होम
देश
दुनिया
राज्य
खेल
अध्यात्म
मनोरंजन
सेहत
जॉब अलर्ट
जरा हटके
फैशन/लाइफ स्टाइल

 

Birsa Munda History: कौन है आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा? जानिए उनकी कहानी 

Birsa Munda History: कौन है आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा? जानिए उनकी कहानी 

Birsa Munda History: भारत के आदिवासी आंदोलन के नायक और ‘धरती आबा’ के नाम से जाना जाने वाले बिरसा मुंडा की आज 150वीं जयंती है। अपने छोटे से जीवन में उन्होंने जो संघर्ष किया, उसने अंग्रेजी शासन की नींद उड़ा दी और आदिवासी समाज को एकजुट करने की नई चेतना जगाई। झारखंड की खूंटी जिले में 15 नवंबर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज भगवान समान मानता है।

साधारण परिवार से उभरा असाधारण नेता

उलिहातू गांव में जन्मे बिरसा मुंडा ने चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में पढ़ाई शुरू की, लेकिन बचपन से ही उनके अंजर विद्रोह की चिंगारी दिखाई देती थी। सरदार आंदोलन के प्रभाव और मिशनरियों के विरोध ने उनके विचारों में परिवर्तन लाया। उन्होंने ईसाई धर्म छोड़कर अपनी पारंपरिक संस्कृति और परंपराओं को अपनाया।

कहाए ‘धरती आबा’

1891 में धार्मिक विद्वान आनंद पांडे के संपर्क में आने के बाद बिरसा के चिंतन में और परिपक्वता आई। इसी बीच अंग्रेजों द्वारा पोड़ाहाट क्षेत्र को सुरक्षित वन घोषित करने से आदिवासियों में असंतोष बढ़ा और जल-जंगल-जमीन की लड़ाई ने नया रूप लिया। बिरसा धीरे-धीरे जन-नायक के रूप में उभरे और लोग उन्हें ‘धरती आबा’ कहकर सम्मान देने लगे।

अंग्रेजी शासन से सीधी टक्कर

1895 में अंग्रेजों ने पहली बार बिरसा को इसलिए गिरफ्तार किया क्योंकि उनके प्रवचनों पर भारी भीड़ उमड़ने लगी थी, जिसे प्रशासन अपने खिलाफ खतरे के रूप में देखता था। दो साल बाद रिहाई के बाद वे और अधिक दृढ़ संकल्प के साथ आंदोलन में जुड़े। 1895 से 1900 तक उनका आंदोलन लगातार जारी रहा। 1899 का साल इस संघर्ष का चरम था, जब बिरसा मुंडा ने अंग्रेजी शासन को खुली चुनौती दी। इसी दौरान विश्वासघात के चलते उन्हें पकड़कर ब्रिटिश अधिकारियों के हवाले कर दिया गया।

जेल में हुआ निधन

रांची जेल में बीमारी के चलते बिरसा मुंडा की स्थिति बिगड़ती गई और 9 जून 1900 को हैजा से उनका निधन हो गया। जल्दबाजी में कोकर के पास डिस्टिलरी पुल के निकट उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। लेकिन उनकी विचारधारा, साहस और संघर्ष की भावना आज भी आदिवासी समाज की प्रेरणा बनी हुई है। जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए उठाई गई उनकी आवाज आज भी आंदोलन की ताकत मानी जाती है।


संबंधित समाचार