

लोकसभा के पिछले चुनाव में यादव समाज के केपी सिंह ने महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक लाख से भी  ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था। भाजपा ने इस बार अपने इस सांसद का टिकट काट कर पिछला चुनाव हारे ज्योतरािदत्य को ही प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने पिछला इतिहास दोहराने की मंशा से इस बार यादव समाज के दूसरे युवा नेता राव यादवेंद्र िसंह को मैदान में उतारा है। प्रदेश में समाज का मुख्यमंत्री होने के बावजूद गुना में यादव समाज कांग्रेस प्रत्याशी के साथ खड़ा होकर महाराज सिंधिया को चुनौती प्रस्तुत कर रहा है। गुना में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह का भी असर है लेकिन वे राजगढ़ में उलझ कर रह गए हैं और गुना में यादवेंद्र सिंह की कोई मदद नहीं कर रहे। संभवत: इसी के बदले सिंधिया ने भी राजगढ़ में दिग्विजय के खिलाफ प्रचार में रुचि नहीं ली। इस अघोषित समझौते की वजह से गुना में कांग्रेस प्रत्याशी को ताकत नहीं मिल पा रही है। कांग्रेस ने गुना का प्रभारी पूर्व मंत्री और दिग्विजय के बेटे जयवर्धन सिंह को बनाया था लेकिन वे भी राजगढ़ में अपने पिता का ही प्रचार देख रहे हैं।

सागर की एकमात्र कांग्रेस विधायक ने छोड़ा हाथ

बुंदेलखंड अंचल की सागर लोकसभा क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से सिर्फ बीना ही कांग्रेस के पास थी। वहां की विधायक निर्मला सप्रे ने भी हाथ का साथ छोड़ दिया। इससे कांग्रेस को बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है। अब सभी 8 सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया। सागर में भाजपा की लता वानखेड़े का कांग्रेस के गुड्डू राजा बुंदेला से सीधा मुकाबला है। सागर भाजपा का गढ़ है। यह जानते हुए कांग्रेस के गुड्डू राजा ने प्रचार में अच्छी ताकत झोंकी। हेलीकाप्टर लेकर पूरे क्षेत्र में घूमे। कांग्रेस के सभी नेताओं को एकजुट किया लेकिन अंत में निर्मला सप्रे ने उनकी पूरी मेहनत पर पारी फेर दिया। हालांकि गुड्डू राजा की मेहनत के बावजूद भाजपा ही मजबूत थी और है। भाजपा की लता वानखेड़े महिला मोर्चा की प्रदेश अध्यक्ष और राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रही हैं। इस नाते उनका महिलाओं से सतत संपर्क रहा है। चुनाव के दौरान उन्होंने जगह-जगह महिला सम्मेलन किए हैं। एक तरह से लता का पूरा चुनाव महिलाओं ने ही संभाल रखा है। ताकत देने के लिए भाजपा के दिग्गज  मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और पूर्व मंत्री भूपेंद्र सिंह सहित पार्टी के अन्य विधायक हैं ही। कड़े मुकाबले में यहां भाजपा भारी दिखती है।

दिग्विजय ने कठिन की रोडमल की राह

गुना के बाद राजगढ़ दूसरा हाई-प्रोफाइल संसदीय क्षेत्र है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह यहां अपना आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं, इसलिए राजगढ़ के नतीजे पर सबकी नजर है। उनके सामने हैं भाजपा के रोडमल नागर। रोडमल पिछला चुनाव बड़े अंतर से जीते थे लेकिन इस बार दिग्विजय ने उनकी राह कठिन कर रखी है। राजगढ़ दिग्विजय का गृह क्षेत्र है। वे यहां से सांसद रहे हैं और क्षेत्र की राघौगढ़ एवं चाचौड़ा विधानसभा सीट से विधायक भी। दिग्विजय राघौगढ़ के राजा हैं ही, वे 10 साल तक लगातार प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। इस नाते उनका क्षेत्र से गहरा नाता है। नई युवा पीढ़ी से उनका ज्यादा संपर्क नहीं है, इसे जीवंत बनाने के लिए उन्होंने पद यात्रा के जरिए पूरे क्षेत्र में जनसंपर्क किया है। दूसरी तरफ भाजपा  के अलावा संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों को दिग्विजय हमेशा खटकते हैं। इसलिए दिग्विजय को शिकस्त देने के लिए प्रदेश की सरकार, भाजपा और संघ ने पूरी ताकत झोंक रखी है। ये संगठन दिग्विजय को राम द्रोही और हिंदू विरोध ठहराते हैं क्योंकि उनके अधिकांश बयान मुस्लिम समाज के पक्ष में आते हैं। हालांकि दिग्विजय कहते हैं िक भाजपा और संघ में उनसे बड़ा सनातनी कोई नहीं। लिहाजा, यह चुनाव रोचक है। बाजी कोई भी मार सकता है।

