होम
देश
दुनिया
राज्य
खेल
बिजनेस
मनोरंजन
जरा हटके
सेहत
अध्यात्म
फैशन/लाइफ स्टाइल

 

Election Dialogue : हवा बदली है, पर इतनी नहीं ‘बदली’ कि सब बदल जाए...देश को मजबूत विपक्ष मिलेगा

Election Dialogue : हवा बदली है, पर इतनी नहीं ‘बदली’ कि सब बदल जाए...देश को मजबूत विपक्ष मिलेगा

रायपुर। देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार और गांधीवादी विचारक कुमार प्रशांत का मानना है कि देश में हवा बदली है, पर इतनी नहीं ‘बदली’ कि सब बदल जाए। यह जरूर है  कि देश को मजबूत विपक्ष मिलेगा और जो भी सरकार बनेगी वह जोड़तोड़ से बनेगी। हमारी विदेश नीति हमेशा ही रही है कि हम पीड़ितों के साथ खड़े रहे  हैं। अचानक ये कैसे हुआ कि हम आक्रांताओं के साथ खड़े हो गए हैं और उसे कह रहे हैं कि हम राष्ट्र हित में निर्णय ले रहे हैं। कुमार प्रशांत ने यह बात चुनावी संवाद कार्यक्रम में आईएनएच हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी को दिए साक्षात्कार में कही। उनसे बातचीत के प्रमुख अंश।

सवाल: इस आम चुनाव को कुमार प्रशांत जी किस दृष्टि से देख रहे हैं? 

जवाब: बड़े महत्व का चुनाव है, वैसे तो हर चुनाव पूरे महत्व का होता है। जैसा कि आपने उल्लेख किया, जेपी के समय भी चुनाव हुआ था, मैं चुनाव लड़ता भी नहीं हूं, चुनाव लड़ाता भी नहीं हूं, लेकिन मैं मानता हूं कि चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। इसमें सिर्फ ये फैसला ही नहीं होता कि कौन सी पार्टी जीत रही है कौन सी हार रही है। ये भी फैसला होता है कि देश किस दिशा में जाएगा। उस दृष्टि से मैं अभी के चुनाव को देख रहा हूं जो शासन 2014 से चल है, वो देश को बहुत ही गलत दिशा में ले जा रहा है। उसे दिशा ही नहीं मालूम। हवा में उड़ रहा है। ये लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है। लोकतंत्र में गलतियां भी होती हैं, गलत तत्व भी आ जाते हैं उससे लड़ना और हटाना, ये चुनाव की प्रक्रिया का हिस्सा होना चाहिए। लेकिन जिसको दिशा ही नहीं मालूम वह दूसरे तरह की अवधारणाएं खड़ी कर देश को दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं।

सवाल: बड़ा विरोधभासी वक्तव्य है आपका। विरोधाभासी इस रूप में है कि तकरीबन तीन दशक बाद देश की जनता ने एक पार्टी को वह जनादेश दिया। एक स्पष्ट जनादेश दिया। एक नेता के प्रति जनता ने भरोसा जताया जिसका नाम नरेंद्र मोदी है। उनके नेतृत्व में पार्टी को ये जीत मिली और दस साल के कार्यकाल के आधार पर वो नेता और पार्टी देश को ये बताने की कोशिश कर रहा है कि सही मायनों में सही दिशा में देश हमारे आने के बाद जा रहा है। उस दिशा में जा रहा है कि हम वापस विश्वगुरु बनने की दिशा में जा रहे हैं, देश का दुनिया में सम्मान बढ़ चुका है। ऐसे समय में कुमार प्रशांत जी कह रहे हैं कि देश गलत दिशा में जा रहा है। देश की तरक्की, वैभव, समृद्धि कुमार प्रशांत जी को इतनी गलत दिख रही है कि आप को खल रही है।

जवाब: ये वक्तव्य अच्छा है, मोदी जी के भाषण में कहीं फिट किया जा सकता है। लेकिन मोदी जी के भाषण जितने अर्थहीन होते हैं उतनी ही अर्थहीन ये अवधारणा है जो आपने रखी। देश जो है वो कभी एक दिन में या दस साल में बड़ा नहीं होता है। एक प्रक्रिया में बड़ा होता है। उस प्रक्रिया में जो लोग शामिल होते हैं, सबकी अपनी अपनी भूमिका होती है। मैंने जब कहा कि देश दूसरी दिशा में जा रहा है या गलत दिशा में जा रहा है ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि जिस संसदीय लोकतंत्र को हमने अपनाया उसकी कमजोरियां भी हमें मालूम, लेकिन एक वही आधार है, उस संसदीय लोकतंत्र के जो बुनियादी मायने हैं, उनके खिलाफ जब आप जाने लगे, जब आप खेल ही बदल देना चाहते हैं।

 ये खेल बना रहे, उसमें अच्छे खिलाड़ी आएंगे बुरे खिलाड़ी आएंगे। लेकिन जब खेल ही बदलने की कोशिश करें तब गलत हो जाएगा। जब आप ये घोषणा करते हो कि 2047 तक हम ही रहेंगे तो आप खेल बदल रहे हो। ये घोषणा करने का अधिकार किसी को नहीं है, खासकर संसदीय लोकतंत्र में। इसीलिए मोदी जो कुछ भी कह रहे हैं, या इनकी पार्टी जो कह रही है, उसमें मूल आपत्ति यही है कि तुमको संसदीय लोकतंत्र पर भरोसा नहीं है। हमने देश को विश्व गुरु बना दिया। विश्वगुरु बनने में कोई अभिमान की बात नहीं है। विश्व गुरु किसे कहते हैं? जब लड़ाई थी तो दोनों खेमे साम्यवाद और अमेरिका के दोनों अपने आप के विश्व गुरु मानते थे, वो विश्व गुरु थे क्या? थे तो कहां चले गए। विश्व गुरु नहीं विश्व दोस्त बनने की जरूरत है। और तुम किसी के दोस्त नहीं हो, तुम्हारे जो पड़ोसी देश थे वो भी दोस्त नहीं रह गए हैं। तुम्हारी अपनी नीतियों के कारण। विश्व गुरु बन जाओगे अपने से तो उससे तो जगह नहीं मिलती है।


संबंधित समाचार