मामा शिवराज को टक्कर दे रहे प्रतापभानु

विदिशा लोकसभा सीट का चुनाव इसलिए चर्चित है क्योंकि यहां प्रदेश में सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड बनाने वाले शिवराज सिंह चौहान भाजपा की ओर से मैदान में हैं। वे इस क्षेत्र से कई बार सांसद रहे हैं और क्षेत्र की बुदनी विधानसभा सीट से विधायक। शिवराज का यह गृह और कर्म क्षेत्र दोनों है। इसलिए उनकी कोशिश रिकार्ड वोटों के अंतर से जीत दर्ज करने की है। उन्हें प्रचार की कला आती है और भाषण शैली में भी वे पारंगत हैं। लोगों के बीच मामा और भैया के नाम से चर्चित शिवराज को मालूम है कि उनकी जीत पक्की है फिर भी वे जी-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रतापभानु शर्मा। प्रतापभानु विदिशा से दो बार सांसद रहे हैं। उन्हें क्षेत्र में गंभीर, ईमानदार और स्वच्छ छवि के नेता के तौर पर जाना जाता है। बातचीत में वे लोगों को प्रभावित करते हैं। लोकसभा सीट के कई हिस्सों में वे शिवराज को कड़ी टक्कर देते नजर आते हैं। प्रतापभानु चूंकि लगभग तीन दशक बाद  लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, इसकी वजह से क्षेत्र में उनका सतत संपर्क नहीं रहा।

जातीय समीकरणों में उलझा भोपाल का चुनाव

राजधानी होने के नाते भोपाल लोकसभा सीट के चुनाव पर सबकी नजर है। यहां भाजपा से पूर्व महापौर आलोक शर्मा का मुकाबला कांग्रेस के अरुण श्रीवास्तव से है। आलोक महापौर के साथ विधानसभा के दो चुनाव लड़ चुके हैं जबकि कांग्रेस के अरुण पहला चुनाव लड़ रहे हैं। भोपाल सीट भाजपा के गढ़ जैसी है लेिकन जातीय समीकरणों ने इस चुनाव को उलझा दिया है। कांग्रेस ने लंबे समय बाद किसी कायस्थ को टिकट दिया है। क्षेत्र में इस समाज की तादाद निर्णायक है। यह कांग्रेस के अरुण की ओर जाता दिख रहा है। दूसरा मुस्लिम समाज भी कांग्रेस के साथ है और दलित समाज का एक तबका भी। इससे कांग्रेस के अरुण भाजपा के आलोक को टक्कर देते दिखने लगे हैं। जहां तक आलोक शर्मा का सवाल है तो ब्राह्मणों के अलावा पिछड़ा वर्ग की अधिकांश जातियां भाजपा के साथ खड़ी नजर आती हैं। भाजपा का अपना वोट बैंक भोपाल में है ही। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुरेश पचौरी के साथ आने से भी भाजपा को ताकत मिली है। आलोक का खुद लोगों से सीधा संपर्क है, वे भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे हैं। बहरहाल भोपाल का चुनाव जातीय समीकरणों में उलझा नजर आ रहा है।

बैतूल में भाजपा के दुर्गादास, कांग्रेस के रामू में मुकाबला

भाजपा का गढ़ बन चुके बैतूल लोकसभा क्षेत्र में भाजपा के मौजूदा सांसद दुर्गादास उइके और कांग्रेस के रामू टेकाम के बीच सीधा मुकाबला है। पहले यहां दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना था लेकिन बसपा प्रत्याशी की अचानक मृत्यु के कारण प्रक्रिया आगे बढ़ गई और अब यहां तीसरे चरण में मतदान होगा।

लाेगों से बातचीत के बाद पता चलता है कि भाजपा के दुर्गादास उइके 2019 में जीतने के बाद निष्क्रिय रहे, जबकि कांग्रेस के रामू टेकाम पिछला चुनाव हार जाने के बावजूद  लगातार सक्रिय। हालांकि इन स्थितियों के बाद भी कांग्रेस के टेकाम भाजपा के उइके से पिछड़ते दिख रहे हैं। वजह है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अयोध्या में राम मंदिर के कारण भाजपा के पक्ष में चल रही लहर। यहां 1996 से लगातार भाजपा जीत रही है, इसलिए यहां का मतदाता भाजपा की मानसिकता वाला पहले से है। एक दूसरे का मुकाबला कर रहे कांंग्रेस के रामू टेकाम और भाजपा के दुर्गादास उइके में कई समानताएं हैं। लोगाें की नजर मेंे दोनों सहज और सरल स्वभाव के हैं। दोनों वाकपटु भी हैं। चुनाव में इन दोनों के बीच ही मुकाबला है।


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